मित्रों, मैं ब्लोगवाणी वालों का बहुत आभारी हूँ जो उन्होंने मेरे अदना से ब्लोग को भी अपने एग्रीगेटर में स्थान दिया है। इसके लिये उन्हें कोटिशः धन्यवाद! किन्तु मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि जब भी उनके एग्रीगेटर में मेरा ब्लोग दिखता है तो उसके साथ इन
नामालूम सज्जन की तस्वीर भी दिखती है। इन सज्जन को मैं जानता ही नहीं। अजी जानना तो क्या मैंने कभी इन्हें रू-ब-रू देखा तक नहीं। और ये सज्जन हैं कि जबरिया मेरे ब्लोग के बाजू में आ कर बैठ जाते हैं। मान न मान मैं तेरा मेहमान।
भाई मेरे यदि हो सके तो मेरे ब्लोग के बाजू में मेरा चित्र दिखा दो और यदि ऐसा नहीं कर सकते तो मुझे इन
के जैसा गुमनाम ही रहने दो, मेरा हक किसी और को तो मत दो।
वैसे मेरी जगह कोई दूसरा बुड्ढा होता तो चित्र को देख कर जरूर खुश हो जाता क्योंकि उस चित्र में वह बुड्ढा नहीं जवान लगता है। पर मैं तो हूँ सठियाया हुआ बुड्ढा, अपने स्थान पर किसी और को देखने के बजाय गुमनाम रहना पसंद करने वाला।
9 comments:
:)
ब्लॉगवाणी को ईमेल कर समस्या से अवगत करायें. निराकरण हो जायेगा.
यह इस बात का द्योतक है की अब हिन्दी ब्लॉग में भीड़ बढ़ रही है ।
अवधिया जी, एक ब्लॉग लिखिये जिसमें प्रधानमंत्री को धमकी दीजिये, बस फ़िर इन फ़ोटो वाले "सज्जन" का पता पुलिस खुद ही लगा लेगी और उनका "सार्वजनिक अभिनन्दन" भी करेगी… :) :)
ये फोटो सितम्बर 2007 से है जब यहां स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया का उपन्यास "धान के देश में" को किश्तवार डालना शुरू हुआ था. उस समय यहां आपकी फोटो नहीं हुआ करती थी.
ब्लागवाणी की हिन्दी पुस्तकों को पीडीएफ प्रारूप में ई-बुक्स के रूप मे निशुल्क फैलाने की योजना थी. यह उपन्यास भी हमे उसी परियोजना के लिये पसंद आया था. उस समय कुछ पुस्तकों के कवर बना लिये गये थे. धान बिखेरता यह नवयुवक उसी कवर का एक अंश था, इसलिये इसे यहां स्थान दिया गया था. किन्ही अपरिहार्य कारणो वश ब्लागवाणी को ई-बुक्स परियोजना स्थगित करनी पड़ी.
बहरहाल इस ब्लाग पर आपके चित्र को लगाने की व्यवस्था कर दी गई है और शायद आज शाम तक इस चित्र के स्थान पर आपका चित्र दिखने लगे.
अपनी इस समस्या को अमर सिंह को बताइये, कुछ ना कुछ उपाय जरुर होगा उनके पास।
अवधिया जी,जल्दी से सुरेश जी की बात पर अमल करे, बहुत जल्द कार्यवाही होगी, धन्यवाद
अब तो समस्या नहीं रही. सुनवाई तो हो गयी है.
हम तो समझते थे आप ही हैं! :)
वैसे सच तो ये है कि ज्ञान जी की तरह ही हम भी मूर्ख बने इत्ते दिन.
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