सन् 1835 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में लॉर्ड मेकॉले ने कहा था:
"मैंने लम्बाई से लेकर चौड़ाई तक समस्त भारत की यात्रा की है और अपनी इस यात्रा के दौरान मैंने एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो कि भिखारी हो, चोर हो। मुझे इस देश में ऐसी दौलत, ऐसी उच्च नैतिक मूल्य, ऐसी क्षमता वाले लोग दिखाई दिये हैं कि मैं नहीं समझता कि, जब तक हम यहाँ की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत, जो कि इस देश की रीढ़ की हड्डी है, को तोड़ न दें, हम इस देश को कभी भी विजित कर पायेंगे और इसीलिये मैं प्रस्तावित करता हूँ कि हम उसके पुराने और प्राचीन शिक्षा प्रणाली, उसकी संस्कृति को बदल दें ताकि भारतीय समझने लगें की यह सब (अपनी वस्तुएँ) विदेशी हैं और अंग्रेजी हमारी अपनी भाषा से अधिक महान है, वे अपने आत्म सम्मान, अपनी मूल आत्म-संस्कृति को खो दें और वैसे बन जायें जैसा कि हम चाहते हैं, भारत सचमुच में हमारा शासित राष्ट्र बन जाये।"
"I have traveled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief. Such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such calibre, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native self-culture and they will become what we want them, a truly dominated nation."
11 comments:
और उन्होने कर दिखाया.
यह पढ़ा है और एक विजेता के दम्भ की आवाज है यह।
वे काफी हद तक सफल रहे अपने ध्येय में।
और दुःख की बात तो यह है कि आज तक हम कमोबेश उसी शिक्षा पद्धति का अनुसरण कर रहे हैं जिसे कि लॉर्ड मैकॉले ने हम पर थोपा था। भारत में अब तक कभी भी प्रयास नहीं किया गया कि हम अपनी प्राचीण शिक्षा प्रणाली और संस्कृति को फिर से अपना सकें।
लोर्ड मैकाले के इस तथाकथित व्य्कत्वाया की चर्चा अक्सर होती है . पर बहुत सारे लोग इस की सत्यता पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे हैं.मैकाले की इसे प्रमाणिक उक्ति नहीं मानी जा सकती है. ब्रिटिश पार्लिअमेंट के आधिकारिक दस्त्वेजों में भी इसका उल्लेख नहीं है.
सादर
मैकाले गया अपने मानस पुत्रों को छोड़ गया और धरती-पुत्र आज भी उनसे जूझ रहे हैं.
मैकाले की हमारे देश के बारे में अच्छी सोच थी। पढ़कर अच्छा लगा
आप सभी को 59वें गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं...
जय हिंद जय भारत
दुःख है की आज भी इस देश के शासक मैकाले जैसा ही सोचते है। मुझे लगता है की भारत अब तक आजाद नही हुआ है। एक सम्पुर्ण क्रांति की आवश्यकता है। इस क्रांति मे देशभक्त कट्टर हिन्दुओ, मुसल्मानो और वमपंथियो को अगुवाई करनी होगी।
मैंने एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा जो कि भिखारी हो, चोर हो। मुझे इस देश में ऐसी दौलत, ऐसी उच्च नैतिक मूल्य, ऐसी क्षमता वाले लोग दिखाई दिये हैं कि मैं नहीं समझता कि, जब तक हम यहाँ की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत, जो कि इस देश की रीढ़ की हड्डी है, को तोड़ न दें
ओर आज यह लोर्ड मैकाले नर्क मै बेठा किता खुश होगा, क्योकि हम नालायको ने उस के सपने को जो साकार कर दिया, आज भारत मै चोर उच्चके, भिखारी भरे पडे है, ओर यही तो था उस लोर्ड मैकाले का सपना,
हम हार गये अपने ही लोगो से ओर लोर्ड मैकाले जीत गया.....
लेकिन आओ मिल कर लडे इस लोर्ड मैकाले के कथन से जो नही मानते वो ना माने क्योकि गुलाम अपने आप को कभी भी गुलाम नही कहता , वो अपने आप को वफ़ा दार कहता है?? ओर हमे नही बनना इस लोर्ड मैकाले का वफ़ा दार.
धन्यवाद
आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
हम तो सरस्वती शिशु/विद्या मंदिर में पढे हैं और मैकाले के परम भक्त हैं :-) मजाक की बात अलग लेकिन मैकाले को भारत में बिना किसी ठोस शोध के वैसे ही काले में पोत दिया गया है। जिस वक्त्व्य की बात आप कर रहे हैं, वो मैकाले ने कभी दिया ही नहीं।
आपसे एक प्रश्न है, ईमानदारी से जवाब दीजियेगा। क्या १८वीं सदी के भारत में भिखारी और चोर नहीं थे ?
मैने बहुत पहले इस मुद्दे पर लिखा था अगर समय मिले तो अवश्य नजर डालियेगा ।
http://antardhwani.blogspot.com/2007/04/blog-post.html
आभार,
नीरज
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