कौन कहता है कि लोग ब्लोगवाणी में पसंद पर चटका नहीं लगाते? आज तो न खुलने वाले पेज को भी तीन लोगों ने पसंद किया है। और एक चमत्कार यह भी है कि आज ब्लोगवाणी में "आज अधिक पसंद प्राप्त" में ब्लोग "नेहरू और पामेला माउंटबेटन" को दो स्थान मिले हैं, एक बार छः बार पसंद वाला और एक बार तीन बार पसंद
वाला। स्क्रीनशॉट देखें:
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छः पसंद को क्लिक करने पर निम्न पेज खुलता हैः
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और तीन पसंद को क्लिक करने पर "पेज नहीं पाया गया खुलता है"
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सोचा था कि नहीं लिखेंगे पर क्या करें जबसे पता चला है कि हमें विद्वान समझा जाता है
(समझने वाले की महानता को नमन! वरना हम तो खुद को सठियाया हुआ बुड्ढा ही समझते हैं) तो अपनी विद्वत्ता बघारने का मौका कैसे जाने दें
।
14 comments:
लग गया पता...मुझे लगता है..हुआ ये होगा कि ..पहला पसंद नेहरू जी ने..दूसरा लेडी माउंट ने ...बस तीसरे का पता चलते ही..आपकी समस्या का समाधान..देखा कित्ता आसान था...
इस आलेख से अधिक अजय कुमार झा की टिप्पणी पसंद आई। अब पसंद को क्लिक कर रहा हूँ।
Ajay ji ki tippani lajawab~ :D
ये भी खूब रही :-)
जो पेज नही मिला वो डीलीट कर दिया गया है अब केवल उसका लिंक ही मोजुद है ।
कुछ समझ नहीं आता क्या हो रहा है हिंदी ब्लोगिंग में
वीनस केसरी
शायद न मिल पाने के कारण पढ़ने से बच जाने की खुशी जाहिर कर गये होंगे तीन लोग. :)
अवधिया जी, पहले तो मैं आपकी विद्वता और महानता दोनों को नमन करता हूं. नेहरू और पामेला माउंटबेटन लेख मैंने लिखा था, इसलिए आपकी जिज्ञासा को शांत करना भी मेरा ही पहला कर्तव्य बनता है. दरअसल ये लेख मैंने पोस्ट कर दिया था. लेकिन एक घंटे बाद मैंने दोबारा इसे देखा तो मुझे...नेहरू और एडविना माउंटबेटन नजदीकी के किस्से तो आपने गाहे-बगाहे... वाली पंक्ति से की गायब दिखा. मैंने लेख को संपादित करने का फैसला किया. मैंने जब लेख को दुरूस्त करना शुरू किया तब तक उसे तीन पसंद मिल चुकी थी और कई ब्लॉगर बंधु उसे पढ़ भी चुके थे. मुझे ब्लॉगिंग की दुनिया में जुम्मा-जुम्मा आए दो हफ्ते ही हुए हैं. इसलिए पूरा नौसिखिया ठहरा. संपादन की कोशिश की तो पूरा लेख ही ब्लॉग से हट गया. तब तक एक ब्लॉगर फौजिया रियाज की टिप्पणी भी लेख पर आ चुकी थी. वो टिप्पणी भी हट गई. लेख को दुरूस्त करने के बाद मुझे नए सिरे से पोस्ट करना पड़ा. आपने देखा होगा कि अधिक पसंद किए जाने वाली पोस्ट में नेहरू और माउंटबेटन दो बार दिख रहा था. जैसा आपने खुद देखा कि एक पोस्ट खुलती थी और एक पोस्ट डिलीट हो जाने के कारण नहीं खुलती थी. मुझे टिप्पणी हटने के लिए फौजियाजी को इ-मेल कर खेद भी जताना पड़ा. ये उनकी सदाशयता है कि उन्होंने नई पोस्ट पर दोबारा भी टिप्पणी भेज दी. आशा है कि आपकी सारी शंका का निवारण हो गया होगा. बस आपसे एक ही निवेदन है अवधियाजी आप खुद ही एक छोटी सी पोस्ट लिखकर ब्लॉगर भाइयों के समक्ष स्थिति स्पष्ट कर दें.
साभार
अवधिया जी,
आशा है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा। एक बात और आपने क्लोर्मिंट का वो विज्ञापन तो जरूर देखा होगा दोबारा नहीं पूछना।
साभार
सहित
मैभी अजय झा जी की टिपण्णी से सहमत हुं
अब पता चला कि नॉट फाउण्ड वाली फोस्ट ज्यादा अच्छी रहती है। वही लिखने का यत्न करते हैं! :)
खुशदीप जी,
आपकी टिप्पणी और समस्या समाधान के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! आपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है और सचमुच में नेहरू जी के विचारों के प्रति एक सटीक प्रश्न किया है। मुझे आशा ही नहीं विश्वास है कि आप ऐसे ही ज्ञानवर्धक लेख भविष्य में भी लिखते रहेंगे।
जहाँ तक समस्या का सवाल है, मैं समझ गया था कि क्या हुआ होगा और कोई समस्या थी ही नहीं, पर एक विषय मिल गया था और उस विषय में कुछ लिख लेने के अपने लोभ का संवरण मैं नहीं कर पाया। :-)
चलिए, अवधियाजी इसी बहाने आपसे कहने-पढ़ने का सिलसिला तो शुरू हो गया. कहते हैं न हर गलती में भी कोई न कोई अच्छाई छिपी होती है. आपका आशीर्वाद मिलना था, ऐसे ही मिल गया. आपके पास ज्ञान का जो खजाना है उससे ब्लॉगर्स को आप बरसों-बरसों कृतार्थ करते रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है. अंत में एक बार फिर मेरी वजह से आपको कोई परेशानी हुई है तो मैं माफ़ी चाहता हूं.
अवधियाजी, दोबारा इतनी जल्दी आपका आशीर्वाद मिलेगा, सोचा ना था...आपने तो मुझे अपना मुरीद बना लिया...एक बार फिर छोटा भाई समझ-कर कहा-सुना माफ़ कर दीजिएगा
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