Thursday, May 20, 2010

भाड़ में जाये अलेक्सा रैंक, गूगल पेज रैंक और गूगल खोज परिणाम ... हिन्दी ब्लोगिंग को इनकी जरूरत ही क्या है?

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"लिख्खाड़ानन्द जी! अभी हाल ही में हमने एक पोस्ट पढ़ी 'हिन्दी ब्लोगर्स - गूगल खोज परिणाम के अनुसार'। हमने सोचा कि लगे हाथों आपके भी गूगल खोज परिणाम देख लें। सच कहें तो आपके इतने कम गूगल खोज परिणाम देखकर हमें बड़ी ही निराशा हुई। अलेक्सा रैंक और गूगल पेज रैंक के मामले में भी आप बहुत पीछे हैं। जल्दी कुछ करिये इस मामले में।"

"टिप्ण्यानन्द जी!  आप तो यह बताइये कि हम हिन्दी ब्लोगिंग में महत्व का स्थान रखते हैं कि नहीं? लोग हमें उस्ताद जी कहते हैं कि नहीं? हमारा पोस्ट आते ही टिप्पणियों की बौछार शुरू हो जाती या नहीं? चिट्ठाजगत और ब्लोगवाणी की हॉट लिस्ट में हम टॉप में रहते हैं या नहीं? फिर क्यों करें कुछ भाई? आप भी ना बस ... आलतू-फालतू की फिकर करते रहते हैं आप।"

"अंग्रेजी ब्लोग वाले तो इन्ही सब चीजों की फिकर में दुबले हुए जाते हैं। पोस्ट प्रकाशित करने के बाद डिग, टेक्नोराटी जैसे कितने ही सोशल बुकमार्किंग साइट्स में अपने पोस्ट का लिंक देते रहते हैं।"

"लगता है टिप्पण्यानन्द जी कि आप हिन्दी ब्लोगिंग की बातों के लिये अंग्रेजी ब्लॉगिंग की नजीर रखने वाले लोगों में से ही एक हैं।"

"लिख्खाड़ानन्द जी! आखिर ब्लोगिंग तो अंग्रेजी से ही आई है ना हमारे पास।"

"तो क्या हुआ? हमने उनसे ब्लोग ले लिया तो इसका मतलब यह तो नहीं कि उनकी हर बात की हम नकल करें? ब्लोग हमारे काम की चीज थी इसलिये हमने उसे ले लिया पर ये अलेक्सा रैंक, गूगल पेज रैंक, गूगल खोज परिणाम, डिग, टेक्नोराटी आदि हमारे किस काम के? आखिर हिन्दी ब्लोगिंग को इनकी जरूरत ही क्या है? भाड़ में जाये अलेक्सा रैंक, गूगल पेज रैंक और गूगल खोज परिणाम।"

"क्यों नहीं है हिन्दी ब्लोगिंग को इनकी जरूरत?"

"इसलिये नहीं है क्योंकि ये सब तो पाठकों की संख्या बढ़ाने वाली चीजे हैं। हमें क्या जरूररत है पाठकों की संख्या बढ़ाने की? हमारे पाठक तो गिनती के सिर्फ कुछ सौ हिन्दी ब्लोगर्स ही हैं और उनमें से अधिकतर हमारे मुरीद हैं ही। तो क्यों हम अपना समय बरबाद करें उन कामों को करने में जिन्हें अंग्रेजी ब्लोगर किया करते हैं। उसके बदले में तो हम समझते हैं कि हमें उस बहुमूल्य समय को अपने मुरीदों को देना चाहिये उन्हें संतुष्ट रखने के लिये ताकि वे हमारे विरोधियों के तरफ ना चले जायें।"

"सही कह रहे हैं आप उस्ताद जी! अब हमें समझ में आ गया कि हम ही गलत थे।"

"शुक्र है कि समझ गये आप! नहीं तो आपको समझाने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती हमें।"

"लिख्खाड़ानन्द जी! बधाई हो! आपकी पिछले पोस्ट ने तो टिप्पणियाँ पाने में रेकॉर्ड तोड़ दिये। एकदम लाजवाब लिखते हैं आप!"

"टिप्पण्यानन्द जी! यह तो सही है कि हमारे पिछले पोस्ट ने हमें हमारी उम्मीद से भी ज्यादा टिप्पणियाँ दिलाई हैं किन्तु आप भी अन्य टिप्पणी देने वालों के जैसे ही हमारे पोस्ट की तारीफ करेंगे यह हमने नहीं सोचा था।"

"क्यों भाई आपकी पोस्ट जोरदार है तो क्यों तारीफ ना करें?"

"क्या जोरदार है उसमें? भला बताइये तो सही क्या समझा आपने हमारे उस पोस्ट को पढ़कर?"

परेशान होकर सिर खुजाते हुए "कुछ दर्शन-वर्शन की बातें थीं उस पोस्ट में!"

"कैसा दर्शन था?"

"जीऽऽऽऽऽ ......"

"जाने दीजिये, नहीं बता पायेंगे आप। आप क्या कोई भी नहीं बता पायेगा। सरिता-तट पर होने वाली बातें, स्याह-सुर्ख हो पाने की चाहत, दामन में लगने वाले धब्बे, एक भाषा में दूसरी भाषा का घालमेल करके नये-नये शब्दों की ईजाद, सिगरेट के टोटे, घोड़े की लीद आदि बातों से हम पोस्ट कैसे बना लेते हैं यह हम खुद भी नहीं बता सकते तो दूसरा कोई क्या खाक बता पायेगा?

देखिये टिप्पण्यानन्द जी! आप हमारे मित्र हैं इसलिये हम आपको बता देते हैं कि हम क्या लिखते हैं। हम हिन्दी के जाने माने ब्लोगर हैं और जाने माने ब्लोगर ही बने रहना चाहते हैं। जाने माने बने रहने के लिये हिन्दी ब्लोगिंग में अधिक से अधिक टिप्पणियाँ बटोरनी और संकलकों में टॉप में बने रहना बहुत जरूरी है इसलिये हम वही लिखते हैं जिसे कोई पढ़कर समझ पाये या ना समझ पाये, पर हमें महान अवश्य समझे। महान बनने के लिये बहुत सारे फॉर्मूले हैं जिन्हें अपनाना पड़ता है। हम अपने पोस्ट में ऐसा कुछ लिखते हैं जिसे हर आदमी अपने हिसाब से समझ ले। हम दो बातों को, चाहे उनमें समानता हो या ना हो, जोड़ देते हैं ताकि लोग अपने-अपने हिसाब से अटकल लगाते रहें। एक-एक लाइन को सोच-समझ कर लिखना पड़ता है हमें। हमारा काम है अपने लेखन से सभी लोगों को सन्तुष्ट रखना इसीलिये यह जानते हुए भी कि रास्ते में गंदगी तो कुत्ते-बिल्ली भी करते हैं किन्तु हम गाय के गोबर करने को ही रास्ते में गंदगी बतायेंगे जिससे सारे लोग संतुष्ट रहें। हम अपने लेखन से किसी को भी नाराज होने का जरा भी मौका नहीं देना चाहते, यहाँ तक कि विरोधियों तक को भी नहीं, हाँ  छुपे रूप से "देखन में छोटन लगे घाव करै गम्भीर" जैसी एक दो-बातें अवश्य डाल देते हैं ताकी हमारे विरोधी थोड़ा तिलमिला जरूर जायें किन्तु नाराज कदापि ना हों।

अब आप ही बताइये कि यदि हम 'भरत मुनि' के 'नाट्यशास्त्र', 'विशाखदत्त' के 'मुद्राराक्षस', 'कालिदास' के 'कुमारसम्भव', 'भास' के 'प्रतिज्ञायौगन्धरायण', 'सैयद इंशाअल्ला खाँ' के 'रानी केतकी की कहानी', 'कालिदास' के 'कुमारसम्भव', 'सदल मिश्र' के 'नासिकेतोपाख्यान', 'बाबू देवकीनन्दन खत्री' के 'चन्द्रकान्ता सन्तति', 'वृन्दावनलाल वर्मा' के 'झाँसी की रानी', 'शरतचन्द्र' के 'पथ के दावेदार', 'आचार्य चतुरसेन' के 'सोना और खून' जैसे विषयों पर कुछ लिखेंगे तो क्या कोई झाँकने आयेगा हमारे पोस्ट में? इधर-उधर से कुछ पाठक शायद आ जायें उसे पढ़ने के लिये किन्तु टिप्पणी देने वाले हमारे ब्लोगर मित्र तो बिल्कुल ही नहीं आयेंगे क्योंकि इस प्रकार के पोस्ट में उन्हें मजा नहीं आता और वे पोस्ट संकलकों के गर्त में जाकर गुम हो जाते हैं।"

"वाह लिख्खाड़ानन्द जी! महान हैं आप! जब भी हम आपसे मिलने आते हैं, ज्ञान और मर्म की बातें ही लेकर जाते हैं।"

"हमारा तो काम ही ज्ञान बाँटना है टिप्पण्यानन्द जी! हम और भी बहुत सारी बातें बतायेंगे आपको किन्तु आज बस इतना ही क्योंकि हमारे पोस्ट लिखने का समय हो गया है।"

"तो अब मैं चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्काऽर!"

17 comments:

संजय बेंगाणी said...

जब भी हम आपसे मिलने आते हैं, ज्ञान और मर्म की बातें ही लेकर जाते हैं :)

Unknown said...

वाह वाह !

honesty project democracy said...

अच्छी विचारणीय प्रस्तुती /

राम त्यागी said...

sweet smile :)
वैसे मेने उस गूगल सर्च वाली पोस्ट पर कमेन्ट डाला था की "कुछ और नहीं मिला लिखने को" ...आपने तो आज पूरा संवाद ही लिख दिया ...चलो बढ़िया रहा ये...
जय हो

नीरज मुसाफ़िर said...

बढिया जी

SANJEEV RANA said...

आपसे बिलकुल सहमत हू जी
ब्लॉग को अच्छे लेखकों की जरुरत हीं न की जयादा टिप्पणियों की

EJAZ AHMAD IDREESI said...

अपनी तो ब्लॉगवाणी और चिटठा जगत है न !!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"हमारा काम है अपने लेखन से सभी लोगों को सन्तुष्ट रखना इसीलिये यह जानते हुए भी कि रास्ते में गंदगी तो कुत्ते-बिल्ली भी करते हैं किन्तु हम गाय के गोबर करने को ही रास्ते में गंदगी बतायेंगे जिससे सारे लोग संतुष्ट रहें।"

उम्दा बात कह दी अवधिया साहब !

शिवम् मिश्रा said...

जय हो महाराज !!

राज भाटिय़ा said...

वाह जी रोज नयी जानकारी.
धन्यावाद

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इशारो इशारों में बडी बडी बातें कह दीं आपने।
--------
क्या हमें ब्लॉग संरक्षक की ज़रूरत है?
नारीवाद के विरोध में खाप पंचायतों का वैज्ञानिक अस्त्र।

डॉ टी एस दराल said...

हमारा तो काम ही ज्ञान बाँटना है--

बस इसी तरह ज्ञान बांटते रहिये ।
बुजुर्गों का यही काम है।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब बातें कही आपने इस व्यंग द्वारा, आनंद आगया.

रामराम.

Anonymous said...

इशारे बड़े गज़ब के रहते हैं अवधिया जी!

बी एस पाबला

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बस आप यूँ ही ज्ञान बरसाते रहिए, बाकी हम लोग तो हैं ही लपकने को...:-)
बढिया व्यंग्य रचना...बेहद मजेदार!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

हिन्दी उत्थान के प्रति आप का समर्पण बहुत प्रेरक है। आभार।

विश्‍व गौरव said...

इस पोस्‍ट की हैडिंग हो सकती थी 'अंगूर खटठे हैं'