पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत मे लगभग 2000 इस्वी ईसा पूर्व आया। इन विद्वानों की कहानी यह है कि आर्य इण्डो-यूरोपियन बोली बोलने वाले, घुड़सवारी करने वाले तथा यूरेशिया के सूखे घास के मैदान में रहने वाले खानाबदोश थे जिन्होंने ई.पू. 1700 में भारत की सिन्धु घाटी की नगरीय सभ्यता पर आक्रमण कर के उसका विनाश कर डाला और इन्हीं आर्य के वंशजों ने उनके आक्रमण से लगभग 1200 वर्ष बाद आर्य या वैदिक सभ्यता की नींव रखी और वेदों की रचना की।
इस बात के सैकड़ों पुरातात्विक प्रमाण हैं कि सिन्धु घाटी के के लोग बहुत अधिक सभ्य और समृद्ध थे जबकि इन तथाकथित घुड़सवार खानाबदोश आर्य जाति के विषय में कहीं कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। आखिर सिन्धु घाटी के लोग इनसे हारे कैसे? यदि यह मान भी लिया जाए कि वे घुड़सवार खानाबदोश अधिक शक्तिशाली और बर्बर थे इसीलिए वे जीत गए तो सवाल यह पैदा होता है कि इस असभ्य जाति के लोग आखिर इतने सभ्य कैसे हो गए कि वेद जैसे ग्रंथों की रचना कर डाली? और यह स्वभाव से घुमक्कड़ जाति 1200 वर्षों तक कहाँ रही और क्या करती रही। दूसरी ओर यह भी तथ्य है कि आर्यो के भारत मे आने का कोई प्रमाण न तो पुरातत्त्व उत्खननो से मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानो से। मजे की बात यह भी है कि उन्हीं आर्यों द्वारा रचित वेद आदि ग्रंथों में भी आर्यों के द्वारा सिन्धु घाटी सभ्यता पर आक्रमण करने का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। आर्य शब्द तो स्वयं ही कुलीनता और श्रेष्ठता का सूचक है फिर यह शब्द असभ्य, घुड़सवार, घुमन्तू खानाबदोश जाति के लिए कैसे प्रयुक्त हो सकता है?
वास्तविकता यह है कि उन्नीसवीं शताब्दी में एब्बे डुबोइस (Abbé Dubois) नामक एक फ्रांसीसी पुरातत्ववेत्ता भारत आया। वह कितना ज्ञानी था इस बात का अनुमान तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रलय के विषय में पढ़कर प्रलय को नूह और उसकी नाव के साथ जोड़ने का प्रयास किया था जो कि एकदम मूर्खतापूर्ण असंगत बात थी। एब्बे की पाण्डुलिपि आज के सन्दर्भ में पूरी तरह से असामान्य हो चुकी है। इन्हीं एब्बे महोदय ने भारतीय साहित्य का अत्यन्त ही त्रुटिपूर्ण तथा कपोलकल्पित वर्णन, आकलन और अनुवाद किया जिस पर जर्मन पुरातत्ववेत्ता मैक्समूलर ने, जो कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के नाक के बाल बने हुए थे, अपनी भूमिका लिखकर सच्चाई का ठप्पा लगा दिया। मैक्समूलर के द्वारा सच्चाई का ठप्पा लग जाने ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने आर्यों के द्वारा सिन्धुघाटी सभ्यता पर आक्रमण की कपोलकल्पित कहानी को इतिहास बना दिया।
15 comments:
एक गहन गम्भीर एतिहासिक खामी की पोल खोलता आलेख।
उन्हीं आर्यों द्वारा रचित वेद आदि ग्रंथों में भी आर्यों के द्वारा सिन्धु घाटी सभ्यता पर आक्रमण करने का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता। आर्य शब्द तो स्वयं ही कुलीनता और श्रेष्ठता का सूचक है फिर यह शब्द असभ्य, घुड़सवार, घुमन्तू खानाबदोश जाति के लिए कैसे प्रयुक्त हो सकता है?
आर्य शब्द जाति वचक है ही नहिं, वह कुलीनता और श्रेष्ठता का सम्मानसूचक ही है।
सही तथ्य यही है…
एब्बे डुबोइस (Abbé Dubois) नामक एक फ्रांसीसी और मैक्समूलर नें नियोजित ठप्पा लगाकर आर्यों के द्वारा सिन्धुघाटी सभ्यता पर आक्रमण की कपोलकल्पित कहानी को इतिहास बना दिया।
Janha tak mera manna hai ki Arya pura Arab, Irak, Iran, Europ, afganishtan, pakistan aur North and West Indian - in hisso main mool rup se pahle se hi rah rahen hain.
Hitlar ne bhi apne aap ko Arya hi kaha tha.
हमारे इतिहास को लेकर जो भ्रान्तिया फैली हुई है उन्हें ही दर्शाती हुई आपकी ये पोस्ट!अंदाजो के आधार पर कही गयी बाते ही इतिहास हो गयी है !
ये तो एक ऐसविशाया है जिसके बारे में पूरे देश को पूरे विश्व को सही-सही जानना चाहिए!पर जो सामग्री उपलब्ध वो आपने बताया ही कितनी विश्वसनीय है!और जो असल में विश्वाव के लायक है,उसका जिकर करे तो बात साम्प्रदायिक सी होने लगती है,,,
बताओ क्या कर सकते है ?
कुंवर जी,
आश्चर्य यही है कि बिना साक्ष्य के कोई तथ्य अब तक कैसे जी रहा है।
मानव जाति का प्रारंभ भारत से हुआ है
क्योंकि स्वायमभू मनु का अवतरण भारत में हुआ था । यह अरबी इतिहास परंपरा से भी सिद्ध है । प्रमाण मेरे ब्लाग पर देखे जा सकते हैं ।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने आर्यों के द्वारा सिन्धुघाटी सभ्यता पर आक्रमण की कपोलकल्पित कहानी को इतिहास बना दिया....
इतहास ही नहीं बना दिया एक नगाडा बना कर थमा दिया.. अपनी आने वाली पीडी को....
जो रोज बजता रहता है:
आर्य बाहर से आये थे........
आर्य बाहर से आये थे........
आर्य बाहर से आये थे........
बहुत पेंचीदा मुद्दा है .....कभी कभी लगता है आक्रान्ताओं ने सैन्धव सभ्यता के पुरुषों का खात्मा किया मगर उनी संस्कृति महिलाओं जिसे कथित आक्रान्ताओं ने कैदी बनाया के सहारे पीढी दर पीढी अंतरित होती गयी ...अन्यथा वेदों की इतनी व्याकरणीय और प्रांजल शुद्ध भाषा इतने कम अंतराल में कैसे विकसित हो गयी होगी ...!
आपकी बात तो सिद्ध हो चुकी है. सुन्दर आलेख. आभार.
इतिहास की स्थापनाएं तथ्य एवं प्रमाण आश्रित एवं अनंतिम, अदल सकने वाली होती हैं, यह आम तौर पर होता है, लेकिन गड़बड़ वहां है, जब किसी नीयत से पहले मान्यता बना ली जाए, फिर उसके लिए, अपने अनुरूप और मन-माफिक प्रमाण जुटाने की कोशिश हो.
इन गोरों का क्या है जिसे मर्जी सच करार देकर ढिंढोरा पीट लें.
बाल गंगाधर तिलक ने अपने ग्रन्थ में सिद्ध कर दिया था कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आये थे, लेकिन किया क्या जाये जब हमारे ऊपर बाहरी लोगों का लिखा हुआ चेंप दिया गया, जो उन्होंने हमें नीचा दिखाने के लिये और अल्पज्ञता के चलते लिखा..
स्वतंत्रता से पूर्व इतिहास के साथ बहुत छेडछाद हुई है वह एक अलग बहस का मुद्दा है ।
Post a Comment