पता नहीं क्यों वसन्त पंचमी का दिन मेरे हृदय में वसन्त ऋतु के स्वागत् के लिए ललक उत्पन्न करती है। लगने लगता है कि अकस्मात ही हवा में सुगन्ध भर गया है। मुझे आज भी याद है कि स्कूल के दिनों में मैं वसन्त पंचमी के दिन ब्राह्म मुहूर्त में ही निद्रा त्यागकर उठ जाया करता था। सुबह साढ़े सात बजे के पहले स्कूल जो पहुँचना होता था। स्कूल पहुँचने के पहले नहा-धोकर तैयार भी तो होना पड़ता था न! स्कूल में माता सरस्वती की पूजा होती थी, सरस्वती वन्दना गाया जाता था -
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्दैवै:सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा॥
(कुन्द, चन्द्र, तुषार के हार के समान गौरवपूर्ण शुभ्र वस्त्र धारण करने वाली, वीणा के सुन्दर दण्ड से सुशोभित हाथों वाली, श्वेत कमल पर विराजित, ब्रहा, विष्णु महेश आदि सभी देवों के द्वारा सर्वदा स्तुत्य, समस्त अज्ञान और जड़ता की विनाशनी देवी सरस्वती मेरी रक्षा करे।)
सरस्वती पूजा के बाद स्कूल से छुट्टी दे दी जाती थी। छुट्टी पाते ही मैं तेजी के साथ घर की ओर चल पड़ता था क्योंकि मुहल्ले में भी तो होली जलने के स्थान पर अरंड पूजा देखना जरूरी होता था। अरंड का एक पेड़ काटकर लाया जाता था और उसे मुहल्ले में होली जलने वाले स्थान पर गाड़ दिया जाता था तथा उसकी पूजा की जाती थी। नारियल फोड़कर प्रसाद बाँटा जाता था। और उसके बाद मुहल्ले के सारे रसिकजन इकट्ठे हो जाया करते थे। चौक में दरियाँ बिछा दी जाती थीं और नगाड़े, ताशे, झाँझ, मंजीरे के साथ फाग गायन शुरु हो जाता था। वक्रतुण्ड महाकाय भगवान गणेश की वन्दना से फाग आरम्भ होता था -
माँगत हौं बर दुइ कर जोरे
देहु सिद्धि कछु बुधि अधिकाय।
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय॥
गणपति को मनाने के बाद छत्तीसगढ़ के त्रिवेणी में स्थित राजीव लोचन को फाग गाकर प्रसन्न किया जाता था -
भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित उधारन तुम आए।
लोक लोक के भूपति आए
तोरे चरण में सर नाए।
भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित उधारन तुम आए॥
इसके बाद पूरे दिन फाग गाकर राम, कृष्ण, माता शारदा आदि विभिन्न देवी देवताओं को प्रसन्न किया जाता था।
आज बचपन की वो बातें नहीं रही हैं किन्तु वसन्त आज भी मेरे भीतर उन्माद उत्पन्न करता है और नवपल्लवित पौधों पर लदे हुए सुन्दर पुष्पों तथा आम के बौर की महक हृदय को आन्दोलित करने लगती है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्दैवै:सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा॥
(कुन्द, चन्द्र, तुषार के हार के समान गौरवपूर्ण शुभ्र वस्त्र धारण करने वाली, वीणा के सुन्दर दण्ड से सुशोभित हाथों वाली, श्वेत कमल पर विराजित, ब्रहा, विष्णु महेश आदि सभी देवों के द्वारा सर्वदा स्तुत्य, समस्त अज्ञान और जड़ता की विनाशनी देवी सरस्वती मेरी रक्षा करे।)
सरस्वती पूजा के बाद स्कूल से छुट्टी दे दी जाती थी। छुट्टी पाते ही मैं तेजी के साथ घर की ओर चल पड़ता था क्योंकि मुहल्ले में भी तो होली जलने के स्थान पर अरंड पूजा देखना जरूरी होता था। अरंड का एक पेड़ काटकर लाया जाता था और उसे मुहल्ले में होली जलने वाले स्थान पर गाड़ दिया जाता था तथा उसकी पूजा की जाती थी। नारियल फोड़कर प्रसाद बाँटा जाता था। और उसके बाद मुहल्ले के सारे रसिकजन इकट्ठे हो जाया करते थे। चौक में दरियाँ बिछा दी जाती थीं और नगाड़े, ताशे, झाँझ, मंजीरे के साथ फाग गायन शुरु हो जाता था। वक्रतुण्ड महाकाय भगवान गणेश की वन्दना से फाग आरम्भ होता था -
माँगत हौं बर दुइ कर जोरे
देहु सिद्धि कछु बुधि अधिकाय।
गणपति को मनाय प्रथम चरण गणपति को मनाय॥
गणपति को मनाने के बाद छत्तीसगढ़ के त्रिवेणी में स्थित राजीव लोचन को फाग गाकर प्रसन्न किया जाता था -
भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित उधारन तुम आए।
लोक लोक के भूपति आए
तोरे चरण में सर नाए।
भजु राजिम लोचन नाथ हमारे पतित उधारन तुम आए॥
इसके बाद पूरे दिन फाग गाकर राम, कृष्ण, माता शारदा आदि विभिन्न देवी देवताओं को प्रसन्न किया जाता था।
आज बचपन की वो बातें नहीं रही हैं किन्तु वसन्त आज भी मेरे भीतर उन्माद उत्पन्न करता है और नवपल्लवित पौधों पर लदे हुए सुन्दर पुष्पों तथा आम के बौर की महक हृदय को आन्दोलित करने लगती है।
7 comments:
aapko basant panchmi ki haardik subhakaamanaayen.
मन में आज विशेष तरंगें जग रही हैं।
वसंत की गुदगुदी.
vasant ka sundar varnana.. bahut sundar prastuti.. aapko vasantpanchmi kee haardik shubhkamna
जब आम तक बौरा जाते हैं तो जन कैसे बच सकते हैं वसंत से...
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
वाह वाह, जियो बबा जियो,
आपके जलवे ताईवान तक दिख रहे हैं। :)
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