जिस प्रकार से पाश्चात्य देशों में जासूसी लेखन (Detective Writing) को अत्यधिक रुचि लेकर पढ़ा जाता रहा है उसी प्रकार से भारतीय साहित्य में भी जासूसी लेखन (Detective Writing) की लोकप्रियता रही है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने सर आर्थर कानन डायल (Arthur Conan Doyle) के मशहूर पात्र "शरलॉक होम्स" के बारे में न सुना हो। आगाथा क्रिस्टी (Agatha Christie) के जासूसी उपन्यास आज भी अत्यन्त लोकप्रिय हैं। जासूसी उपन्यास के इन लेखकों की लोकप्रियता जाहिर करती है कि पाश्चात्य देशों में जासूसी लेखन (Detective Writing) को साहित्य में स्थान मिला है किन्तु भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का स्थान हमेशा ही गौण रहा है। इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है बाबू देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास "चन्द्रकान्ता" और चन्द्रकान्ता सन्तति", जिन्हें पढ़ने के लिए लाखों की संख्या में लोगों ने हिन्दी सीखा, को हिन्दी साहित्य में आज भी गौण स्थान ही प्राप्त है।
माना जाता है कि जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ सन् 1841 में एडगर एलन पो की कहानी (short story) "द मर्डर्स इन द रुये मोर्ग (The Murders in the Rue Morgue) से हुई। भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ, यद्यपि वह लेखन अपरिष्कृत रूप में था, उन्नीसवीं शताब्दी में हुई। सन् 1888 में बाबू देवकीनन्दन खत्री ने "चन्द्रकान्ता" नामक उपन्यास लिखा जिसे कि जासूसी लेखन (Detective Writing) के अन्तर्गत माना जा सकता है और जहाँ तक यही भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) की शुरुवात थी। उन्हीं दिनों "शरलॉक होम्स" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" से प्रभावित अनेक रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी, मराठी, बंगाली, तेलुगु, तमिल आदि भाषाओं में हुआ जो कि बहुत ही लोकप्रिय हुए।
बीसवीं शताब्दी पचास और साठ के दशक में इब्ने सफी के उपन्यासों ने जासूसी लेखन (Detective Writing) के राजा रजवाड़े से सम्बन्धित रूप को बदलकर एक आधुनिक रूप दिया। इब्ने सफी मूलतः उर्दू में लिखा करते थे जिनका "जासूसी दुनिया" नामक मासिक पत्रिका में उर्दू और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में प्रकाशन हुआ करता था। उन दिनों सफी जी जासूसी उपन्यासों के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक थे और उनकी लोकप्रियता भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में बहुत अधिक थी। ओमप्रकाश शर्मा और वेदप्रकाश काम्बोज भी उन दिनों के लोकप्रिय जासूसी लेखक थे।
कालान्तर में जेम्स हेडली च़ेज के डिटेक्टिव्ह नावेल्स की लोकप्रियता बढ़ती गई। बहुत से लेखकों ने उनके उपन्यासों का हिन्दी अनुवाद किया किन्तु सुरेन्द्र मोहन पाठक जी सफलतम अनुवादक रहे। बाद में पाठक जी ने स्वयं जासूसी लेखन (Detective Writing) का कार्य आरम्भ कर दिया और हिन्दी के सफलतम जासूसी लेखक की श्रेणी उनका स्थान बन गया। आज भी पाठक जी के उपन्यास बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।
माना जाता है कि जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ सन् 1841 में एडगर एलन पो की कहानी (short story) "द मर्डर्स इन द रुये मोर्ग (The Murders in the Rue Morgue) से हुई। भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) का आरम्भ, यद्यपि वह लेखन अपरिष्कृत रूप में था, उन्नीसवीं शताब्दी में हुई। सन् 1888 में बाबू देवकीनन्दन खत्री ने "चन्द्रकान्ता" नामक उपन्यास लिखा जिसे कि जासूसी लेखन (Detective Writing) के अन्तर्गत माना जा सकता है और जहाँ तक यही भारत में जासूसी लेखन (Detective Writing) की शुरुवात थी। उन्हीं दिनों "शरलॉक होम्स" और "चन्द्रकान्ता सन्तति" से प्रभावित अनेक रचनाओं का प्रकाशन हिन्दी, मराठी, बंगाली, तेलुगु, तमिल आदि भाषाओं में हुआ जो कि बहुत ही लोकप्रिय हुए।
बीसवीं शताब्दी पचास और साठ के दशक में इब्ने सफी के उपन्यासों ने जासूसी लेखन (Detective Writing) के राजा रजवाड़े से सम्बन्धित रूप को बदलकर एक आधुनिक रूप दिया। इब्ने सफी मूलतः उर्दू में लिखा करते थे जिनका "जासूसी दुनिया" नामक मासिक पत्रिका में उर्दू और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में प्रकाशन हुआ करता था। उन दिनों सफी जी जासूसी उपन्यासों के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक थे और उनकी लोकप्रियता भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में बहुत अधिक थी। ओमप्रकाश शर्मा और वेदप्रकाश काम्बोज भी उन दिनों के लोकप्रिय जासूसी लेखक थे।
कालान्तर में जेम्स हेडली च़ेज के डिटेक्टिव्ह नावेल्स की लोकप्रियता बढ़ती गई। बहुत से लेखकों ने उनके उपन्यासों का हिन्दी अनुवाद किया किन्तु सुरेन्द्र मोहन पाठक जी सफलतम अनुवादक रहे। बाद में पाठक जी ने स्वयं जासूसी लेखन (Detective Writing) का कार्य आरम्भ कर दिया और हिन्दी के सफलतम जासूसी लेखक की श्रेणी उनका स्थान बन गया। आज भी पाठक जी के उपन्यास बहुत अधिक लोकप्रिय हैं।
16 comments:
इब्ने सफ़ी को तो आज भी तलाश कर रहा हूँ।
उनके पुराने उपन्यास फ़िर से पढने की प्रबल इच्छा है।
हिंद पाकेट बुक्स से प्रकाशित होने वाले जासूसी उपन्यास लेखक कर्नल रंजीत के उपन्यास भी काफी लोकप्रिय हुए थे।
आपने सिर्फ हिन्दी जासूसी उपन्यासों के चर्चा की है, यदि आप गौर करें तो पाएंगे कि लगभग सभी तरह के हिन्दी उपन्यासों का यही हाल है
कविता, निबंध, हास्य, कहानी सभी तो कही खो गए लगते हैं, कुछ लेखक ही उभर कर आ सके हैं, किसी भी बुक स्टाल पर जाइये आपको सिर्फ इंग्लिश उपन्यास ही मिलेंगे, हिन्दी कोई नहीं
रोचक जानकारी, चन्द्रकान्ता सन्तति में जादूगरी भी बहुत है।
प्रवीण पाण्डेय said.
प्रवीण जी,
शायद आपने देवकीनन्दन खत्री जी रचित "चन्द्रकान्ता सन्तति" उपन्यास को पढ़ा नहीं है, यदि उसे पढ़ेंगे तो उसमें जादूगरी होने के विषय में कदापि नहीं कहेंगे। "चद्रकान्ता सन्तति" किसी भी प्रकार के जादू टोना आदि के पूर्ण रूप से विरुद्ध है और उनके न होने की बात कहता है।
चन्द्रकान्ता सन्तति का शब्द है- 'ऐयारी', यानि जासूसी के लिए जादुई किस्म के कारनामे करता जासूस.
एक मिस्टर ब्लैक की जासूसी के भी किस्से सुने हैं हमने.
सुरेन्द्र मोहन का तो मैं जबरदस्त फैन हूँ...किंतु उनके साथ इस विषय पर यदि वेद प्रकाश शर्मा का जिक्र न हो तो उचित नहीं होगा, अवधिया जी। क्या कहते हैं आप इस बारे में?
गौतम राजरिशी
गौतम जी,
यद्यपि मैं किसी जमाने में जासूसी उपन्यासों का शौकीन था और मैंने इब्ने सफी, ओमप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश काम्बोज आदि लेखकों के प्रायः सारे उपन्यासों को पढ़ा है और सुरेन्द्र मोहन पाठक के कुछ उपन्यासों को पढ़ा है किन्तु इधर कई सालों से मैंने जासूसी उपन्यास पढ़ना छोड़ दिया है। इसलिए मुझे वेदप्रकाश शर्मा जी के विषय में कुछ विशेष जानकारी नहीं है। मेरी इस अल्पज्ञता के कारण से उनका जिक्र नहीं हो पाया। यदि आप उनके विषय में जानकारी देना चाहें तो स्वागत् है!
योगेन्द्र पाल जी की टिपण्णी से सहमत हे ,
ओम प्रकाश शर्मा, कर्नल रंजीत (इनका असली नाम कुछ और था) और वेद प्रकाश काम्बोज इन लोगों के साथ सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने बहुत अच्छा लिखा है..
हमारे वक्त में तो बच्चों के लिये भी अलग से जासूसी उपन्यास आने लगे थे, राजन-इकबाल, रंजीत-मुमताज, राम-रहीम वगैरह। आम तौर पर पांच रुपये में चार उपन्यास, लेकिन काफी पतले-पतले और दो भागों में एक उपन्यास। एस सी बेदी का लिखा बच्चे बहुत पसंद करते थे, वो शायद कानपुर में रहते थे।
in jasoosi lekhakon me ek naam kushvaha kant ka bhii hai. inkii pustak LAL REKHA ne mujhe unka diivaana bana diya tha. Apne jb is vishay par kalam chalayii hai to aur bhii apekshha badh gayi hai.
thanks for sharing...
चंद्रकांता में ऐयारी की भरमार है । ऐयार राज्यों के नौकर हुआ करते थे . रुप बदलना दौडना इनके मुख्य गुण थे । इसके अलावा ऐयार हरफनमौला होते थे । जादू टोना जैसा कुछ नहीं था ।
Thanks
GUD 1
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