Saturday, March 5, 2011

आयोलाल! झूलेलाल! - आज चेटीचंड महोत्सव


भारत!

याने कि विभिन्न धर्मों, समुदायों और जातियों के समावेश!

भारत! अर्थात् वह देश जहाँ सभी लोग एक-दूसरे की मान्यताओं, धारणाओं, परम्पराओं आदि को आदर और महत्व देते हैं। होली हो, दीपावली हो, ईद हो, क्रिसमस हो, चाहे किसी धर्म का त्यौहार क्यों न हो, हमारे देश में इन त्यौहारों को प्रमुखता से मनाया जाता है, गर्व की बात है यह हम भारतवासियों के लिए!

हमारा आर्यावर्त देवभूमि है अर्थात् अवतारों का आविर्भाव स्थल! अलग-अलग समय में अनेक अनेक अवतारों का आविर्भाव हुआ है भारत-भूमि में! इसीलिए तो श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा हैः

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मान.म सृजाम्यहम्॥

भारत में जब कभी भी धर्म की ग्लानि होती है, किसी न किसी अवतार का आविर्भाव अवश्य होता है। ऐसे ही एक अवतार हैं "झूलेलाल" जिनका आविर्भाव चैत्र शुक्‍ल द्वि‍तीया संवत् 1117 को हुआ था। प्रतिवर्ष चैत्र शुक्‍ल द्वि‍तीया तिथि के रोज, जो कि आज दिनांक 05-03-2011 को है, सम्पूर्ण सिन्धी समाज पूरे देश में भगवान झूलेलाल, जो कि वरुण देव के अवतार माने जाते हैं, का जन्मोत्सव 'चेटीचंड' के रूप में हर्षोल्लास से मनाता है। चेटीचंड महोत्सव से ही सिन्धी समुदाय के 'नूतन वर्ष' का भी शुभारम्भ होता है।

वैसे तो भगवान झूलेलाल से सम्बन्धित अनेक गाथाएँ, किंवदंतियाँ आदि पढ़ने-सुनने को मिलती हैं किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि चेटीचंड महोत्सव मनाने का प्रमुख कारण कुछ और ही है। देखा जाए तो सिंधी समुदाय प्राचीनकाल से ही व्यापार का कार्य करते रहा है। प्राचीनकाल में इन व्यापारियों को अपने व्यापार के लिए जलमार्ग से विभिन्न देशों में जाना पड़ता था क्योंकि अत्यन्त प्राचीनकाल से ही भारत के व्यापारिक सम्बन्ध मलय देश (वर्तमान मलेशिया),  सुमात्रा, जावा (प्राचीन यव द्वीप), मदुरा, बाली, कालीमंथन, जिसे अब बोर्निओ (Borneo) कहा जाता है, कलिंग द्वीप समूह (Philippines),  सुलावेशी (Sulawesi  या Celebes), जय द्वीप (Irian Jaya/New Guinea), सिंहपुर (जो आज सिंगापुर : Singapore कहलाता है) से थे, सिंहपुर तो भारत के लिए पूर्वी नौ-यात्रा का द्वार ही था। ऐसी समुद्र यात्राओं में सिन्धी व्यापारियों को विभिन्न तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था। चूँकि जल के देवता वरुण हैं, आपदाओं से रक्षा उनकी ही स्तुति एवं प्रार्थना की जाती थी। इसी कारण से वरुण देव अर्थात् झूलेलाल सिंधी लोगों के आराध्य देव बन गए।

सभी को झूलेलाल महोत्सव चेटीचंड की हार्दिक शुभकामनाएँ।

7 comments:

Rahul Singh said...

शायद चैती चांद ही चेट्रीचंड है, जो इस वर्ष 5 अपैल को होगा, जांच-मिलान हेतु सुझाव है.

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी सुन्दर जानकारी।

निर्झर'नीर said...

"Rahul Singh said...
शायद चैती चांद ही चेट्रीचंड है, जो इस वर्ष 5 अपैल को होगा, जांच-मिलान हेतु सुझाव है. "

सुन्दर जानकारी।
Rahul Singh ji ke vichar se sahmat

Unknown said...

राहुल जी, आप सही हैं. भूलवश यह पोस्ट एक माह पहले प्रकाशित हो गया है.

राज भाटिय़ा said...

एक महीना पहले ही जी आप सब को झूलेलाल महोत्सव चेटीचंड की हार्दिक शुभकामनाएँ

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

चलिये एक माह पूर्व ही सही... बधाई.

Khushdeep Sehgal said...

पोस्ट चाहे एक माह पहले आई लेकिन भगवान झूलेलाल के बारे में जानकर अच्छा लगा...

अवधिया जी आपका इस पोस्ट में ज़िक्र है...शायद आपकी नज़रों में नहीं आईं...

500वीं पोस्ट के मेरे लिए मायने....खुशदीप

जय हिंद...