Wednesday, July 13, 2011

चाणक्य रचित सूक्तियाँ

  • मनुष्य अकेला ही पैदा होता है; अकेला ही मरता है; अकेला ही अच्छे तथा बुरे परिणामों का अनुभव करता है और अकेला ही परमधाम अथवा नर्क को प्राप्त करता है।
  • मनुष्य जन्म से महान नहीं होता, उसके कर्म उसे महान बनाते हैं।
  • किसी व्यक्ति को अत्यधिक ईमानदार नहीं होना चाहिए, जिस प्रकार से सीधे वृक्ष को पहले काटा जाता है उसी प्रकार से अत्यधिक ईमानदार व्यक्ति को पहले प्रताड़ना दी जाती है।
  • जिस प्रकार से एक सूखा पेड़ अग्नि पाकर पूरे वन का विनाश कर देता है उसी प्रकार से एक दुष्ट पुत्र समस्त परिवार का नाश कर देता है।
  • भय के उत्पन्न होते ही उस पर वार करके उसका विनाश कर दो।
  • किसी कार्य को आरम्भ करने के पूर्व स्वयं से तीन प्रश्न करो - मैं यह कार्य क्यों कर रहा हूँ?, मेरे इस कार्य का परिणाम क्या होगा? और क्या मुझे इस कार्य में सफलता मिलेगी? गहन विचार करने के पश्चात् यदि इन प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर मिलें तभी आगे बढ़ो।
  • किसी मूर्ख के लिए पुस्तकें उतनी ही उपयोगी होती हैं जितना अंधे के लिए आईना।
  • सबसे बड़ा गुरुमन्त्रः अपने भेद कभी भी किसी से मत कहो, ऐसा करना तुम्हें विनाश तक ले जाएगा।
  • नारी का यौवन तथा सौन्दर्य संसार की सबसे बड़ी शक्ति है।

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़े गहरे वाक्य।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

चाणक्य की सूक्तियाँ हर युग,हर काल में प्रासंगिक रहेंगी.

Manish said...

सचमुच बहुत ही गहरे....

Neeraj Rohilla said...

बाकी का पता नहीं, अन्तिम वाक्य से सौ फ़ीसदी सहमत ।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
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