Thursday, September 15, 2011

लान तो रे लान तो डण्डा ला, मारौं तरी के बण्डा ला

मानव मस्तिष्क स्मृतियों को अपूर्व भण्डार है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त की सभी बातों को संजो कर रखे रहता है यह। जन्म से लेकर होश सम्भालने तक की भी बातें इस भण्डार में होती हैं किन्तु कभी उभर कर आ नहीं पातीं, हाँ यदि किसी को हिप्नोटाइज कर ट्रांस में लाकर उन्हें भी अवचेतन के गर्त से चेतन की सतह तक लाया जा सकता है। होश सम्भालने के बाद की स्मृतियाँ अचेतन रूपी यादों के कब्र में पूरी तरह से दफन नहीं हो पातीं और अक्सर बुलबुले के रूप में चेतन तक आती रहती हैं। कल मुझे भी अपने बचपन की अनेक बातें याद आ गईं थी। याद आने का कारण था कल, राहुल सिंह के बुलावे पर, "छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग" के शिविर में पहुँच जाना। राहुल जी का स्नेह मुझे मिलता ही रहता है और विशेष कार्यक्रमों में वे मुझे कभी भी विस्मृत नहीं करते।

 "छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग" के उस शिविर में एक सत्र छत्तीसगढ़ी कहानियों का भी था। कहानी को छत्तीसगढ़ी में "कहिनी" कहा जाता है। इस शब्द ने मुझे इस शब्द ने अपने बचपन में अपनी दादी माँ की सुनाई गई कितनी ही कहानियों को बरबस याद दिला दिया - भगवान राम की कहानी, श्रवण कुमार की कहानी, कृष्ण और सुदामा की कहानी, गज और ग्राह की कहानी आदि के साथ ही साथ "कोलिहा अउ बेन्दरा" के कहिनी "ढूँढ़ी रक्सिन" के कहिनी .............. इन सभी कहानियों को मेरी दादी माँ मुझे छत्तीसगढ़ी में सुनाया करती थीं। किसी भी दिन मैं रात को बगैर कहानी सुने सोता नहीं था। कहानी के सिवा और कुछ चारा भी तो नहीं था मेरे पास, रेडियो और टीव्ही तो दूर की बात है, घर में बिजली का कनेक्शन तक नहीं था। रात में 'कन्दील', 'चिमनी' या 'फुग्गा' की रोशनी और दादी माँ की कहानी मुझे बहुत ही भाती थीं।

"खिरमिच" की कहानी मुझे बहुत पसन्द थी, पर "खिरमिच" की कहानी कभी-कभार ही मुझे सुनने को मिलता था क्योंकि उस कहानी को मुझे मेरी दादी माँ नहीं बल्कि मेरी माँ सुनाती थी, जिन्हें घर के काम-काज से कभी फुरसत ही नहीं मिल पाता था मुझे कहानी सुनाने के लिए। इस कारण से जब भी मुझे मौका मिलता मैं माँ से जिद करके कहा करता था "माँ, आज मोला खिरमिच के कहिनी सुना ना" और वे कभी-कभार मेरे जिद को देखकर सुनाना शुरू कर देती थीं -

"सुन रे गोपाल, दू बहिनी रहिन।"

("सुन रे गोपाल, दो बहनें थीं।")

मैं कहता, "हूँ", क्योंकि मैं जानता था कि बिना हुँकारू के कहानी सुनाने का रिवाज ही नहीं था।

"छोटे बहिनी के चार बेटा रहिस, मूड़ुल, हाथुल, गोड़ुल अउ खिरमिच।"

("छोटी बहन के चार बेटे थे, मूड़ुल, हाथुल, गोड़ुल और खिरमिच।")

"हूँ।"

"बड़े बहिनी रहिस रक्सिन। वोहर अपन घरवाला अउ सब्बो लइका मन ला खा डारे रहिस।"

("बड़ी बहन राक्षसिन थी। उसने अपने घरवाले और बच्चों को खा डाला था।")

"हूँ।"

"एक दिन रक्सिन हा अपन छोटे बहिनी ला कहिस के बहिनी, आज मोला बने नइ लागत हे, रात में मोर संग सुते बर तोर कोनो लइका ला भेज देबे का?"

("एक दिन राक्षसिन ने अपनी छोटी बहन से कहा कि बहन, आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, रात में मेरी देखभाल के लिए अपने किसी बच्चे को भेज दोगी क्या?")

"हूँ।"

"ले का होही, भेज देहूँ।"

("कोई बात नहीं, भेज दूँगी।")

"हूँ।"

"रक्सिन के जाय के बाद छोटे बहिनी हा मूड़ुल ला कहिस, 'अरे मूड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

(राक्षसिन के जाने के बाद छोटी बहन ने मूड़ुल से कहा, 'अरे मूड़ुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

"सब्बो लइका मन जानत रहिन हे कि ओखर बड़े दाई हा रक्सिन हे, एखरे सेती मूड़ुल हा कहिस, 'मैं नइ जाँव दाई, मोर मूड़ पिरात हे'।"

("सभी बच्चे जानते थे कि उनकी बड़ी माँ राक्षसिन है, इसीलिए मूड़ुल ने कहा, 'मैं नहीं जाता माँ, मेरा सर दर्द कर रहा है'।")

"तब वो हा हाथुल ला कहिस, 'अरे हाथुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

("तब उसने हाथुल से कहा, 'अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

"हाथुल बोलिस, 'मैं नइ जाँव दाई, मोर हाथ पिरात हे'।"

("हाथुल बोला, 'मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है'।")


"फेर वो हा गोड़ुल ला कहिस, 'अरे गोड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

("फिर उसने गोड़ुल से कहा, 'अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

"गोड़ुल बोलिस, 'मैं नइ जाँव दाई, मोर गोड़ पिरात हे'।"

("गोड़ुल बोला, 'मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है'।")

"आखिर में वो हा खिरमिच ला कहिस, 'अरे खिरमिच, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

("अन्त में उसने खिरमिच से कहा, 'अरे खिरमिच, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

"खिरमिच बोलिस, 'हव दाई, मैं हा चल दुहूँ'।"

("खिरमिच बोला, 'ठीक है माँ, मैं चल दूँगा'।")

"साँझ होइस तो खिरमिच हा जंगल में अपन बड़े दाई घर पहुँ गइस।"

("शाम हुई तो खिरमिच जंगल में अपनी बड़ी माँ के घर पहुँच गया।")

"वोखर बड़े दाई हा बहुत खुश होइस अउ कहिस के बेटा खिरमिच, बने करे रे। अब मैं हा जंगल में जात हौं, अधरतिया आहूँ। तैं हा खा-पी के सुत जाबे।"

("उसकी बड़ी माँ बहुत खुश हुई और बोली कि बेटा खिरमिच, तूने बहुत अच्छा किया। अब मैं जंगल में जा रही हूँ, आधी रात को वापस आउँगी। तू खा पी-कर सो जाना।)

"रक्सिन के जाए के बाद खिरमिच हा भात-साग खा के सुते के तैयारी करिस। एक ठिक मोटहा असन गोल सुक्खा लकड़ी ला खटिया में रख के ओढ़ा दिहिस अउ अपन हा लुका के सुत गे।"

("राक्षसिन के जाने के बाद खिरमिच ने खाना खाकर सोने की तैयारी की। एक मोटी, गोल सूखी लकड़ी को उसने खाट पर रख कर ओढ़ा दिया और स्वयं छुप कर सो गया।")

"अधरतिया होइस तो रक्सिन हा घर आइस। वोखर नाक में मनखे के गंध हा आत रहिस हे।"

("आधी रात हुई तो राक्षसिन घर वापस आई। उसकी नाक में आदमी की गंध आ रही थी।")

"मानो गन, मानो गन, काला खाँव, काला बचाँव, इही खिरमिच ला खाँव रे कहिके वो हा खटिया में रखे लकड़ी ला कटरंग-कटरंग चाब-चाब के खा डारिस।"

("मानव गंध, मानव गंध, किसको खाउँ, किसको बचाऊँ, इसी खिरमिच को खाउँगी कहते हुए उसे खाट पर रखे लकड़ी को चबा-चबा कर खा डाला।")

"फेर हँउला भर पानी ला पी के कहिस के हत्त रे खिरमिच, हाड़ाच् हाड़ा रेहे रे, थोरको मास नइ रहिस तोर में।"

("फिर एक हुंडी पानी पीकर बोली कि हत्तेरे की रे खिरमिच, तू हड्डी ही हड्डी था, माँस जरा भी नहीं था तुझमें।")

"अइसे कहिके रक्सिन हा सुत गे।"

("ऐसा कह कर राक्षसिन सो गई।")

"बिहिनिया होइस तो खिरमिच चिचिया के कहिस जोहार ले बड़े दाई अउ दुआरी ला खोल के जल्दी से भाग गे।"

("सवेरा होने पर खिरमिच ने चिल्ला कर अपनी बड़ी माँ का अभिवादन किया और दरवाजा खोल कर जल्दी से भाग लिया।")

"मैं हा खिरमिच ला नइ खा पाएवँ कहिके रक्सिन ला अखर गे।"

("मैं खिरमिच को नहीं खा पाई सोचकर राक्षसिन को अखरने लगा।")

"कुछु दिन जाय के बाद रक्सिन हा फेर अपन छोटे बहिनी तीर आ के कहिस के बहिनी, आज मोला बने नइ लागत हे, रात में मोर संग सुते बर तोर कोनो लइका ला भेज देबे का?"

("कुछ दिन बीतने के बाद राक्षसिन ने अपनी छोटी बहन के पास आकर फिर से कहा कि बहन, आज मेरी तबियत ठीक नहीं है, रात में मेरी देखभाल के लिए अपने किसी बच्चे को भेज दोगी क्या?")

"रक्सिन के जाय के बाद छोटे बहिनी हा मूड़ुल ला कहिस, 'अरे मूड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

(राक्षसिन के जाने के बाद छोटी बहन ने मूड़ुल से कहा, 'अरे मूड़ुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")


"मूड़ुल हा कहिस, 'मैं नइ जाँव दाई, मोर मूड़ पिरात हे'।"

("मूड़ुल ने कहा, 'मैं नहीं जाता माँ, मेरा सर दर्द कर रहा है'।")

"तब वो हा हाथुल ला कहिस, 'अरे हाथुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

("तब उसने हाथुल से कहा, 'अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

हाथुल बोलिस, 'मैं नइ जाँव दाई, मोर हाथ पिरात हे'।"

("हाथुल बोला, 'मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है'।")

"फेर वो हा गोड़ुल ला कहिस, 'अरे गोड़ुल, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

("फिर उसने गोड़ुल से कहा, 'अरे हाथुल, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

गोड़ुल बोलिस, 'मैं नइ जाँव दाई, मोर गोड़ पिरात हे'।"

("गोड़ुल बोला, 'मैं नहीं जाता माँ, मेरा हाथ दर्द कर रहा है'।")

"आखिर में वो हा खिरमिच ला कहिस, 'अरे खिरमिच, आज रात के तैं हा अपन बड़े दाई घर चल देबे सुते बर'।"

("अन्त में उसने खिरमिच से कहा, 'अरे खिरमिच, आज रात को तू अपनी बड़ी माँ के घर चल देना'।")

"खिरमिच बोलिस, 'हव दाई, मैं हा चल दुहूँ'।"

("खिरमिच बोला, 'ठीक है माँ, मैं चल दूँगा'।")

"साँझ होइस तो खिरमिच हा जंगल में अपन बड़े दाई घर पहुँ गइस।"

("शाम हुई तो खिरमिच जंगल में अपनी बड़ी माँ के घर पहुँच गया।")

"वोखर बड़े दाई हा बहुत खुश होइस अउ कहिस के बेटा खिरमिच, बने करे रे। अब मैं हा जंगल में जात हौं, अधरतिया आहूँ। तैं हा खा-पी के सुत जाबे।"

("उसकी बड़ी माँ बहुत खुश हुई और बोली कि बेटा खिरमिच, तूने बहुत अच्छा किया। अब मैं जंगल में जा रही हूँ, आधी रात को वापस आउँगी। तू खा पी-कर सो जाना।)

"रक्सिन के जाए के बाद खिरमिच हा भात-साग खा के सुते के तैयारी करिस। ए बार वोहर अतेक-अतेक पिसान ला सान के वोखर एक ठिक पुतरा बनाइस अउ वोला खटिया में रख के सुता दिहिस अउ अपन हा लुका के सुत गे।"

("राक्षसिन के जाने के बाद खिरमिच ने खाना खाकर सोने की तैयारी की। इस बार उसने बहुत सारा आटा गूँथकर एक पुतला बनाया तथा उसे खाट पर सुला दिया और खुद छुप कर सो गया।")

"अधरतिया होइस तो रक्सिन हा घर आइस। वोखर नाक में मनखे के गंध हा आत रहिस हे।"

("आधी रात हुई तो राक्षसिन घर वापस आई। उसकी नाक में आदमी की गंध आ रही थी।")

"मानो गन, मानो गन, काला खाँव, काला बचाँव, इही खिरमिच ला खाँव रे कहिके वो हा खटिया में रखे पुतरा ला गुपुल-गुपुल के खा डारिस।"

("मानव गंध, मानव गंध, किसको खाउँ, किसको बचाऊँ, इसी खिरमिच को खाउँगी कहते हुए उसे खाट पर रखे पुतले को खा डाला।")

"फेर हँउला भर पानी ला पी के कहिस के हत्त रे खिरमिच, मासेच् मास रेहे रे, हाड़ा एक्को नइ रहिस तोर में।"

("फिर एक हुंडी पानी पीकर बोली कि हत्तेरे की रे खिरमिच, तू मांस ही मांस था, हड्डी एक भी नहीं थी तुझमें।")

"अइसे कहिके रक्सिन हा सुत गे।"

("ऐसा कह कर राक्षसिन सो गई।")

"बिहिनिया होइस तो खिरमिच चिचिया के कहिस जोहार ले बड़े दाई अउ दुआरी ला खोल के जल्दी से भाग गे।"

("सवेरा होने पर खिरमिच ने चिल्ला कर अपनी बड़ी माँ का अभिवादन किया और दरवाजा खोल कर जल्दी से भाग लिया।")

"अब ए खिरमिच ला नइ छोड़वँ कहिके रक्सिन खिरमिच ला खाए बर वोखर पिछू भागिस।"

("इस बार मैं खिरमिच को नहीं छोड़ूँगी कहकर राक्षसिन खिरमिच को खाने के लिए उसके पीछे भागी।")

"खिरमिच हा डेरा के एक ठिक उच्च असन रूख में चढ़ गे।"

("डर कर खिरमिच एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ गया।")

"रक्सिन ला रूख चढ़े बर नइ आत रहिस हे।"

("राक्षसिन को झाड़ पर चढ़ना नहीं आता था।")

"वो हा जंगल के जम्मो बघवा मन ला बुला लिहिस जउन मन बारा झिन रहिस हे।"

(उसने जंगल सभी बाघों को बुला लिया जो कि संख्या में बारह थे।")

"एक बघवा उप्पर दुसर बघवा चढ़त गइन अउ सब ले उप्पर बघवा के पीठ में रक्सिन हा चढ़ गे।"

("एक बाघ के ऊपर दूसरा बाघ चढ़ गया और सबसे ऊपर वाले बाघ की पीठ पर राक्षसिन चढ़ गई।")

"रक्सिन ला अपन तीर पहुँचत देख के खिरमिच हा चिचिया के कहिस के लान तो रे लान तो डण्डा ला, मारौं तरी के बण्डा ला।"

(राक्षसिन को अपने पास पहुँचते देख कर खिरमिच ने चिल्ला कर कहा कि डण्डा लाओ, मैं नीचे की छोटी पूछं वाले को मारूँगा।")

"एला सुन के सबले निच्चे के बघवा, जउन हा बण्डा रहिस, डेरा भागिस।"

("यह सुनकर सबसे नीचे का बाघ, जिसकी पूँछ छोटी थी, डर कर भागा।")

"वोखर भागे ले जम्मो बघवा मन दन्न दन्न गिर गे अउ उप्पर ले गिर के रक्सिन हा मर गे।"

("उसके भागने से सारे बाघ नीचे गिर गए और इतनी ऊँचाई से गिरने के कारण राक्षसिन मर गई।")

"खिरमिच हा खुशी खुशी घर आ गे।"

("खिरमिच खुशी के साथ अपने घर वापस आ गया।")

अब आपको क्या बताऊँ कि आज भी इस कहानी की याद आने पर मैं बासठ साल का बुड़्ढा खुद को बच्चा ही महसूस करने लगता हूँ।

7 comments:

समय चक्र said...

वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार

Smart Indian said...

वाह, मज़ेदार कहानी!

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति|

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर।

Rahul Singh said...

बाह, गजब मजा आ गे अवधिया जी. अइसनहे अउ किस्‍सा सुरता कर कर के लगाव, सख्‍त जरूरी हे अउ आपे कस मन कर सकत हे ए बूता ल.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मुझे लगा कि मैं एक बार फिर बचपन में लौट गया हूं. बढ़िया कहानी.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बचपन में नाना जी ‘नाऊ टुरा’ के नाम से यह छत्तीसगढ़ी कहानी सुनाया करते थे. वह एक नाई और उसके बेटे का किस्सा था. पात्र भले ही बदल जाएं किन्तु कथानक शाश्वत रहता है.सदा समसामयिक.
बहुत अच्छी प्रस्तुति है.