एक उच्च कोटि के फिल्म संगीत निर्देशक में जो प्रतिभाएँ होनी चाहिए, उन सभी प्रतिभाओं के होने के बावजूद भी संगीतकार जी.एस. कोहली को बतौर स्वतन्त्र संगीत निर्देशक के कुछ गिनी-चुनी कम बजट वाली तथा स्टंट फिल्में ही मिल पाईं। वैसे तो उन्होंने सन् 1960 में प्रदर्शित अपनी पहली ही फिल्म 'लम्बे हाथ' के गीत "प्यार की राह दिखा दुनिया को रोके जो नफरत की आँधी...." से अपनी पहचान बना ली थी, पर सर्वाधिक लोकप्रियता उन्हें सन् 1963 में प्रदर्शित फिल्म 'शिकारी' के गीत "तुमको पिया दिल दिया बड़े नाज से...." से ही मिली।
एक लम्बे समय तक संगीत निर्देशक ओ.पी. नैय्यर के सहायक रहे जी.एस. कोहली के संगीत में नैय्यर साहब के स्वर तथा रीदम शैली का प्रभाव स्पष्ट रूप से झलकता है। कोहली जी के संगीत में गायक कलाकारों के कण्ठस्वर के साथ बाँसुरी, सितार, सेक्सोफोन, गिटार, ग्रुप वायलिन आदि वाद्ययन्त्रों का संयोजन धुन को अत्यन्त कर्णप्रिय बना देता था, और उस पर ढोलक की विशिष्ट थाप तो धुन क मादकता से भर देता था। जरा याद करें 'अगर मैं पूछूँ जवाब दोगे ये दिल क्यों मेरा तड़प रहा है....', 'माँगी हैं दुआएँ हमने सनम इस दिल को धड़कना आ जाए...' जैसी गानों को! याद करके ही फड़क उठेंगे आप।
नैय्यर जी की तरह कोहली जी ने लता जी से कभी भी परहेज नहीं किया इसलिए कोहली जी के संगीत संयोजन में गाये लता जी के गानों को सुन कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि नैय्यर जी और लता जी का भी साथ बना होता तो वह 'सोने पर सुहागा; ही होता!
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