(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
आज अगर तुलसी आयें तो,
सन्देश नहीं दे पायेंगे;
लुप्त देख सद्ग्रंथों को,
आश्चर्यचकित रह जायेंगे।
विनय पत्रिका के बदले में,
घोर अवज्ञा वे पायेंगे;
'मानस' के देश निकाले पर,
भौचक्के से रह जायेंगे।
रामचन्द्र पर रावण का ही,
सब ओर विजय वे पायेंगे;
ऐसे में तुलसी भी कैसे,
शक्ति, शील, सौन्दर्य जगायेंगे!
अंग्रेजी द्वारा हिन्दी की,
घोर उपेक्षा ही पायेंगे;
तब तो तुलसी भी सोचेंगे,
कल हिन्दी को बिसरायेंगे।
लोप भारती का लख तुलसी,
अकुलायेंगे, पछतायेंगे;
जैसे आयेंगे भारत में,
वैसे ही वापस जायेंगे।
(रचना तिथिः 04-08-1985)
2 comments:
26 वर्षों में स्थिति और भी पातालवत हुयी है।
लोप भारती का लख तुलसी,
अकुलायेंगे, पछतायेंगे;
जैसे आयेंगे भारत में,
वैसे ही वापस जायेंगे।
सही लिखा था उन्होने .. जाने कब सुधरेंगे हालात !!
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