Monday, January 30, 2012

पोस्ट लिखना सिखा दीजिए

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽऽर! आइये, आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"लिख्खाड़ानन्द जी, टिप्पणी तो हम करते ही रहते हैं, पर कभी-कभी एकाध पोस्ट लिखने की भी इच्छा हो जाती है। सो, आप हमें पोस्ट लिखना सिखा दीजिए।"

"अरे इसमें सिखाने की क्या बात है? आप तो वैसे ही पोस्ट लिख सकते हैं।"

"हम कैसे पोस्ट लिख सकते हैं? हमें तो कोई विषय भी नहीं सूझता जिस पर पोस्ट लिखें।"

"टिप्पण्यानन्द जी, आप और मैं दोनों ही छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में रहते हैं ना! तो जो कुछ भी छत्तीसगढ़ और रायपुर के बारे में आपके पास जानकारी है उसे लिख डालिए। बन गई पोस्ट!"

"हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी है। बस इतनी सी जानकारी से भला पोस्ट कैसे बनेगा?"

"अच्छा ये बताइये कि छत्तीसगढ़ क्या है?"

"छत्तीसगढ़ तो एक राज्य है।"

"छत्तीसगढ़ राज्य कब बना?"

"01 नवम्बर 2000 को।"

"यह भारत का कौन सा नम्बर का राज्य है?"

"26वाँ।"

"इतना सब जानते हैं आप और कहते हैं कि 'हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी है'। अभी आप याद करेंगे तो आपको छत्तीसगढ़ और रायपुर के बारे में और भी बहुत सारी बातें याद आ जाएँगी।"

"हाँ, याद आया कि कहीं पढ़ा था कि रायपुर शहर का अस्तित्व नवीं शताब्दी से चला आ रहा है और  14 वीं सदी में रतनपुर राजवंश के राय ब्रह्मदेव ने इसे फिर से बसाया था तथा यहाँ अपनी राजधानी बनाई थी।"

" ये हुई ना बात! याने कि आपने जो पढ़ा है उसके हिसाब से रायपुर एक हजार दो सौ साल पुराना शहर है। पर हम आपको बताएँ कि छत्तीसगढ़ एक अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र है, यहाँ पर मौर्य वंश का भी शासन रह चुका है। छत्तीसगढ़ के पाटन ब्लॉक के तर्रीघाट में मौर्ययुगी मृदभांड मिल चुके हैं  इसके अलावा कुषाण सहित अन्य समकालीन वंश के अनेक सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। दूसरी से तीसरी शताब्दी तक यहाँ पर सातवाहन राजाओं का राज्य रहा है। चौथी सदी में राजा समुद्रगुप्त ने इस पर विजय प्राप्त कर लिया और पाँचवी-छठवीं सदी तक उनके वंशज यहाँ राज्य करते रहे। पाँचवी-छठवीं सदी में यह क्षेत्र कुछ काल तक शरभपुरी राजाओं में के अधिकार में रहा फिर नल वंश के शासक यहाँ शासन करने लगे। बाद में इस क्षेत्र का नियन्त्रण सोमवंशी राजाओं के हाथ में आ गया जिन्होंने सिरपुर को अपनी राजधानी बनाया था। सोमवंशी राजाओं में महाशिवगुप्त बालार्जुन सर्वाधिक पराक्रमी राजा रहे, उन्हीं की माता रानी वत्सला ने सिरपुर में लक्ष्मण मन्दिर का निर्माण करवाया था। आपको तो मालूम ही होगा कि सिरपुर का प्राचीन नाम 'श्रीपुर' था और 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग श्रीपुर आया था जिसने श्रीपुर के 70 मंदिरों व 100 विहारों का उल्लेख किया है।"

"वाह लिख्खाड़ानन्द जी! आपके पास तो नायाब जानकारी है! कहाँ से इकट्ठा कर लेते हैं इसे आप?"

"बस टिप्पण्यानन्द जी, कुछ पुस्तकें पढ़नी पड़ती हैं और कुछ नेट से सर्च कर करना पड़ता है।"

"अच्छा तो अब इसके आगे भी बताइये।"

" देखिये टिप्पण्यानन्द जी, वर्ष 1909 में प्रकाशित इम्पीरियल गजेटियर में लिखा है कि 'ऐसा प्रतीत होता है कि छत्तीसगढ़ एक अत्यन्त प्राचीन क्षेत्र है जहाँ भुइया एवं मुंडा वंश के शासकों का राज्य था जिन पर गोंड वंश ने विजय प्राप्त कर उन्हें सुदूर पहाड़ियों में भाग जाने के लिए विवश कर दिया था। गोंडों ने प्रथम बार इस क्षेत्र को नियमित व्यवस्था वाला शासन प्रदान किया।' साथ ही उसमें यह भी उल्लेख है कि 'विश्वास किया जाता है कि रायपुर नगर का अस्तित्व नौवीं शताब्दी से है तथा प्राचीन रायपुर वर्तमान रायपुर के दक्षिण पश्चिम में बसा था जिसका विस्तार खारून नदी तक था।' आपकी जानकारी के लिये हम आपको यह भी बता दें कि हमें यह पूरा इम्पीरियल गजेटियर नेट में ही मिल गया था जिसका लिंक है - http://dsal.uchicago.edu/reference/gazetteer/ ।"

"हमने रायपुर में किसी किले के बारे में भी कहीं पढ़ा था।"

"हाँ, रायपुर का वह प्राचीन किला अब पूर्णतः नष्ट हो चुका है। उस किले का निर्माण सन् 1460 में किया गया था। किले के दो तरफ दो तालाब थे जो कि आज भी विद्यमान हैं तथा विवेकानन्द सरोवर (बूढ़ा तालाब) एवं महराजबन तालाब के नाम से जाने जाते हैं।"

"अच्छा यह तो बताइये कि रायपुर में हैहयवंशी राजाओं का राज कब हुआ?"

"बहुत खोजने पर भी हमें यह जानकारी नहीं मिल पाई कि रायपुर कब हैहयवंशी शासकों के अधीन आया किन्तु ऐसा लगता होता है कि रायपुर लगभग ग्यारहवीं शताब्दी में रतनपुर से विभाजित होकर अलग राज्य बना और रतनपुर के राजा के कनिष्ठ पुत्र यहाँ के राजा बने।"

"बताते जाइये, मैं ध्यान से सुन रहा हूँ।"

"आगे की जानकारी इस प्रकार से है टिप्पण्यानन्द जी -

  • सन् 1741 में मराठा सेनापति, भास्कर पन्त, ने रतनपुर राज्य पर विजय प्राप्त की और उसे मराठा राज्य में जोड़ दिया।
  • सन् 1750 में रायपुर के राजा अमरसिंह मराठों के द्वारा पराजित हुए।
  • सन् 1750 से 1818 तक रायपुर पर मराठों का शासन रहा।
  • सन् 1818 में रायपुर को अंग्रेजों ने मराठों से हथिया लिया और वहाँ सन् 1818 से 1830 तक अंग्रेजों का शासन रहा। सन् 1818 में ही अंग्रेजों ने रायपुर को छत्तीसगढ़ का मुख्यालय बनाया।
  • सन् 1830 में रायपुर पर फिर से मराठों का अधिकार हो गया जो कि सन् 1853 तक चला।
  • सन् 1853 में पुनः रायपुर अंग्रेजों के अधीन आ गया और स्वतन्त्रता प्राप्ति तक उन्हीं का शासन रहा।
  • इम्पीरियल गजेटियर के अनुसार रायपुर पर अंग्रेजों के अधिकार प्राप्ति के समय रायपुर के प्राचीन मन्दिर दूधाधारी मन्दिर का जीर्णोद्धार हो रहा था।
  • अंग्रेजों के काल में रायपुर कमिश्नर डिवीजन, डिवीजनल जज, इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स, सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ पोस्ट ऑफिस तथा इरीगेशन इंजीनियर के प्रतिनिधि आदि का मुख्यालय था। सेन्ट्रल प्राव्हिंसेस के तीन सेन्ट्रल जेलों में से एक जेल रायपुर में ही था।
  • सन् 1861 में बिलासपुर को रायपुर जिला से निकाल कर अलग जिला बनाया गया।
  • सन् 1867 में रायपुर में म्युनिसपालिटी बनाया गया।
  • सन् 1892 रायपुर में जल वितरण के लिए बलरामदास वाटर वर्क्स, जिसके मालिक राजनांदगाँव के राजा बलरामदास थे, की स्थापना हुई जो खारून नदी से पानी के वितरण का कार्य करता था।
  • उस समय पीतल के सामान बनाने का कार्य, लकड़ी पर रोगन लगाने का कार्य, कपड़ा बुनना, सोनारी कार्य आदि रायपुर के प्रमुख व्यवसाय थे।
  • उन दिनों रायपुर में दो प्रिंटिंग प्रेस थे जिनमें अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू और ओड़िया भाषा में छपाई का कार्य होता था।
  • रायपुर में एक संग्रहालय भी था जिसका निर्माण सन् 1875 में हुआ था।
  • शिक्षा के लिए राजकुमार कॉलेज, जहाँ पर राजा, जमींदारों, जागीरदारों एवं रईसों के सन्तानों को ही दाखिला दिया जाता था, के साथ ही गव्हर्नमेंट हाई स्कूल भी था, इसके अलावा अनेक अन्य स्कूल भी थे। चिकित्सा के लिए बहुत सार डिस्पेंसरीज भी थे।
‌और कुछ पूछना है?"

"बस लिख्खाड़ानन्द जी, अभी इतना काफी है। बाद में यदि कुछ शंका हुई तो पूछ लूँगा।"

"अब तो आपके पास काफी मसाला इकट्ठा हो गया है़, अब जल्दी से लिख डालिये अपना पोस्ट।"

"धन्यवाद लिख्खाड़ानन्द जी! अब मैं चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्काऽर!"

11 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

काफी सारी जानकारी लाये हैं रायपुर छत्तीसगढ़ के बारे में...

प्रवीण पाण्डेय said...

रोचक ढंग से प्रस्तुत ऐतिहासिक आलेख...

Rahul Singh said...

मजा आ गया, सलामत रहें लिख्खाड़ानन्द जी, प्रतीक्षा रहेगी.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

असल बात ला आज लिखे हस गौ सिरतोन मां, अड़बड़ दिन ले सोचत रहेवं अतेक अकन पोस्ट कैसे लिख डारथस। :)) जय हो लिख्खाड़ानन्द जी के बड़ दिन मा दर्शन पाएंव।

Padm Singh said...

सीख लिए जी पोस्ट लिखना... पन गियान कहाँ से लावूँ ?

वाणी गीत said...

रोचक इतिहास !

Archana Chaoji said...

अरे वाह! इतने रोचक रूप से लिखा है कि मुझ जैसे न पढ़ने वाले ने भी पूरा पढ़ लिया ..अब बतौर प्रयोग पॉडकास्ट भी बनाया जा सकता है ..नाटक की शक्ल में ..:-)

निर्मला कपिला said...

रोचक पोस्ट।

BS Pabla said...

पोस्ट लिखना तो सिखा दिया अब टिप्पणी लिखना भी सिखा ही दीजिए

क्या हमेशा

रोचक पोस्ट
अद्भुत वर्णन
बढ़िया विवरण
आपका आभार
अच्छा लगा पढ़ कर
कभी मेरे ब्लॉग पर भी आईए
बहुत अच्ची जानकारी
आपका आभार

जैसा लिखते रहें! :-)

BS Pabla said...

वैसे हमारे छत्तीसगढ़ का इतिहास इतना विस्तृत है कि कई बार मुझे हैरानी होती है कि इस क्षेत्र विशेष की ओर ध्यान क्यों नहीं जाता पर्यटकों का

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।