Friday, September 27, 2013

छत्तीसगढ़ी हाना (कहावते) - 1

किसी भी प्रदेश की लोकोक्तियां उस प्रदेश के लोक जीवन को समझने में सहायता करती है। वहाँ के लोग क्या सोचते हैं, किस चीज को महत्व देते हैं, किसे नकारते हैं, ये सब वहां के "हाना'' प्रकट करती हैं।
  • खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय।
    यदि कोई स्वयं के पास खेती होने के बावजूद भी पैसों के लिए परदेश जाता है तो उसका जन्म ही निरर्थक है।
  • आषाढ़ करै गाँव-गौतरी, कातिक खेलय जुआ।
    पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका लुआ।
    आषाढ़ के महीने में गाँव-गाँव घूमते रहने तथा कार्तिक के महीन में जुआ खेलते रहने वाले किसान उसको पड़ोसी व्यंगपूर्वक पूछते हैं कि कितनी फसल हुई?

  • बरसा पानी बहे न पावे, तब खेती के मजा देखावे
    खेती का मजा तो तब है जब बरसात का पानी बहने ना पावे, खेत में ही रहे।
    (इस कहावत से स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में वाटर हार्वेस्टिंग की धारणा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है।)
  • अपन हाथ मां नागर धरे, वो हर जग मां खेती करे।संसार में खेती वही कर सकता है जो स्वयं हल चलाये। जो व्यक्ति खुद हल चलाता है, वही व्यक्ति अच्छा खेती कर सकता है।
    (दूसरों के भरोसे किसानी नहीं हो सकती।)
  • खेती अपन सेती
    इस हाना का अर्थ भी उपरोक्त हाने जैसा है।
  • तीन पईत खेती, दू पईत गाय।अर्थात् दिन में तीन बार खेत जाना और दो बार गाय की सेवा करना।
  • कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागरकलियुग में लड़का कचहरी जाता है और उसका बूढ़ा बाप खेत में हल चलाता है।(आज के बच्चों को खेती से लगाव नहीं रहा।)
  • भाठा के खेती, अउ चेथी के मार
    भाठा जमीन में खेती और गर्दन पर लगने वाली मार, दोनों ही कष्टदायक होते हैं।
  • जइसन बोबे, तैसनेच लूबेजैसा बोओगे, वैसा काटोगे।
    (बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय।)
  • तेल फूल में लइका बढे, पानी से बाढे धान
    खान पान में सगा कुटुम्ब, कर वैना बढे किसान

    तेल-फूल से बच्चा बड़ा होता है, पानी से धान बढ़ता है, लोक-व्यवहार से रिश्ते बढ़ते हैं और परिश्रम करके किसान बढ़ता है।
  • गेहूँ मां बोय राई, जात मां करे सगाई।गेहूँ के साथ सरसों बोना चाहिये और सगाई विवाह अपनी जाति में ही करना चाहिए।

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही रोचक

Unknown said...

जर गे फेर अइंठ नइ गिस