चाणक्य नीति - अध्याय 2 (Chanakya Neeti in Hindi)
- औरतो के कुछ नैसर्गिक दुर्गुण है -
झूठ बोलना
कठोरता
छल करना
बेवकूफी करना
लालच
अपवित्रता
निर्दयता
- सामान्य तप का फल नहीं है -
भोजन के योग्य पदार्थ की उपलब्धता और भोजन करने की क्षमता होना
सुन्दर स्त्री की प्राप्ति और उसे भोगने के लिए काम शक्ति होना
पर्याप्त धनराशि का होना तथा दान देने की भावना
- वह व्यक्ति धरती पर स्वर्ग को पा लेता है -
जिसका पुत्र आज्ञांकारी हो
जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती हो
जो अपने कमाये धन से संतुष्ट हो
- पुत्र वही है जो पिता का आज्ञापालन करे, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर पूरा विश्वास किया जा सके और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।
- ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए जो आपके मुँह के सामने मीठी बातें करते हैं, किन्तु आपके पीठ पीछे आपके विनाश की योजना बनाते है। ऐसा करने वाले उस विष के घड़े के समान है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी हो।
- किसी बुरे मित्र पर तो कभी विश्वास करें हीं नहीं, साथ ही किसी अच्छे मित्र पर भी विश्वास न करें, क्योंकि आपसे रुष्ट होने पर ऐसे लोग आप के सारे रहस्यों को अन्य लोगों को बता देंगे।
- जिस किसी भी कार्य को करने के लिए आपने निश्चय किया है, उसे किसी के समक्ष प्रकट न करें तथा बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से उसे कार्यरूप में परिणित कर दें।
- मूर्खता निश्चित रूप से कष्ट देती है, वैसे ही युवावस्था भी निःसन्देह कष्टमय है, किन्तु सबसे अधिक दुःखदायी होता है किसी अन्य के घर जाकर उससे उपकृत होना।
- प्रत्येक पर्वत पर माणिक्य नहीं मिलते, प्रत्येक हाथी के सिर पर मणि नहीं होता, प्रत्येक स्थान में साधु नहीं मिलते और प्रत्येक वन में चन्दन का वृक्ष नहीं होता।
- बुद्धिमान व्यक्ति को अपने पुत्रों को नैतिकता की शिक्षा देनी चाहिए, क्योंकि नीतिशास्त्र में निपुण एवं अच्छा व्यवहार करने वाले पुत्र परिवार की कीर्ति होते हैं।
- अपनी सन्तान को शिक्षा से वंचित रखने वाले माता-पिता अपनी ही सन्तान के शत्रु होते हैं, क्योंकि विद्या से रहित बालक विद्वानों की सभा में वैसे ही तिरस्कृत होते हैं जैसे कि हंसों की सभा में बगुले।
- बच्चों मे गलत आदते पैदा करती है और ताड़ना से अच्छी आदतें, इसलिए बच्चों को, जरुरत पड़ने पर, अपने शिष्यों दण्डित करना चाहिए, लाड कभी भी ना करें।
- बिना एक श्लोक, आधा श्लोक, चौथाई श्लोक, या श्लोक का केवल एक अक्षर सीखे या दान, अभ्यास या कोई पवित्र कार्य किये बिना किसी भी दिन को नहीं जाने देना चाहिए।
- बिना अग्नि के शरीर को जलाती हैं -
पत्नी से वियोग
अपनों से अनादर
बचा हुआ ऋण
दुष्ट राजा की सेवा
गरीबी
अव्यवस्थित सभा
- निःसन्देह शीघ्र नष्ट हो जाते हैं -
नदी किनारे के वृक्ष
दूसरे व्यक्ति के घर में रहने वाली स्त्री
बिना मंत्री का राजा
- ब्राह्मण का बल है तेज और विद्या, राजा का बल है उसकी सेना, वैश्य का बल है उसका धन और शूद्र का बल है उसकी सेवा-भावना।
- वेश्या को निर्धन व्यक्ति का त्याग करना पड़ता है, प्रजा को पराजित राजा का त्याग करना पड़ता है, पक्षियों को फलरहित वृक्ष का त्याग का त्याग करना पड़ता है और अतिथियों को भोजन करने के पश्चात् अपना आतिथ्य करने वाले के घर का त्याग करना पड़ता है।
- दक्षिणा मिल जाने पर ब्राह्मण यजमान के घर से चला जाता है, विद्या प्राप्ति के बाद शिष्य गुरु के घर से चला जाता है और आग से जल जाने पर पशु वन से चले जाते हैं।
- दुराचारी, कुदृष्टि रखने वाले तथा धूर्त व्यक्ति के साथ मित्रता करने वाले का शीघ्र नाश हो जाता है।
- प्रेम और मित्रता बराबर वालों में ही फलता है, राजा की सेवा करने वाले को ही सम्मान मिलता है, सार्वजनिक व्यवहार में व्यावसायिक बुद्धि वाला ही अच्छा होता है और सुन्दर महिला अपने घर में ही सुरक्षित होती है।
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