Thursday, February 19, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 6 (Chanakya Neeti in Hindi)


  • शास्त्रों के श्रवण से धर्म का ज्ञान होता है, द्वेष का नश होता है, ज्ञान की प्राप्ति होती है और माया से आसक्ति दूर होती है।

  • पक्षियों में कौवा नीच है; पशुओं में कुत्ता नीच है; तपस्वियों में पाप करने वाला तपस्वी घृणास्पद है; और मनुष्यों में दूसरों की निन्दा करने वाला सबसे बड़ा चांडाल है।

  • राख से माँजने पर काँसे का बर्तन शुद्ध होता है; इमली से माँजने से तांबे का बर्तन शुद्ध होता है; रजस्वला होकर स्त्री शुद्ध होती है; और तीव्र गति से प्रवाहित होकर नदी निर्मल होती है।

  • राजा, ब्राह्मण और योगी भ्रमण में जाते हैं तो सम्मानित होते हैं; किन्तु घर से बाहर अकारण भ्रमण करने वाली स्त्री भ्रष्ट होती है।

  • पास में धन होने पर अनेक मित्र व सम्बन्धी बनते हैं; धनवान ही सद्पुरुष एवं पण्डित कहलाता है।

  • होनी अर्थात् ईश्वरेच्छा जैसी होती है वैसी ही बुद्धि और कर्म हो जाते हैं; सहायक भी ईश्वरेच्छा से प्राप्त होते हैं।

  • काल ही पंच भूतो (पृथ्वी,जल, वायु, अग्नि, आकाश) को पचाता है; काल ही प्राणियों का संहार करता है; काल की सीमा को कोई भी नहीं लांघ सकता; काल के जागृत होने पर प्राणी सुसुप्त अवस्था में चला जाता है।

  • जन्म से अंधे व्यक्ति को दिखाई नहीं देता; कामासक्त व्यक्ति को सुझाई नहीं देता; मद से मतवाला व्यक्ति सोच नहीं सकता; और स्वार्थी व्यक्ति को स्वयं में कोई दोष दिखाई नहीं देता।

  • जीव अनेक प्रकार के अच्छे-बुरे कर्म करता है और अपने कर्मों के फल को भोगता है; जीव स्वयं संसार के माया-मोह में फँसता है और अन्त में संसार को त्याग देता है।
  • राजा को प्रजा के द्वारा किये गए पाप को, राजपुरोहित को राजा के द्वारा किए गये पाप को, पति को पत्नी के द्वारा किए गये पाप को और गुरु को शिष्यों के द्वारा किए गये पाप को भोगना पड़ता है।

  • कर्ज में डूबा रहने वाला पिता शत्रु है; व्याभिचारिणी माता शत्रु है; मूर्ख पुत्र शत्रु है; और सुन्दर स्त्री शत्रु है।

  • लोभी को धन से, घमंडी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसके अनुसार व्यवहार से और पंडित को सच्चाई से वश में करना चाहिए।

  • दुष्ट राजा के राज्य में रहने की अपेक्षा बिना राज्य के ही रहना उत्तम है; दुष्ट मित्र के साथ रहने की अपेक्षा बिना मित्र के ही रहना उत्तम है; नीच शिष्य बनाने अपेक्षा शिष्य न बनाना ही उत्तम है; और दुष्ट एवं कुलटा स्त्री के साथ रहने की अपेक्षा बिना स्त्री के ही रहना उत्तम है।

  • दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख कहाँ? दुष्ट मित्र के साथ रहने से शान्ति कहाँ? दुष्ट एवं कुलटा नारी के संग रहने में सुख कहाँ? नीच शिष्य को ज्ञान देने में कीर्ति कहाँ?

  • मनुष्य को शेर तथा बगुले से एक, गधे से तीन, मुर्गे से चार, कौवे से पाँच और कुत्ते से छः गुण सीखना चाहिए।

  • जिस प्रकार से सिंह अपने शिकार को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, एक बार पकड़ लेता है तो छोड़ता नहीं, उसी प्रकार से किसी काम को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, एक बार हाथ में ले लेने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए।

  • जिस प्रकार से बगुला अपने समस्त इन्द्रियों को संयम में रखकर शिकार करता है उसी प्रकार देश, काल और अपने सामर्थ्य को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए।

  • बहुत थक जाने के बावजूद भी बोझ ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए।

  • अत्यंत थक जाने पर भी बोझ को ढोना, ठंडे-गर्म का विचार न करना, सदा संतोषपूर्वक विचरण करना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए।

  • ब्राह्ममुहूर्त में जागना, रण में पीछे न हटना, किसी वस्तु का बन्धुओ में बराबर भाग करना और स्वयं आक्रमण करके दूसरे से अपने भक्ष्य को छीन लेना, ये चार बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए।

  • गुप्त स्थान में मैथुन करना, छिपकर चलना, समय-समय पर सभी इच्छित वस्तुओं का संग्रह करना, सभी कार्यो में सावधानी रखना और किसी पर भी जल्दी विश्वास न करना - ये पाँच बातें कौवे से सीखना चाहिए।

  • भोजन करने की अत्यधिक शक्ति रखने के बावजूद भी थोड़े भोजन से ही संतुष्ट हो जाना, गहरी नींद में भी जरा-सा खटका होने पर ही जाग जाना, अपने रक्षक से प्रेम करना और शूरता दिखाना - ये छः गुण कुत्ते से सीखना चाहिए।
  • उपरोक्त गुणों को अपने जीवन में उतारकर आचरण करने वाला मनुष्य सदैव सभी कार्यो में विजय प्राप्त करता है।

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