Tuesday, February 24, 2015

चाणक्य नीति - अध्याय 7 (Chanakya Neeti in Hindi)

  • बुद्धिमान व्यक्ति धन के नाश, मन के संताप, पत्नी के दोष, स्वयं के द्वारा खाये जाने वाले धोखा और स्वयं के अपमान को किसी को नहीं बताते।

  • वही व्यक्ति सुखी होता है जो धन सम्बन्धी व्यवहार करने में, ज्ञानर्जन में, भोजन करने में और ईमानदारी से काम करने में संकोच नहीं करता।

  • जो सुख संतोषी व्यक्ति को संतोष प्राप्त करने में मिलता है वही सुख लोभी व्यक्ति को धन प्राप्त करने पर भी नहीं मिलता।

  • स्वयं की पत्नी से, उपलब्ध भोजन से और अपने कमाये धन से हमेशा संतुष्ट रहना चाहिए। किन्तु विद्याभ्यास, तप और परोपकार करने में हमेशा असंतुष्ट रहना चाहिए।

  • दो ब्राह्मणों, ब्राह्मण और यज्ञ की अग्नि, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल के बीच कभी नहीं पड़ना चाहिए।

  • अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कन्या, वृद्ध और बालक को कभी भी चरण से स्पर्श नहीं करना चाहिए।

  • सींग वाले पशु से दस हाथ की, घोड़े से सौ हाथ की और हाथी से हजार हाथ की दूरी रखना चाहिए किन्तु जिस स्थान में दुष्ट हों उस स्थान का ही त्याग कर देना चाहिए।

  • हाथी को अंकुश से, घोड़े को चाबुक से, सींग वाले पशु को डंडे से और दुष्ट व्यक्ति को तलवार से नियन्त्रित करना चाहिए।

  • ब्राह्मण भोजन पाकर, मोर मेघ की गर्जन सुनकर, साधु दूसरों की सम्पन्नता देखकर और दुष्ट दूसरों को विपत्ति में देखकर प्रसन्न होते हैं।

  • स्वयं से अधिक शक्तिशाली को समझौता करके, अपने समान शक्ति वाले को स्थिति अनुसार युद्ध या समझौता करके और अपने से दुर्बल को अपनी शक्ति का प्रभाव दिखाकर वश में करना चाहिए।

  • राजा की शक्ति बाहुबल में, ब्राह्मण की शक्ति ज्ञान में और स्त्री की शक्ति सौन्दर्य तथा माधुर्य में होती है।

  • अत्यधिक सरल और सीधा होना भी अच्छी बात नहीं है; वन के सीधे वृक्ष ही काटे जाते हैं, टेढ़े नहीं।

  • जिस प्रकार से सरोवर के पानी सूख जाने पर हंस सरोवर को छोड़ देता है उसी प्रकार से व्यक्ति के सद्व्यवहार करना छोड़ देने पर लोग उससे नाता तोड़ लेते हैं।

  • जिस प्रकार से स्थिर जल से प्रवाहित जल अच्छा होता है उसी प्रकार से संचित किये जाने वाले धन से दान दिया जाने वाला धन अच्छा होता है।

  • संसार में जिस व्यक्ति के पास धन है उसके सभी मित्र और सगे-सम्बन्धी हैं, वही श्रेष्ठ माना जाता है, उसे ही मान-सम्मान मिलता है और वही शानोशौकत से जीता है।

  • परोपकार करना, मधुर वचन कहना, भगवान की आराधना करना और ब्राह्मण को भोजन तथा दान से सन्तुष्ट करना सद्पुरुए और देवताओं के गुण हैं।

  • अत्यधिक क्रोध करना, कठोर वचन कहना, सम्बन्धियों से बैर रखना, नीच व्यक्ति से मित्रता करना तथा नीच कुल के व्यक्ति की नौकरी करना - ये पाँच कार्य ऐसे हैं जो भूलोक में ही नरक के दुखों का आभास कराते हैं।

  • शेर की मांद में जाकर गजमुक्ता पाया जा सकता है और सियार के मांद में जाकर सिर्फ बछड़े की पूँछ या गधे का चमड़ा ही पाया जा सकता है।

  • विद्या से हीन व्यक्ति किसी कुत्ते की पूँछ के समान होता है जिससे न तो इज्जत ढाँकी जा सकती है और न ही मक्खियों को दूर किया जा सकता है।

  • वाणी की पवित्रता, मन की स्वच्छता और इन्द्रियों को वश में रखने का तब तक कुछ भी महत्व नहीं है जब तक कि मन में करुणा न हो।

  • जिस प्रकार से दिखाई न देने के बावजूद भी फूल में सुगंध, तिल में तेल, लकड़ी में अग्नि, दूध में घी और गन्ने में गुड़ विद्यमान रहता है उसी प्रकार से शरीर में आत्मा विद्यमान रहती है।

No comments: