(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
बच्चों का गुमसुम हो जाना,
युवकों का माला टरकाना,
बूढ़ों का श्रृंगार सुनाना,
नारी का निर्लज हो जाना,
किसको अच्छा लगता है?
दूध-रहित बचपन पलता है,
दुर्बल यौवन सिर धुनता है,
वृद्ध वर्ग सपने बुनता है,
तृष्णा में खुद को ठगता है,
यह किसको अच्छा लगता है?
बचपन होता निश्छल जीवन,
प्रेमांकुर ही पाता यौवन,
अध्यात्म-ज्ञान ही वृद्धों का धन,
बने सफल सब का ही जीवन,
यह सबको अच्छा लगता है।
(रचना तिथिः 25-09-1983)
1 comment:
बचपन होता निश्छल जीवन,
प्रेमांकुर ही पाता यौवन,
अध्यात्म-ज्ञान ही वृद्धों का धन,
बने सफल सब का ही जीवन,
यह सबको अच्छा लगता है।
--बिल्कुल सही. बाबू जी यह रचना शिक्षा देती है.
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