(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
अगर कहीं मैं तोता होता
बेशरमी पर कभी न रोता।
कविता कानन के पुष्पों को
कुतर चोंच को पैनी करता,
काव्य-पींजड़े से उड़ जाता
छन्द अलंकारों को चरता;
झटपट अटपट गटपट कविता रचता होता।
अगर कहीं मैं तोता होता।
आँखें फेर लिया करता मैं,
रामायण के वातायन से
टें टें टें टें रटन लगाता
काम न रखता कुछ गायन से,
सीताराम न रटता, राधेश्याम न कहता, नास्तिक होता।
अगर कहीं मैं तोता होता।
टुनक काटता मैं संस्कृति को
भाषा की खिचड़ी खाता,
दर्पण में प्रतिबिम्ब देख कर
गिटपिट गिटपिट शोर मचाता।
हिन्दी की चिन्दी कर देता अंग्रेजी में जगता सोता।
अगर कहीं मैं तोता होता।
चोंच चलाता सबके ऊपर
भर घमण्ड में पंख फुलाता,
आँखें फेर लिया करता मैं
निन्दा सुनता और सुनाता।
आडम्बर में डूबा रहता, बीज कलह कि निशिदिन बोता।
अगर कहीं मैं तोता होता।
3 comments:
तोता के ऊपर एक कविता मैंने भी पढी थी बहुत पहले.कवि का नाम तो याद नही है पर कविता के कुछ अंश याद है सो लिख रहा हूँ.
काश अगर मे तोता होता
तो क्या होता?
तो क्या होता?
तो क्या होता?
बालकिशन जी यह 1951 की बहुचर्चित कविता रघुवीर सहाय की है। शीर्षक है- अगर कहीं मैं तोता होता और पूरी कविता इस प्रकार है--
अगर कहीं मैं तोता होता
तोता होता तो क्या होता
तोता होता।
होता तो फिरतोता होता?
होता, फिर क्या?
होता क्या? मैं तोता होता
तोता तोता तोता तोता
तो तो तो तो ता ता ता ता
बोल पट्ठे सीता राम
बहुत बढ़िया कविता है ।
घुघूती बासूती
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