(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
जनता बड़ी अनाड़ी,
पहन रखी है साड़ी,
हाय राम अब क्या होगा!
जनता शासक चुनती है,
चुन कर मूरख बनती है,
हाय राम अब क्या होगा!
जनता मंहगाई सहती है,
नव-वधू-सी चुप रहती है,
हाय राम अब क्या होगा!
जनता जनता को छलती है,
छोटी मछली को बड़ी निगलती है,
हाय राम अब क्या होगा!
नेता कुर्सी पकड़ते हैं,
अफसर खूब अकड़ते हैं,
हाय राम अब क्या होगा!
मूरख आगे बढ़ते हैं,
सज्जन पीछे हटते हैं,
हाय राम अब क्या होगा!
चमचे आँख दिखाते हैं,
अपनी धौंस जमाते हैं,
हाय राम अब क्या होगा!
सत्य छिपा जाता है,
झूठ उमड़ता आता है,
फिर भी हम कहते हैँ,
सत्यमेव जयते!
हाय राम अब क्या होगा!
1 comment:
बहुत खूब! बिल्कुल सच्ची अभिव्यक्ति है.
Post a Comment