(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
ऋषियों ने, मुनियों ने सोचा,
क्यों न करें हम सम्मेलन,
ऋषियों-मुनियों का बहुमत है,
क्यों न करें फिर आन्दोलन।
मुनि-मण्डल के मंत्री नारद,
संयोजक थे सम्मेलन के ,
दुर्वासा लीडर बन बैठे,
महा उग्र आन्दोलन के।
अध्यक्ष व्यास ने शौनक को,
अपना एडीकांग बनाया,
सबने छाना सरस सोमरस,
शून्य काल में शोर मचाया।
पाराशर-सत्यवती-नन्दन,
व्यास दलित के रक्षक थे,
ब्राह्मण-धीवर की सन्तति वे
शेड्यूल कॉस्ट के अग्रज थे।
आरक्षण का प्रस्ताव रखा,
सूत महामुनि ने हँस कर,
स्वीकार किया ऋषि-मुनियों ने,
बहुमत के चक्कर में फँस कर।
अगला प्रस्ताव किया पारित,
साधु-सन्त को त्याग दिया,
साधू साधक हैं, सिद्ध नहीं,
सन्तों ने सबका अन्त किया।
इस पर सम्मेलन में शोर हुआ,
उग्र प्रचण्ड मचा हंगामा,
देख उसे ढीला हो जाता,
संसद का पाजामा।
(रचना तिथिः 24-08-1984)
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