(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
कवियों से अनुरोध यही है,
पंजावादी बन जाओ;
सुख-सम्पति-सत्ता चाहो तो,
पंजे के नीचे आओ।
पंजा व्यापक है इस युग में,
पंजे से उद्धार नहीं;
नर का हो या फिर नर-पशु का,
चाहे हो खूंख्वार सही।
पंचशील से पंजे तक का,
सब इतिहास निराला है;
पंजा खूनी रहा निरन्तर,
तन उजला मन काला है।
पंजा-पंजा हुआ देश में,
पंजे की महिमा भारी है;
पंजे पैने करें भेड़िया,
पंजे की लीला न्यारी है।
पंजा ख़ून किया करता है,
पंजे से ही देते घूस;
पंजा से पंजा मिल जाता,
फिर क्यों कोई हो मायूस।
पंजा कवच पहन नेतागण,
मनमानी कर लेते हैं;
लोगों को कुछ और नहीं तो,
वादा तो दे देते हैं।
(रचना तिथिः शनिवार 21-11-1980)
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