(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
नया साल है-
लेकिन कौन खुशहाल है?
जो पहले चलता था
वही अब भी बहाल है।
नये वर्ष में-
क्या स्वभाव बदल जायेगा?
जो बदरंग रंग जमा था अब तक,
वही रंग फिर रंग लायेगा।
दुनिया पशुता का कमाल है
नया साल है।
वर्ष आते और जाते रहते हैं,
साथ में खुशियाँ और गम लाते रहते हैं,
सच तो यह है कि-
काल का चक्र एक-सा चलता है,
वर्ष नहीं बदलते पर
भावना का संसार बदलता है
और संसार एक जंजाल है,
नया साल है।
कल्याण का संकल्प दृढ़ है तो,
अवश्य ही नया साल है,
अन्यथा न नूतन है न पुरातन है वरन्
सृष्टि में निरन्तर महाकाल है,
नया साल है।
(रचना तिथिः 01-01-1982)
1 comment:
बढ़िया कहा है !
घुघूती बासूती
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