Thursday, March 13, 2008

ऋतुराज वसन्त

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

निर्मल नभ, मन्द पवन,
पुष्प-गन्ध की व्यापकता,
खग-कलरव, उन्मन भव,
मत्त मदन की मादकता।

अलि गण गुंजन, मुकुलित चुम्बन,
अमराई में मंजरि जाल,
रक्तिम टेसू, अग्नि अन्देशू,
विरह वह्नि की भीषण ज्वाल।

सरसों का पीताम्बर,
अभ्रहीन नीलाम्बर,
उन्मन उन्मन सबका मन,
शीतल निर्झर, कोकिल का स्वर,
ऋतु वसन्त का अनमोल रतन।

(रचना तिथिः रविवार 15-02-1981)

1 comment:

अमिताभ मीत said...

उत्तम रचना. पढ़वाने का आभार.