Friday, December 5, 2008

किसके प्रति रोष है लोगों का?

मुंबइ के हादसे के बाद लोगों में रोष तो है पर किसके प्रति है? आतंकवाद के प्रति या पाकिस्तान के प्रति या राजनीतिबाजों के प्रति या फिर स्वयं अपने ही प्रति कि आखिर हम क्यों कुछ कर नहीं पाये। सब कुछ गडमड सा हो गया है।

मानसिक हलचल में एकदम सही प्रश्न उठाया गया है कि आखिर घायलों के प्रति किसे सहानुभूति है। उनका हालचाल जानने के लिये न तो मोमबत्तियाँ जलाने वाले ही गये और न ही मीडिया गई। मीडिया तो सिर्फ लोगों के रोष को और भी हवा देने में लगी हुई है। लोगों और राजनीतिबाजों के बीच टकराव करवा के उन्हें नई नई स्टोरीज़ जो मिलेंगी। चौबीसों घंटे उन्हें अपना चैनल चलाना है तो दिखाने के लिये नई स्टोरीज़ भी तो चाहिये न?

रोष में आने से या फिर आपस मे कलह करने से कुछ भी नहीं होने वाला है। अब तो भैया यह सोचना है कि जो कुछ भी हुआ है वह फिर से भविष्य में फिर से न हो। भविष्य में आतंकवादी हमारी तरफ नजरें उठा कर देख भी न पायें। और यह तभी हो सकता है जब हम सभी मिलकर एक जुट हो पायेंगे।

4 comments:

P.N. Subramanian said...

भैया दस दिनों तक चिट्ठो के लिए मसाला भी तो मिला.

नटखट बच्चा said...

एकजुट कैसे होयेगे अंकल ?अपने अपने घरो में ब्लॉग लिखकर ?कुछ कर तो रहे है चाहे जैसा भी ? यहाँ तो लोग चाँद तारो पर कविता लिख रहे है

Gyan Dutt Pandey said...

नटखत बच्चा नटखट होने के साथ बहुत बुद्धिमान भी है।

डॉ .अनुराग said...

ठीक कहा इस बच्चे ने !