Monday, September 7, 2009

क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को दो लात

सबेरे की चाय पीने के बाद कम्प्यूटर चालू करके एक दो टिप्पणी की ही थी कि मित्र महोदय आ पहुँचे। कानों में इयरफोन ठुँसा हुआ था। चेहरे पर मग्नता के भाव और मुंडी हिलती हुई। शायद संगीत का आनन्द ले रहे थे।

मैंने उनके स्वागत में कहा, "आओ, आओ! बैठो।"

"क्याऽऽऽ?" वो इतने जोर से बोले जैसे मैं बहरा हूँ।

मैंने भी जोर से चिल्ला कर कहा, "अरे बैठो भाई।"

कुर्सी पर बैठकर मुंडी डुलाते वे हुए मुझसे भी ज्यादा जोर से बोले, "और सुनाओ क्या हाल है?"

उनकी आवाज से मेरे कान झन्ना गए। आपने भी अवश्य ही कई बार अनुभव किया होगा कि यदि किसी के कानों में इयरफोन ठुँसा हो तो वह सामने वाले से कैसे ऊँची आवाज में बात करता है।

मैंने उनके कानों से इयरफोन खींच कर निकाल दिया और कहा, "इतने जोर से चिल्लाकर क्यों बोल रहे हो? क्या मैं बहरा हूँ?"

"मैं कहाँ चिल्ला रहा हूँ?"

"अरे चिल्ला रहे थे यार तुम। इयरफोन लगा कर खुद तो बहरे बन गए थे पर समझने के लिये मुझे बहरा समझ रहे थे।"

"हे हे हे हे, चलो मैं बहरा बन गया था तो तुम तो अन्धे नहीं थे ना?"

"अबे क्या बोल रहा है? मैं भला क्यों अन्धा होने लगा?"

"भइ बहरे के साथ अन्धे का होना जरूरी है इसीलिए तो कहावत बनी है 'अंधरा पादे बहरा जोहारे', है कि नहीं?"

मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो फिर बोल उठे, "अच्छा एक बात बता यार, कहावत के अनुसार बहरे के साथ अंधा होना चाहिए और वो दोस्ती वाली कहानी के अनुसार अन्धे के साथ लंगड़ा होना चाहिये। ये आखिर बहरे के साथ बहरा, अन्धे के साथ अन्धा या लंगड़े के साथ लंगड़ा क्यों नहीं होता?"

अब आप ही बताइये कि मैं इस प्रश्न का उन्हें क्या जवाब दूँ? मैंने भी कह दिया, "इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा होने पर न तो कोई कहावत बन सकती है और न ही कोई कहानी।"

वो बोले, "यार, कह तो रहे हो सही, मगर गलत है।"

"अबे जब सही कह रहा हूँ तो गलत कैसे होगा?"

"ये सब बड़े लोगों की बाते हैं, तू नहीं समझेगा। खैर, ये बता कि बच्चों का क्या हाल है?"

"ठीक ही होंगे।" मैंने जवाब दिया।

"होंगे? होंगे से क्या मतलब? क्या तेरी उनसे मुलाकात नहीं होती?"

"होती है भइ, हर दो-तीन दिन में आते हैं हमारे पास। जब भी उन्हें कभी मोबाइल रिचार्ज और टॉपअप कराने, गाड़ी में पेट्रोल डलाने और उसकी सर्व्हिसिंग कराने, दोस्तों को पार्टी देने जैसे कामों के लिए रुपयों की जरूरत पड़ती है तो याद आ जाती है हमारी। चल छोड़, ये छोटे लोगों की बाते हैं, इसे तू नहीं समझेगा।"

"अच्छा भाभी जी कैसी हैं?"

"वो भी अच्छी हैं, भाई क्यों अच्छी नहीं होंगी? आज से तीस-पैतीस साल पहले जैसी अच्छी हुआ करती थीं उतनी अच्छी तो अब नहीं हैं पर फिर भी अच्छी ही हैं।" मैंने कहा।

अचानक मुझे कुछ याद आया और वो कुछ और बोलें उसके पहले ही मैंने कहा, "सुना है कि मेरे बारे में तू लोगों से कहता फिरता है कि 'लिखता क्या है, अपने आपको ब्लोगर शो करता है'।"

"तो क्या गलत कहता हूँ मैं? तू खुद ही बता तू कोई ब्लोगर है? सींग कटा के बछड़ों में शामिल हो जाने से भला क्या कोई ब्लोगर हो जाता है? क्या ये सच नहीं है कि तू अपने लिखे कूड़े को जबरन नेट में डाल रहा है! अबे सच का सामना कर! बोल हाँ।"

थोड़ी शर्मिंदगी के साथ मैं बोला, "यार बहुत कोशिश करता हूँ कि कुछ अच्छा लिख पाऊँ, अब अच्छा लिख ही नहीं पाता तो मैं क्या करूँ?"

"चल बेटा मैं तुझे बताता हूँ कि तू अच्छा क्यों नहीं लिख सकता। तू भी क्या याद करेगा! तू अच्छा इसलिए नहीं लिख पाता क्योंकि तू अतीत में जीता है, पुरानी बातों को अच्छा बताने की कोशिश में पुरानी घिसी-पिटी बातें ही लिखता है। तुझे पता नहीं है कि पुरानी बातों को कोई भी पसंद नहीं करता। लिखना है तो कुछ नई लिख जैसे कि मैं लिखता हूँ।"

"अच्छा बता तूने ऐसा क्या लिखा है जिसमें नयापन है?"

"मैंने लिखा है 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को दो लात', बोल है ना नई चीज?"

"क्या नया है इसमें? तू तो पुराना दोहा बता रहा है और वो भी गलत। सही है - 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात'।"

अब वे हत्थे से उखड़ गए और बोले, "बस यहीं पर तो मात खाता है तू। समझ तो सकता नहीं और शो करता है कि बहुत अकलमंद है। अगर मैंने चार चरण का दोहा लिखा होता तो वो पुरानी चीज होती पर मैंने तो दो चरण का दोहा लिखा है जो कि बिल्कुल नई चीज है।"

"पर तेरी इस नई चीज का मतलब क्या हुआ?"

"इसका मतलब है कि यदि पॉवरफुल याने कि बड़ा आदमी गलती करे तो उसे क्षमा कर देना चाहिए और छोटा आदमी गलती करे तो उसे दो लात मारना चाहिए। समझे? आज जो हो रहा है वह लिख, आज यही हो रहा है। अडवानी और जसवन्त के मामले में क्या हुआ बोल?"

हमें इतना ज्ञान देकर वे चले गये और हम अपना पोस्ट लिखने बैठ गये।

17 comments:

Anonymous said...

दो चरण में दो लात
बिल्कुल नई है यह बात

:-)
बी एस पाबला

Saleem Khan said...

मेरे खेत में धान ही नहीं गन्ना भी होता है.... अब आप चश्मा उतार ही दो 'बाबू'

Bhawna Kukreti said...

aapka sheershak rochak hai, lekh bhi:)

संजय बेंगाणी said...

क्या लात मारी है जी...खूब. :) :)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"इसका मतलब है कि यदि पॉवरफुल याने कि बड़ा आदमी गलती करे तो उसे क्षमा कर देना चाहिए और छोटा आदमी गलती करे तो उसे दो लात मारना चाहिए।"

एकदम दुरस्त, अवधिया जी !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लगता है कि आपकी ये लात यहाँ किसी को बडी जोर से पडी है:)

naresh singh said...

लात खाकर भी सुधर जाये तो गनीमत है । नही तो आगे जाकर पता नही क्या खाना पडेगा ।

अर्कजेश Arkjesh said...

बहुत बढिया समापन किया है, चर्चा का ! गुड हास्यम ।

अपूर्व said...

bhai aapne agar sirf post ka title likh kar hi chhod diya hota to bhi utna jabardast prabhav rahta..post to bouns mein padhne ko mili..congrats.
(ummeed hai mere elders ne yah post na padhi ho);-)

haal-ahwaal said...

achchha lekh. hasya paida karne me saksham. title ke sath-sath presentation bhi uttam.

Unknown said...

आपको बड़े लोगों की बात समझ नहीं आती,
उनको छोटे लोगों की बात समझ नहीं आती
हम ही मूर्ख हैं
जो दोनों की समझ लेते हैं
मध्यम वर्गीय हैं न..............समझते नहीं यार !

_____मज़ा आ गया...........हा हा हा हा

राज भाटिय़ा said...

आरे वत्स जी की टिपण्णी से सहमत हुं मै.:-)

Gyan Dutt Pandey said...

बड़े लोगों की बात है!

कुश said...

ये हुई ना लात... मेरा मतलब है बात

अनूप शुक्ल said...

ऊंचे लोग ऊंची पसंद!

Khushdeep Sehgal said...

ये हुई न बड़न और छोटन की मुक्का-लात, सॉरी...सॉरी...मुक्का-लात नहीं मुलाकात

विनोद कुमार पांडेय said...

"क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को दो लात"

मज़ा आ गया आपके इस एक लाइन से..