रातों में तेरा ही ख्वाब ...
दिन में तेरा ही खयाल ...
सभी लोगों से दूर भाग कर ...
अकेले हो जाने के बाद ...
तेरी यादों में डूब जाना ...
एक तेरे सौन्दर्य के सिवा ...
प्रकृति के सारे सौन्दर्य को भूल जाना ...
तुम्हारी उपेक्षा के बाद भी ...
तुम्हारे साथ की अपेक्षा ...
कभी तुम्हें भूलने के लिए ...
तो कभी तुम्हें याद करने के लिए ...
पीना ...
और केवल घुट घुट कर ...
जीना ...
सिर्फ यही दीवानापन ...
बन गया है मेरा जीवन ...
अब ये न सोच लीजियेगा कि इस बुढ़ौती में पगला गया हूँ। :)
भई ये तो सन् 1980 में अपनी डायरी में लिखा था मैंने। आज दिवाली की सफाई करते समय हाथ लग गई तो इसे पोस्ट कर दिया।
16 comments:
ऐसा हम क्यों सोचें क्या बूडे होने पर दोल नहीं रहता। आप नाहक ही शर्मा रहे हैं
तुम्हारी उपेक्षा के बाद भी ...
तुम्हारे साथ की अपेक्षा ...
बहुत सुन्दर बधाई
क्या बात है अवधिया जी आप तो सिस्टम ही बदल दिया :)
"रातों में तेरा ही ख्वाब ...
दिन में तेरा ही खयाल ...
सभी लोगों से दूर भाग कर ...
अकेले हो जाने के बाद ..."
बहुत सुन्दर, बधाई !!
bahut achchi kavita hai........ bhaavnaon se ot-prot....
pyar ki koi umr nahin hoti...........
कभी तुम्हें भूलने के लिए ...
तो कभी तुम्हें याद करने के लिए ...
पीना ...
और केवल घुट घुट कर ...
जीना ...
सिर्फ यही दीवानापन ...
बन गया है मेरा जीवन
आह ! सच में दिल तर हो गया, अवधियाजी ,
फिर एक भूली याद ने ----
बहुत सुन्दर यादें. बधाई
वाह, कालपात्र में रत्न ही रखे जाते हैं। वही है यह!
भई ये तो सन् 1980 में अपनी डायरी में लिखा था मैंने। आज दिवाली की सफाई करते समय हाथ लग गई तो इसे पोस्ट कर दिया।
अरे अब तो वो पोते पोतीयो वाली होगी,आप का पत्र पढ कर शर्माये गी या फ़िर घबरायेगी ??? जबाब आने दे फ़िर बताना
माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
बाप रे !!! आप तो गजब के दिवाने थे :)
अवधिया जी,
हमसे पूछिए न, आप क्या होते जा रहे हैं...आप जनाब, ब्लॉगिंग के शेखर सुमन होते जा रहे हैं...उम्र बढ़ने के साथ चेहरे पर जवानी का नूर दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है...कश्मीर का हवाई टिकट भेजूं क्या...
जय हिंद...
यह तो गलत बात है.......प्रेम का वय से क्या सम्बन्ध है.......वह तो सदा षोडशी ही रहती है...
बहुत ही भावपूर्ण प्रणयगीत...
भई अवधिया जी,ये चिट्ठी पहुँचने वाली जगह पहुँची भी या यूँ ही अभी तक सन्दूक में पडी धूल फाँक रही है :)
कभी तुम्हें भूलने के लिए ...
तो कभी तुम्हें याद करने के लिए ...
पीना ...
और केवल घुट घुट कर ...
जीना ...
सिर्फ यही दीवानापन ...
बन गया है मेरा जीवन
agar prem ki koi umr nahi hoti ...
to kavita ki bhi koi umr nahi hoti..
bahut sundar...
बहुत बढ़िया अवधिया जी.
sir ji, mai sachmuch bhool gaya tha ki "SASUR BHI BHI DAMAAD THA"
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