Tuesday, November 3, 2009

आना मिश्रा जी का और बनना पोस्ट का याने कि ऐसे भी बनती है पोस्ट

अक्सर हमें ऐसा लगता है कि यदि हमने किसी दिन एक पोस्ट नहीं ठेला तो शायद बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा। नदी-नालों का बहना रुक जाने या पर्वतों का टूटकर गिर जाने जैसा अनर्थ भले ही ना हो किन्तु उस रोज हमारा खाना न पचने जैसा अनर्थ तो अवश्य ही हो जायेगा। पर सबसे बड़ी समस्या तो यह होती है कि रोज-रोज लिखें तो आखिर लिखें क्या? अब रोज एक पोस्ट ठेलना है तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि कुछ भी ऊल-जुलूल बकवास ही ठेल दें? हम सोच ही रहे थे कि आज क्या ठेला जाये अपने ब्लोग में कि इतने में ही मिश्रा जी आ गये।

उन्होंने कहा, "अवधिया जी, बहुत परेशान हूँ। पेट में जलन है और दो दिनों से पेट अलग साफ नहीं हुआ है। बताइये क्या करूँ?"

हमने कहा, "अरे भाई हम कोई डॉक्टर थोड़े ही हैं। भला हम क्या बता सकते हैं। आप किसी डॉक्टर के पास जाइये।"

वे बोले, "डॉक्टर तो कम से कम 100 रुपये ले लेगा, और दवाई लिखेगा उसके दाम अलग।"

हमने भी सोचा कि ये कह तो सही रहे हैं। उनसे पूछ लिया, "कल कहीं अधिक तेल मसाले वाला खाना तो नहीं खाया था आपने?"

उन्होंने स्वीकार किया कि मामला कुछ वैसा ही था।

हमने कहा, "देखिये, पहले तो आप एक एसीलॉक या जिन्टेक गोली खा लीजिये। दो-तीन रुपये ही खर्च होंगे। एकाध घंटे में ठीक लगा तो ठीक, नहीं तो फिर डॉक्टर के पास चले जाइयेगा।"

मुश्किल से आधे घंटे बाद ही वे फिर आ गये और हमें धन्यवाद देते हुए बोले, "वाह, आपकी बताई गोली ने तो जलन को काफूर कर दिया। अब पेट साफ करने के लिये भी कोई दवा बता दीजिये।"

हमने कहा, "ठीक है, आप पंचसकार चूर्ण खरीद लीजिये। रात को सोने के पहले एक बड़ा चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी के साथ ले लीजियेगा। पर लीजियेगा गुनगुने पानी के साथ ही, नहीं तो चूर्ण असर नहीं करेगा।"

तो आइये आपको भी बता दें कि पंचसकार चूर्ण बेहद फायदेमंद आयुर्वेदिक औषधि है। इसे सौम्य रेचक (पेट साफ करने वाला) माना जाता है। यह पाँच चीजों का मिश्रण होता है और उन पाँचों चीजों के नाम 'स' अक्षर से शुरू होते हैं। इसीलिये इस चूर्ण का नाम पंचसकार पड़ा। पेट साफ न होने याने कि कब्जियत में तो यह रामबाण है। इस चूर्ण का नियमित अन्तराल में सेवन करते रहना बहुत ही लाभप्रद है। किन्तु याद यह चूर्ण सिर्फ गुनगुने (गर्म) पानी के साथ ही लेने से असर करता है।

पंचसकार चूर्ण किसी भी आयुर्वेदिक औषधियों के दुकान में आसानी के साथ मिल जाता है। और चाहें तो आप इसे घर में ही बना सकते हैं। घर में बनाने से यह बहुत ही सस्ता पड़ता है। इसे बनाने के लिये किसी भी परचून की दूकान से निम्न सामान ले आइयेः

सनाय - 40 ग्राम
सोंठ - 20 ग्राम
सौंफ - 20 ग्राम
शिव हरीतिका - 20 ग्राम
सेंधा नमक - स्वाद अनुसार

उपरोक्त सभी चीजों को मिला लें और कूट‍-पीस कर महीन चूर्ण बना कर रख लें। बस तैयार हो गया आपका पंचसकार चूर्ण।

तो इस प्रकार से मिश्रा जी का आना हुआ और हमारी पोस्ट भी बन गई। साथ ही साथ हमने आपको पंचसकार जैसे लाभदायक चूर्ण के विषय में कुछ जानकारी भी दे दिया।

चलते-चलते

उसने शहर के एक बड़े तथा नामी रेस्टोरेंट में जाकर मैनेजर से कहा, "मैं रेस्टोरेंट्स में कार्यक्रम देकर लोगों का मनोरंजन किया करता हूँ। क्या आप अपने रेस्टोरेंट में मेरा कार्यक्रम रखना पसंद करेंगे?"

"क्या प्रोग्राम देते हो तुम?" मैनेजर ने पूछा।

"50 आदमी का खाना लगवा दीजिये, मैं सिर्फ 5 मिनट में खा कर दिखा दूँगा।"

मैनेजर मान गया। शाम साढ़े सात बजे प्रोग्राम देने की बात तय हो गई। उस समय शाम के छः बज चुके थे। डेढ़ घंटे के थोड़े से समय में मैनेजर ने आनन-फानन में लाउड स्पीकर से पूरे शहर में लाउड स्पीकर से एनाउंसमेंट करवा कर पब्लिसिटी की।

नियत समय पर 50 आदमियों का खाना लगवा दिया गया। रेस्टोरेंट का हॉल आधा से ज्यादा भरा हुआ था। कार्यक्रम शुरू होने की घंटी बजी और उसने दोनों हाथों से ताबड़तोड़ खाना शुरू किया। पाँच मिनट तो क्या, साढ़े तीन मिनट में ही वो पूरा खाना चट कर गया।

लोग अवाक रह गये। बाहर जोरों की चर्चा होने लग गई कि खाने के मामले में तो वह राक्षस है। जोरदार "माउथ पब्लिसिटी" होने लग गई।

उसके इस पब्लिसिटी को देखकरर मेनेजर ने उससे कहा, "तुम्हारे प्रोग्राम को लोगों ने खूब पसंद किया है और जो लोग तुम्हारा प्रोग्राम नहीं देख पाये हैं वे भी तुम्हारा प्रोग्राम देखना चाहते हैं इसलिये तुम कल एक और प्रोग्राम हमारे यहाँ दे देना।"

वो बोला, "मैं तो सिर्फ आज के लिये आप के शहर में उपलब्ध हूँ क्योंकि कल के लिये मेरा प्रोग्राम एक अन्य महानगर में पहले से ही बुक्ड है। चलिये मेनेजर साहब आप भी क्या याद करेंगे मैं आज ही एक घंटे के बाद आपके रेस्टोरेंट में एक और प्रोग्राम दे देता हूँ। इस बार खाना 100 आदमियों का और समय वही 5 मिनट।"

मेनेजर खुश हो गया। अगले प्रोग्राम की घोषणा कर दी गई। इस बार पूरा हॉल ठसाठस भर गया। जिन्हें टिकिट नहीं मिल पाया वे बड़े मायूस थे। इस बार भी उसने अपने प्रोग्राम का सफल प्रदर्शन करके लोगों का दिल जीत लिया।

मैनेजर ने उससे कहा, "भइ, अभी तो नौ नहीं बजे हैं। एक प्रोग्राम और दे दो।"

"आप भी अजीब बात करते हैं मैनेजर साहब। क्या सारा दिन प्रोग्राम देते रहूँगा? मुझे भी घर जाना है, खाना-वाना खाना है।"

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"संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" का अगला पोस्टः

दण्डक वन में विराध वध - अरण्यकाण्ड (1)

13 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

वाह, ये तो घर पर ही कायम चूर्ण बनाने का अच्छा नुक्शा बता दिया अपने अवधिया साहब !हां, आप पोस्ट ठेलते रहे, चाहे किसी का पेट सही रहे या फिर खराब :)

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

aadarniya awadhiya ji,


panchaskaar ki jaankari bahut hi faaydemand lagi.........

aur joke ke to kahne hi kya


hahahahhaha

संगीता पुरी said...

पेट के लिए अच्‍छे नुस्‍खा बताया आपने .. चलते चलते वाले व्‍यक्ति ने भी आपसे ही खाना पचाने का नुस्‍खा लिया था क्‍या ??

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

मान गए अवधिया जी, बातों ही बातों में किसी जानकारी को सबसे सांझा करने वाला आपका ये अन्दाज काबिलेतारीफ है....
"पंचसकार" की एक डिबिया हमारे पास अभी भी रखी हुई है ।

36solutions said...

पंचसकार का मैं भी मुरीद हूं. ये हमारे दुर्ग-भिलाई के मेडिकल स्‍टोर्स में मिल जाता है. सर वो स्‍टारेंट में प्रोगरेम देने वाला आदमी मिले तो मेरे यहां जरूर भेजियेगा. :)

Unknown said...

jai hi dada !

panch sakar ka jawab nahin..........

ha ha ha ha ha ha ha

yaad aaya maine bhi khanaa khana hai...

दिनेशराय द्विवेदी said...

पंसकार चूर्ण ठीक है लेकिन इस का उपयोग दो-तीन दिन से अधिक लगातार करना हानिकारक भी हो सकता है। इस कारण से इसे दो-तीन दिन बाद कम से कम दो दिन के लिए बंद कर देना चाहिए। यदि बाद में आवश्यक हो तो दुबारा दो-तीन दिन के लिए लें तो उचित है।
चलते चलते चुटकुला अच्छा है। पर मैं ने वाकई 100-150 ग्राम वजन के 55 लड्डू खाने वाले देखे हैं और उन्हें खिलाया भी है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

पंसकार चूर्ण ठीक है लेकिन इस का उपयोग दो-तीन दिन से अधिक लगातार करना हानिकारक भी हो सकता है। इस कारण से इसे दो-तीन दिन बाद कम से कम दो दिन के लिए बंद कर देना चाहिए। यदि बाद में आवश्यक हो तो दुबारा दो-तीन दिन के लिए लें तो उचित है।
चलते चलते चुटकुला अच्छा है। पर मैं ने वाकई 100-150 ग्राम वजन के 55 लड्डू खाने वाले देखे हैं और उन्हें खिलाया भी है।

Mohammed Umar Kairanvi said...

बहुत बढिया, चटखारा में सुबह दे चुका था, अब तो गुच्‍ची गीली करने आया था,
चलते चलते का ऐसा अंत मैं सोच नही पा रहा था इस लिये कमेटस लिखने पर भी बाध्‍य हो गया,
धन्‍यवाद

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी,यह आदामी कही लालू जी तो नही ? जो पशुयो का चारा हजम कर सकता है, उस के लिये १००, २०० लोगो का खाना क्या चीज है जी :)

शरद कोकास said...

यह खाने वाले चुट्कुले और चूरन का जोड़ ठीक रहा ।
शरद कोकास "पुरातत्ववेत्ता " http://sharadkokas.blogspot.com

Paise Ka Gyan said...

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Paise Ka Gyan said...

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