कोई भी व्यक्ति यदि कुछ करता है तो उस कार्य का कुछ न कुछ उद्देश्य अवश्य ही होता है। मैं भी यदि ब्लोगिंग करता हूँ तो मेरा भी अवश्य ही कुछ न कुछ उद्देश्य होना ही चाहिये। मैं न तो कवि हूँ, न लेखक और न ही पत्रकार। याने कि लेखन से मेरा कुछ विशेष सम्बन्ध नहीं है, बस ऐसे ही कुछ कुछ लिख लेता हूँ। अक्टूबर 2004 में मैंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ली तो बहुत अधिक खाली समय रहने लग गया मेरे पास। मैंने सुन रखा था नेट से कमाई के बारे में। तो दिन भर मैं नेट में खँगालते रहा करता था कि नेट से कमाई कैसे हो। वहीं मुझे पता चला कि ब्लोगिंग नाम की कोई चीज होती है जिसके द्वारा विज्ञापन से कमाई की जा सकती है। हिन्दी ब्लोगिंग के विषय में मुझे उस समय तक कुछ भी पता नहीं था। मैंने अंग्रेजी के कुछ ब्लोग बना लिये। कुछ काल के बाद मेरा एडसेंस का खाता भी खुल गया। अपने अंग्रेजी ब्लोग्स में मैंने एडसेंस के विज्ञापन भी लगा दिये। रोज देखा किया करता था अपने एडसेंस खाते को कि कुछ कमाई हो रही है या नहीं मगर महीनों तक एक भी क्लिक नहीं हुआ किसी विज्ञापन पर। मैं निराश होने लगा। पर ज्यों-ज्यों मैं निराश होता था त्यों-त्यों मेरा जुनून बढ़ते जाता था कि जब दूसरे लोग एडसेंस से कमाई कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? अवश्य ही मुझमें ही कुछ न कुछ खामी है। खैर साहब, लगे ही रहा मैं अपनी कोशिश में और उस दिन मेरी खुशी का पारावार न रहा जब मैंने देखा कि एडसेंस विज्ञापन पर एक क्लिक हुआ है और मेरे खाते में $0.02 का बैलेंस हो गया है। मुझे वो $0.02 कुबेर के खजाने जैसा लगा और मैं और भी उत्साहित होकर काम करने लग गया। अपने ब्लोग्स में एडसेंस के विज्ञापन लगभग आठ महीने बाद मुझे गूगल से मेरी कमाई का पहला चेक मिला। फिर मैंने agoodplace4all.com नामक डोमेननेम, वेब होस्टिंग और अंग्रेजी का एक बना बनाया वेबसाइट भी खरीद लिया। दूसरा चेक मुझे पाँच माह बाद मिला और तीसरा उसके दो माह बाद। उसके बाद हर माह मेरी कमाई होने लगी।
इसी बीच नेट को खँगालते खँगालते मुझे नेट में हिन्दी के विषय में पता चला तो मैंने अपने हिन्दी ब्लॉग्स भी बना लिये और उनमें भी एडसेंस विज्ञापन लगा दिया। जब मैंने देखा कि हिन्दी के विज्ञापनों से भी कमाई हो रही है तो अंग्रेजी वेबसाइट के साथ साथ हिन्दी वेबसाइट भी बना लिया क्योंकि मैं चाहता था कि कमाई होने के साथ ही साथ यदि मातृभाषा की भी सेवा हो। मेरा हिन्दी लेखन यहीं से शुरू हुआ। यहीं से अंग्रेजी के प्रति रुचि कम हो गई, आखिर हिन्दी माध्यम से ही मेरी शिक्षा हुई थी।
बाद में गूगल के नीति में परिवर्तन हो गया और हिन्दी में एडसेंस विज्ञापन आने बन्द हो गये। किन्तु, बावजूद कमाई कम हो जाने के भी, हिन्दी के प्रति अपने मोह को मैं त्याग नहीं सका और इसीलिये मैँ हिन्दी ब्लोगिंग करता हूँ।
हिन्दी ब्लोगिंग के पीछे अभी भी मेरा उद्देश्य यही है कि नेट में हिन्दी आगे बढ़े और साथ ही साथ पाठकों की संख्या तेजी के साथ बढ़े क्योंकि पाठकों की अधिक से अधिक संख्या ही नेट में हिन्दी के द्वारा विज्ञापनों से कमाई करवा पायेगी। गूगल भी हिन्दी पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिये जी जान से जुटा हुआ है। हिन्दी पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिये गूगल ने 'है बातों में दम?' प्रतियोगिता आयोजित किया है जिसका कि आज अन्तिम तिथि है। इस प्रतियोगिता में अपने ब्लोग जैसे अपने नोल में पोस्ट लिखना पड़ता है।
मेरे ब्लोग प्रोफाइल को मुश्किल से कुछ सौ लोग ही देखते हैं किन्तु मेरे नोल प्रोफाइल को पिछले एक सप्ताह में 1261 लोगों ने देखा है। इससे पता चलता है कि गूगल के इस प्रयास से अवश्य ही हिन्दी पाठकों की संख्या बढ़ रही है।
10 comments:
उम्दा विचार अवधिया साहब , वैसे शायद आपको अब तक पता चल ही गया हो की "है बातो में दम " की तिथि १५.०२.१० कर दी गई है
यह जानकारी देने के लिये कि "है बातो में दम" प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये अन्तिम तिथि १५.०२.१० कर दी गई है आपको धन्यवाद गोदियाल जी! सचमुच मै नहीं देख पाया था कि तिथि बढ़ा दी गई है।
jai ho aapki.........
lage raho dada !
bahut umdaa likhte ho........
dhnyavaad !
jai ho aapki.........
lage raho dada !
bahut umdaa likhte ho........
dhnyavaad !
kya baat hai .....bahut badhiya lekh ...
बढिया है.
अवधिया जी, वो व्यूबैस्टएड वाली साईट का क्या हुआ...वहाँ से कोई चैक आया कि नहीं ।
बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
कैश न सही यश ही सही। कुछ तो कमाई हो ही रही है।
लगे रहो अवधिया जी।
लगे रहिए, बेहतरीन जज्बा
सफलता आपके कदम चूमे
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