हिन्दी ब्लोग संकलकों में ब्लोगवाणी सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह प्रायः समस्त हिन्दी ब्लोग्स के अपडेट्स को एक ही स्थान पर दिखाता है और अधिकांश हिन्दी ब्लोगर्स नये पोस्ट की जानकारी के लिये ब्लोगवाणी का ही सहारा लेते हैं। हिन्दी ब्लोग जगत के लिये ब्लोगवाणी का कार्य अत्यन्त सराहनीय है।
सभी सोशल बुकमार्किंग साइट्स तथा संकलकों की अपनी नियम और शर्तें होती हैं। ये नियम और शर्तें ही तय करती हैं कि किसे सदस्यता दी जाये और किसे नहीं। एक बार सदस्य बन जाने के बाद यदि कोई नियम और शर्तों की अवहेलना करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त कर देने का भी प्रावधान रहता है। नियम व शर्तें बनाये ही इसलिये जाते हैं ताकि सद्भावना बनी रहे, किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे, किसी प्रकार की घृणा न फैलने पाये।
इस बात से तो आप सभी सहमत होंगे कि ब्लोग का महत्व दिनों दिन बढ़ते ही जा रहा है। एक ब्लोग को समस्त संसार में कोई भी पढ़ सकता है। जहाँ किसी ब्लोग में निहित विचार आपसी भाई-चारे का सन्देश देकर "वसुधैव कुटुम्बकम" बना सकता है तो वहीं किसी अन्य ब्लोग में प्रस्तुत किये गये विचार हमारे बीच आपसी कलह भी करवा सकता है। कहने का तात्पर्य है कि आज ब्लोग दुनिया भर में नई क्रान्ति ला सकता है।
आज यह जग जाहिर है कि कुछ हिन्दी ब्लोग्स दुर्भाव का जहर उगल-उगल कर सिर्फ दुर्भावना फैलाने का कार्य कर रहे हैं। ब्लोगवाणी में इनकी सदस्यता होने के कारण ही लोग इन ब्लोग्स में जाते हैं। यदि ब्लोगवाणी में इनकी सदस्यता न रहे तो कोई भी इन ब्लोग्स में नहीं जाने वाला है। तो क्या औचित्य है ऐसे ब्लोग्स की सदस्यता ब्लोगवाणी में बरकरार रखने की?
मैं ब्लोगवाणी के संचालकों से अनुरोध करता हूँ कि वे ऐसे ब्लोग्स, जो महज दुर्भाव फैला रहे हैं, की सदस्यता को तत्काल रद्द करें।
मुझे विश्वास है कि आप सभी मेरे इस विचार का अनुमोदन अवश्य ही करेंगे।
30 comments:
Bina koi link diyae aap kaese umeed kar saktey haen kisi karyavaahi ki
blogvani team har blog ko padhtee nahin haen aap link submit kar dae team rreview kar daegi aur hataa bhi daeti haen
बिलकुल और ब्लोग्वानी को ब्लोगरों की भावना का आदर करते हुए इस पर तुरंत कारवाही करनी चाहिये !
रचना जी, मैंने "जग जाहिर है" कहा है। जिस बात को सभी जानते हैं वह भला ब्लोगवाणी वालों से कैसे छिपी रह सकती है? जो लोग संचालक चलाने का कार्य कर रहे हैं, कम से कम मैं तो नहीं समझता कि, वे किसी बात से गाफिल होंगे। समझदार के लिये सिर्फ इशारा ही काफी होता है।
भूतकाल में एग्रीगेटर "नारद" ने तमाम विरोधों को सहते हुए यह साहसी कार्य किया था.
बात केवल दूर्भाव फैलाने की नहीं है, पता नहीं किस किस माध्यम से नए गूर्गे तलाशे जा रहें हैं. सावधानी बरतने में कोई बुराई नहीं है.
भूल सुधार - मेरी टिप्पणी में "संचालक" के स्थान पर "संकलक" पढ़ा जाये। वर्तनी की गलती के लिये खेद है।
sir
jag jahir yaani suni sunaii
posssible nahin hosaktaa
aap link dae kar unsae seedha sampark karey avshya kaaryvaahi hogii agar unki team ko uchit lagega
secondly sir
ek baat aur bhi dhyaan daene vaali haen yae jag jahir blog hi sabsey jyadaa padhey jaatey haen ab blogvani par advertisemnt bhi aagaey haen so kyaa unka nazariya agar vyvsaaik haen to phir koi bhi blog nahin hatega haa aap yaa mae apnaa blog aappti swarup hataa saktey haen
रचना जी, जग जाहिर का अर्थ "सुनी सुनाई" नहीं बल्कि "सभी को विदित" होता है।
अस्तु, मैं इसे बहस का रूप नहीं देना चाहता। मुझे जो कहना था वह मैंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है। यदि इसके बाद भी किसी के समझ में ना आ पाये तो यह मेरा दुर्भाग्य और मेरी प्रस्तुतिकरण की अयोग्यता ही होगी।
भूतकाल में एग्रीगेटर "नारद" ने तमाम विरोधों को सहते हुए यह साहसी कार्य किया था.
बात केवल दूर्भाव फैलाने की नहीं है, पता नहीं किस किस माध्यम से नए गूर्गे तलाशे जा रहें हैं. सावधानी बरतने में कोई बुराई नहीं है.
बहुत सुंदर लिखा आप ने, ओर होना भी यही चाहिये. धन्यवाद
अवधिया जी जिनके खुद के घर में आग लगी हो, जिनका अपना धर्म आज पुरे विश्व में आतंक का पर्याय बन चूका हो वो दुसरो के धर्म को क्या समझ लेंगे. उनकी अपनी सोच देखिये कही भी सही गलत उल्टा सीधा केवल कीचड़ ही निकाल पाते है. कल मैंने कहाँ था कक्षा में एक शिक्षक होता है लेकिन कोई अव्वल आता है और कोई फ़ैल हो जाता है. तो जिसकी जैसी समझ वो वैसा ही समझेगा और वैसा ही बखान करेगा. ब्लोग्वानी कुछ करे या नहीं लेकिन अगर सब लोग इनको खुद को अपनी पोस्ट खुद ही लिखने और पढने के लिए छोड़ दे तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकता है. इनको जितनी सलाह दे दो इन्हें कोई फर्क पड़ना नहीं है.
ब्लोग्वानी को ब्लोगरों की भावना का आदर करना चाहिये!
http://vedquran.blogspot.comएक लिंक तों मैं दे रहा हूं रचना जी.....पढकर देखें ..
मैं भावेश की बात से सहमत हूँ और मैं ऐसा करती भी हूँ। यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों पोस्ट आती हैं, आप सभी को पढ़ नहीं सकते। इसलिए जब मुझे मालूम हो जाता है कि इस ब्लाग की पोस्ट समाजहित में नहीं है तब मैं उस ब्लाग पर जाना ही छोड़ देती हूँ।
ज्यादा समर्थन नहीं जुटा जी. यानी बहुसंख्यक या तो चाहते है कि प्रतिबन्ध न लगे, या भले बने रहना चाहते है. वैसे इससे क्या मिलेगा.
मेरी बात बेकार नहीं है कि पता नहीं किस किस माध्यम से नए गूर्गे तलाशे जा रहें हैं. गाँठ बाँध लो. यही निकलेगा एक दिन.
बहिष्कार का यह भी एक रास्ता हो सकता है.
मैं भी इस विषय पर लिखने का मन बनाए हुए थी। यदि मुझ जैसी लगभग नास्तिक को कुछ लेखों को देखकर, पढ़कर कष्ट होता है तो आस्तिकों की भावनाएँ तो चोटिल होती ही होंगी। उससे भी बड़ी बात है कि ऐसे लोग समाज में वैमनस्य ही बढ़ा रहे हैं। शायद यही उनका उद्देश्य भी है। जब बार बार चोट खाकर लोग उनके व उनके धर्म के विरुद्ध बोलने लगेंगे तो वे कहेंगे देखो हमने कहा था ना कि सब हमारे शत्रु हैं। सारा संसार हमारे विरुद्ध है सो फूँक दो शेष संसार को। मतलब चित भी मेरी पट भी मेरी।
आज ही मैंने एक लेख पर यह टिप्पणी की थी जो यहाँ भी उचित लग रही है।
हम सबको यह विचार करना चाहिए कि नापसन्द का उपयोग क्या ऐसी पोस्ट्स के लिए करें जो समाज में वैमनस्य फैलाती हैं, दूसरों के धर्म, नस्ल आदि को बुरा भला कहना ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं या फिर उनकी पूरी तरह से उपेक्षा करनी चाहिए। शायद नापसन्द का उपयोग भी उन्हें यह सांत्वना देगा कि इतने लोगों ने उन्हें पढ़ा और वे हमारी नापसन्द को अपनी आदत के अनुसार हमारी घृणा मानकर चलेंगे और पहले से भी अधिक खुन्दक में और भी अधिक घृणा फैलाने के काम में लग जाएँगे। इसलिए शायद पूर्ण उपेक्षा ही इलाज है।
घुघूती बासूती
ब्लॉगवाणी में उनकी उपस्थिति कष्टप्रद तो है। परन्तु मैंने सुना था कि ऐसी पोस्ट्स को फ्लैग करके गूगल का ध्यान उनकी ओर दिलाया जा सकता है। इस पर भी प्रकाश डालिए।
घुघूती बासूती
क्या आपने कभी किसी ब्लॉग को ब्लागर में फ्लैग करने का प्रयास किया है . अगर नहीं तो उत्सुकतावास ही करके देखिये गूगल का दृष्टिकोण समझ में आ जाएगा .
जहाँ तक बात को तूल नहीं देने की है तो सबसे सही तो यही होगा की आप ऐसे ब्लॉग में न तो जायें न टिप्पणी करें . ब्लाग एक खुला मंच है इसे खुला ही रहने दिया जय . बहिष्कार ही सही इलाज है .कुछ लोगों को को जल्दी प्रसिद्धि पाने के लिए एक साधन मिला है. उन्हे अपनी अवस्था से स्वयं परिचित होने दें .
यहां भी हिन्दुओं के प्रति दुर्भावना अलग झलकती है. डेनिश कार्टूनिस्ट द्वारा बनाये गये कार्टून हटा दिये गये लेकिन फिदा के मौजूद हैं. बरेली के दंगों की वीडियो यूट्यूब पर फ्लैग कर दिये गये क्योंकि उनमें अल्पसंख्यकों द्वारा दंगा भड़काया गया दिखाया गया था.
घुघूती बासूती जी की बात को ही मेरी भी समझा जाये.
Censorship is dangerous.
I think that we have to write the blogvani administrator to make a seperate section for religion. If someone puts his articles in other section, then reading rating should be done and the blog should automatically transfered to Religion.
Yeah they are some people who use this section for ISLAM. It is really BAD.
घृणा फैलानेवाले ब्लॉग की ब्लोग्वानी सदस्यता होनी ही चाहिए | मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ और ब्लोग्वानी से अनुरोध करता हूँ कि घृणा फैलानेवाले ब्लॉग कि सदस्यता समाप्त की जाए |
संजय बैगाणी जी के कथन से अक्षरश: सहमति है कि ये एक सुनियोजित षडयन्त्र है....जो कि एक न एक दिन तो सामने आ ही जाएगा, लेकिन पता नहीं तब तक इन लोगों की ये हरकतें कितना नुक्सान कर चुकी होंगी।
मेरी भी गुजारिश ब्लागवाणी टीम से यही है की धार्मिक,साम्प्रदायिक दुर्भावाना फैलाने वाले ब्लॉग प्रतिबंधित हों !
सही कह रहें हैं आप...
बिल्कुल प्रतिबंधित होना चाहिये इन घटिया लोगों को. स्वयं एक पोस्ट लिखना चाह रहा था इस विषय में.
सहमत हूं अवधिया जी आपसे पूरी तरह।ऐसे लोगों को बिल्कुल तवज्जो नही दी जानी चाहिये जो समाज और खासकर ब्लाग जगत मे विषवमन करने का ही एकमात्र काम कर रहे हैं।
Aapse purn rup se sahmat..jis blogvani dwara ham apni baat rakh pate hayn us blogvani ko ye adhikar hona chahiye ki aag ugalne wale lekhakon ki sadasyata rad kar de..isse nafrat ki baat bolne walon ko roka jaa sakta hay..
Aapka alekh ka subject bahut satik hay.dhanywad
नफ़रत और तालिबानी मानसिकता को बढ़ावा देने वाले ब्लोगों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए... ऐसे ब्लॉग देश के चैन-अमन के लिए ख़तरा बने हुए हैं...
साथ ही इनका बहिष्कार भी किया जाना चाहिए...
जय हिंद
वन्दे मातरम्
"नारद" के समय महसूस किया गया था कि प्रतिबन्ध से यह सब नहीं रुकेगा, सिर्फ सामाजिक बहिष्कार ही ऐसे लोगों को हतोत्साहित कर सकता है।
एक समय जहाँ "नारद" था आज वहाँ "ब्लॉगवाणी" है। उस समय जो लोग नारद की आलोचना में लगे थे और ब्लॉगवाणी को नये मसीहा के रुप में पेश कर रहे थे, उम्मीद है वे आज नारद का दर्द समझ रहे होंगे।
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