Monday, July 12, 2010

बड़ी बुरी लत है ब्लोगिंग की

जबसे ब्लोगिंग की लत लगी है हमको, हमेशा परेशान रहते हैं। ना दिन में चैन और ना रात में नींद। दिमाग रूपी आकाश में ब्लोग, ब्लोगर, पोस्ट, टिप्पणियाँ रूपी मेघ ही घुमड़ते रहते हैं। परेशान रहा करते हैं कि आज तो ले-दे के पोस्ट लिख लिया है हमने पर कल क्या लिखेंगे? कई बार मन में आता है कि कल से हर रोज लिखना बंद। निश्चय कर लेते हैं कि आज के बाद से अब सप्ताह में सिर्फ एक या दो पोस्ट लिखेंगे पर ज्योंही आज बीतता है और कल आता है कि कुलबुलाहट शुरू हो जाती है। तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अंगुष्ठ याने कि सारी की सारी उँगलियाँ रह-रह कर कम्प्यूटर के कीबोर्ड की ओर जाने लगती हैं। जब तक एक पोस्ट ना लिख लें, चैन ही नहीं पड़ता। पर रोज-रोज आखिर लिखें तो लिखें भी क्या? इसलिये कई बार कुछ भी नहीं सूझता तो चौथी-पाँचवी कक्षा में पढ़े दोहों को ही याद करके पोस्ट कर देते हैं जैसे किः

ब्लोगर को ना सताइये ....

देखा ना? 'निर्बल' लिखते-लिखते 'ब्लोगर' लिख मारे। हमेशा दिमाग में ब्लोग, ब्लोगर आदि चलता रहे तो यही तो होगा आखिर। अच्छा हुआ कि अपनी गलती ध्यान में आ गई और सुधार लिया किः

निर्बल को न सताइये जाकी मोटी हाय।
मुये चाम की साँस से लौह भस्म होइ जाय॥


यदि निर्बल के स्थान पर ब्लोगर पोस्ट हो गया होता तो सारे के सारे ब्लोगर हम पर चढ़ बैठते कि सर्वशक्तिमान ब्लोगर को हमने निर्बल कैसे बना दिया।

उधर श्रीमती जी अलग मुँह फुलाये रहती हैं कि हम घर का कोई काम-काज ही नहीं करते, यहाँ तक कि साग-सब्जी तक लेने नहीं जाते। हमेशा बड़बड़ाती रहती हैं आग लगे इनके कम्प्यूटर में ...। पर ब्लोगिंग के लत ने हमें इतना बेशर्म बना दिया है कि उनकी बड़बड़ाहट का हम पर कुछ भी असर नहीं होता, बड़बड़ाती रहें वो अपनी बला से।

ऐसा भी नहीं हो पाता कि पोस्ट लिख लेने के बाद हम घर के काम-धाम में जुट जायें क्योंकि हर दो-तीन या पाँच मिनट में:

अंदाज अपना आईने में देखते हैं वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता ना हो


के तर्ज में पर देखना रहता है कि टिप्पणी आई कि नहीं, और आई तो कितनी टिप्पणियाँ आई हैं? और इस जुनून में हम कम्प्यूटर से चिपके ही रहते हैं। टिप्पणियाँ आती हैं तो मन विभोर हो जाता है, हम आत्म-मुग्ध हो जाते हैं और पत्नी जी के गुस्से के साथ ही साथ दुनिया-जहान के सारे दुख-तकलीफों से होने वाली कुढ़न से कहीं बहुत दूर पहुँच जाते हैं, भीतर ही भीतर वैसा ही कुछ होने लगता है जैसे कि तीन पैग पेट के भीतर चले जाने पर होता है।

और यदि एक भी टिप्पणी ना मिले तो....

हम तो मनाते हैं कि भगवान ना करे कि ऐसी स्थिति आये किन्तु "आसमां पे है खुदा और जमीं पे हम"। आसमां वाला जमीं वाले की सुनता कहाँ है और प्रायः एक भी टिप्पणी ना मिलने वाली स्थिति आती ही रहती है। टिप्पणियाँ ना मिलने पर मन मायूस हो जाता है। खुद से कहने लगते हैं - 'तुफ है तुझपर जो एक ऐसा पोस्ट नहीं लिख सकता जिसमें टिप्पणियाँ आयें, अपने आप को बहुत भारी ब्लोगर समझता है। अब पता चला तुझे तेरी औकात! डूब के मर जा चुल्लू भर पानी में।'

पर अपने आप को आखिर धिक्कारा भी कब तक जा सकता है इसलिये यही सोचकर तसल्ली दे लेते हैं अपने आपको कि लोगों में इतनी अकल नहीं है जो हम जैसे महान ब्लोगर के पोस्ट को समझ पायें। जब पोस्ट को समझेंगे ही नहीं तो भला टिप्पणी कहाँ से करेंगे?

तो भैया, कहाँ तक बुराइयाँ गिनायें ब्लोगिंग की, बस इतना ही कह सकते हैं कि ब्लोगिंग की लत बड़ी बुरी होती है।

23 comments:

रंजन (Ranjan) said...

सही है..
बुरी आदत है ये
ये
आदत अभी बदल डालो..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

लोगों में इतनी अकल नहीं है जो हम जैसे महान ब्लोगर के पोस्ट को समझ पायें। जब पोस्ट को समझेंगे ही नहीं तो भला टिप्पणी कहाँ से करेंगे?


हा हा हा हा

जय हो गुरुदेव

S.M.Masoom said...

टिपण्णी ना देखें, visitors देखें, आप की बात जितनो तक पहुंचे बेहतर है और टिपण्णी के शौक मैं लिखी पोस्ट, समाज को कुछ दे नहीं सकती.. बीमारी का यही इलाज है..

P.N. Subramanian said...

टिप्पणियों का मोह, ओह! उनके बिना तो पूरा जग सूना लगता है.

Unknown said...

khoob kahi..........

शिवम् मिश्रा said...

बहुत सही कहा !

प्रवीण पाण्डेय said...

आपने भावुक कर दिया।

राजकुमार सोनी said...

सही कहा आपने
वाकई ऐसा ही होता है
आपकी पोस्ट सबके मन की बात है.

निर्मला कपिला said...

सही बात है लत है मगर बुरी नही\ शुभकामनायें

डॉ टी एस दराल said...

बड़ी बुरी लत है ब्लोगिंग की--
अवधिया जी , अब समझ में आया ?

ajay saxena said...

क्या बात है...छा गए अवधिया जी.....हम सब के दिल की बात लिख दी आपने...

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सही कहा आपने.

रामराम.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सही कहा आपने.

रामराम.

सूर्यकान्त गुप्ता said...

सोलह आने सही। अब हमे ही देखिये। घर बाहर दोऊ तरफ रहता नही है ध्यान। ब्लॉग ब्लॉग रट लगाई के भूल रहे हैं अपने विषय का ज्ञान। बहुत ठोक पीट के लिखे हैं इस कड़वे सच को। ……आभार।

Khushdeep Sehgal said...
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Khushdeep Sehgal said...

अवधिया जी,
बड़ी सटीक बातें लिखी हैं...लेकिन फ़िक्र मत कीजिए, हम भारतीयों की आदत है कि या तो हम किसी महान व्यक्ति के दुनिया से जाने के बाद या फिर विदेश में कोई सम्मान मिल जाने के बाद उसको वो सम्मान देना शुरू करते हैं जिसका कि वो योग्य होता है...गुरुदत्त बेचारे को जीते जी क्या मिला...लेकिन दुनिया से जाने के बाद उनकी प्रतिभा के कसीदे गाए जाने लगे...आज आपकी इस पोस्ट से प्रेरित होकर कुछ लिखूंगा...

जय हिंद...

Khushdeep Sehgal said...
This comment has been removed by the author.
Udan Tashtari said...

लोगों में इतनी अकल नहीं है जो हम जैसे महान ब्लोगर के पोस्ट को समझ पायें। जब पोस्ट को समझेंगे ही नहीं तो भला टिप्पणी कहाँ से करेंगे?


-यह ब्रह्म वाक्य है, नोट कर के टेबल पर चिपका लिया है कम्प्यूटर के बाजू में. :)

Udan Tashtari said...

प्रवीण भाई भावुक हो गये...बताओ. काहे लिखते हैं आप ऐसा ??

Gyan Darpan said...

एक ब्लोगर की मनोदशा का सही विश्लेषण किया है आपने |
आखिर एक ब्लोगर ही दुसरे ब्लोगर का दुखदर्द व मनोदशा समझ सकता है :)

पोस्ट लिखने के बाद कितनी टिप्पणियाँ ,कितने विजिटर ............ बस ब्लॉग व स्टेट काउंटर को निहारता ही रहता है ब्लोगर

शिवम् मिश्रा said...

बेहद उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं!

आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं

Satish Saxena said...

बड़ी दिलचस्प और इमानदारी से लिखी पोस्ट ! शुभकामनायें आपको !

VICHAAR SHOONYA said...

behtarin lekh. maja aya padhkar. pratyek bloggers ki manodasa ka satik varnan.