लौंग, जिसे कि लवांग के नाम से भी जाना जाता है, Myrtaceae परिवार से सम्बन्धित एक पेड़ की सूखी कली को कहते हैं जो कि खुशबूदार होता है। दुनिया भर के व्यञ्जनों को बनाने में प्रायलौंग का प्रयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है। लौंग का उद्गम स्थान इंडोनेशिया को माना जाता है। लौंग को अंग्रेजी में “क्लोव्ह” clove कहा जाता है जो कि लैटिन के शब्द clavus, जिसका अर्थ नाखून होता है, का अंग्रेजी रूपान्तर है। लौंग के नाखून के सदृश होने के कारण ही उसका यह अंग्रेजी नाम पड़ा। लौंग का उत्पादन मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मेडागास्कर, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों में होता है।
लौंग एक सदाबहार पेड़ है जिसकी ऊँचाई 8-12 मीटर तक होती है जिसके पत्ते बड़े-बड़े तथा दीर्घवृताकार होते हैं। लौंग
के पेड़ों के शाखों के अन्तिम छोरों में लौंग के फूल समूह में खिलते हैं। लौंग की कलियों का रंग खिलना आरम्भ होते
समय पीला होता है जो कि धीरे-धीरे हरा होते जाता है और पूर्णतः खिल जाने पर इसका रंग लाल हो जाता है। इन कलियों में चार पँखुड़ियों के मध्य एक वृताकार फल होता है।
हिन्दी के साथ ही साथ उत्तर भारत की अनेक भाषाओं में इसका नाम “लौंग” अथवा “लवांग” है जबकि तेलुगु और मलयालम, जो कि दक्षिण भारतीय भाषाएँ हैं, में इसे क्रमशः “लवांगम” और “ग्राम्पू” के नाम से जाना जाता है।
चूँकि लौंग के प्रयोग से भोजन सुस्वादु हो जाता है, सम्पूर्ण भारत में प्रायः लौंग का प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यञ्जन बनाने में होता है। लौंग को पान के साथ भी खाया जाता है, प्रायः पान के बीड़े में लौंग को खोंस दिया जाता है जिससे बीड़े की सुन्दरता भी बढ़ जाती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में बिना लौंग वाला पान बीड़ा देने को अशुभ माना जाता है। लौंग की तासीर गर्म होने के कारण गर्मियों के दिनों में इसका प्रयोग कम किया जाता है। मसाला चाय बनाने के लिए भी लौंग का इस्तेमाल किया जाता है।
चीन और जापान में भी एक खुशबूदार पदार्थ के रूप में लौंग को महत्वपूर्ण माना जाता है।
यूरोप, एशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के कई क्षेत्रों में लौंग का प्रयोग एक प्रकार के सिगरेट, जिसे कि kretek कहा जाता है, बनाने के लिए भी किया जाता है।
आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों के बनाने में भी किया जाता है। लौंग का तेल एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है। चीन के साथ ही साथ पश्चिम के अनेक देशों में हर्बल दवाइयाँ बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है। लौंग में अनेक प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। यह उत्तेजक, पाचक, मुँह के दुर्गंध को रोकने वाला, दंत क्षय का शमन करने वाला है। लौंग में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, वसा, विटामिन “सी”, विटामिन “ए” जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। अनेक रोगों के निदान के लिए आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग चूर्ण, काढ़ा तथा तेल के रूप में किया जाता है।
आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में लौंग का मूल्य उसके वजन के सोने के बराबर हुआ करता था।
7 comments:
बहुत सुंदर जानकारी जी धन्यवाद, लेकिन आप ने इस लेख को दो बार कापी कर दिया है कृप्या गलती मै सुधार कर ले , दोवारा धन्यवाद
गलती का ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद राज जी!
गलती को सुधार दिया गया है। मैं अपने पोस्ट तख्ती नोटपैड पर टाइप करता हूँ और टाइप होने के बाद उसे ब्लोगर में पेस्ट करता हूँ। शायद गलती से Cntrl+C दो बार दब गया होगा।
अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद |
सराहनीय पोस्ट के लिए बधाई .
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बीजेपी की वेबसाइट में हाथ साफ http://www.ashokbajaj.com
लौंग मे जितने गुण है उतने सोने मे नही... वाह ।
बढ़िया पोस्ट ! मैंने घर में लौंग का पौधा रोपा था ...कमबख्त दीमक साफ कर गईं ! दोबारा कोशिश करता हूं !
बहुत सुंदर प्रस्तुति .. आपके इस पोस्ट की चर्चा ब्लॉग 4 वार्ता में की गयी है !!
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