पल तो पल होता है! कब आता है और कब निकल जाता है पता ही नहीं चल पाता! फिर भी अनेक बार ऐसा होता है कि वही पल युग बन जाता है, बिताए नहीं बीतता। क्या समय की गति भी अलग-अलग समय में अलग-अलग होती है?
क्यों कभी समय पंख लगा कर उड़े चला जाता है और कभी काटे भी नहीं कट पाता?
उत्सव की रात को सभी अपने एक साथ होते हैं और घर में सायंकाल किसी की मृत्यु हो गई हो और रातभर उसकी लाश पड़ी हो तो भी सभी अपने एक साथ होते हैं किन्तु पहली रात अर्थात् उत्सव वाली रात के बीतने का पता भी नहीं चल पाता और दूसरी रात काटे नहीं कटती।
क्यों होता है ऐसा?
क्यों खुशी के दिनों के बीतने का पता भी नहीं चल पाता और क्यों दुःख के दिन पहाड़-से लगने लगते हैं?
ऐसा प्रतीत होता है कि महान वैज्ञानिक आइंसटाइन का विशिष्ट सापेक्षता का सिद्धान्त (Special Theory of Relativity) समय पर भी लागू होता है। समय की गति हमारे मन की अवस्था के सापेक्ष होता है। हम सुखी होते हैं तो हमारे लिए समय की गति तेज होती है और जब हम दुखी होते हैं तो हमारे लिए हमारे लिए उसी समय की गति धीरे हो जाती है। इसीलिए रहीम कवि ने कहा हैः
रहिमन चुप ह्वै बैठिए देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहै देर॥
केवल धीर मनुष्य ही अपने मन की अवस्था पर नियन्त्रण रख सकता है और उसके लिए समय की गति सदैव एक समान होती है। इसीलिए हमारी संस्कृति हमें धीर बनने की शिक्षा देती है।
9 comments:
बहुत अच्छी बात कही जी
सचमुच दुख में और सुख में समय बीतने के अलग पैमाने होते हैं।
प्रणाम
समय की गति सदैव एक समान होती है, लेकिन दुख के समय हमे यह लगता हे कि समय धीरे धीरे बीत रहा हे, क्योकि उस समय हम उदास ओर चुपचाप बेठे होते हे, ओर खुशी के समय हम उतावले होते हे, इस से बात की उस से बात की ओर समय का पता नही चलता, लेकिन खुशी के समय भी अगर हम अकेले हो ओर किसी का इंतजार हो तो यह समय भी बहुत धीरे धीरे चलता हे.
आप के सुंदर लेख के लिये आप का धन्यवाद
बहुत अच्छी बात है। दुख के पल हमेशा ही बड़े लगते हैं।
सर्वथा उचित ..
सही बात है ऐसे मे तो वक्त ही इसकी मरहम है। धन्यवाद।
समय बड़ा बलवान जी !
धैर्य बनाये रखना चाहिये, समय साथ आ जाता है।
bahut achi baat kahi
parivartan hi sansaar ka niyam hai ji
समय के सापेक्ष सुख-दुःख !!!गहरी सोच,वैज्ञानिक विचार.उम्दा लेख.
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