Thursday, November 11, 2010

कहाँ खो गई वो खुशी?

कितने खुश होते थे हम भाई-बहन जब हम सभी को एक साथ बैठा कर माँ खाना परसती थी! हम चार भाई और एक बहन में कोई एक भी अनुपस्थित होता तो हम सभी उसके आने की प्रतीक्षा करते और उसके आ जाने के बाद ही एक साथ खाना खाते थे। एक-दूसरे को देखे बिना हम भाई-बहन रह नहीं पाते थे और हमारे माता-पिता हमारे इस सौहार्द्र को देखकर खुशी से फूले नहीं समाते थे।

आज माता-पिता दोनों ही परलोक सिधार चुके हैं। हम सभी के अपने-अपने परिवार हो गए हैं। सब अलग-अलग घरों में रहते हैं। एक ही शहर में रहते हुए भी महीनों एक दूसरे से मुलाकात नहीं होती। अभी भाई दूज के दिन बहन ने हम सभी भाइयों को निमन्त्रित किया था किन्तु सभी अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग समय में बहन के घर पहुँचे। किसी ने किसी की भी प्रतीक्षा नहीं की।

सोच-सोच कर हैरान हूँ कि कहाँ गया वो बचपन का सौहार्द्र? कहाँ गई वो खुशी?

11 comments:

समय चक्र said...

सब समय का फेर है ... सबकी अपनी अपनी जिम्मेदारी भी तो होती है जिस कारण चाहते हुए भी सभी समय पर एकत्र नहीं हो पाते हैं ..... आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

किन्तु सभी अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग समय में बहन के घर पहुँचे। किसी ने किसी की भी प्रतीक्षा नहीं की।


अब सब अपनी सुविधानुसार ही काम करते हैं ...कम से कम इतना सौहार्द बाकी है कि बहन ने निमंत्रित किया ....

डॉ टी एस दराल said...

अब वह बचपन बच्चों में खोजा जाए ।

अजित गुप्ता का कोना said...

पहले परिवारों में प्रेम बड़ा था लेकिन अब व्‍यक्ति बड़ा हो गया है। नहीं रही पहले सी बात। फिर भी मध्‍यम वर्गीय परिवारों में प्रेम दिखायी देता है।

M VERMA said...

व्यक्तिवादी सोच ने बदल दिया है सारा माहौल

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दिक्कत है बढ़ी हुई जनसंख्या. जिसके कारण लोगों की लाइफस्टाइल बदल गयी. घर दूर दूर हो गये. पैसा कमाना आवश्यक है, जिसके कारण समय की किल्लत हो गयी...

निर्मला कपिला said...

दराल जी ने कहा कि वो बचपन अब बच्चों मे खोजा जाये मगर वो बचपन रहा ही कहाँ है जीवन शैली ने सब कुछ बदल दिया। आपकी पोस्ट ने बचपन की याद दिला दी। धन्यवाद।

अन्तर सोहिल said...

जिन्दगी ऐसे ही चलती है जी
सबके साथ ऐसा होता है
कोई नया बना रिश्ता आपका इंतजार करता है और पुराने दूर होते जाते हैं।
प्रणाम

vandana gupta said...

जाने कहाँ गया वो वक्त? सच यही है जो आज है बाकी तो सब यादों मे रह गया है।

प्रवीण पाण्डेय said...

साथ बैठ कर खाने का आनन्द ही अलग है।

Dorothy said...

निरंतर बदलते परिवेश में मानव जीवन के अंतर्विरोंधों की कटु सच्चाईयों को दर्शाती खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.