(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
निर्मल नभ, मन्द पवन,
पुष्प-गन्ध की व्यापकता,
खग-कलरव, उन्मन भव,
मत्त मदन की मादकता।
अलि गण गुंजन, मुकुलित चुम्बन,
अमराई में मंजरि जाल,
रक्तिम टेसू, अग्नि अन्देशू,
विरह वह्नि की भीषण ज्वाल।
सरसों का पीताम्बर,
अभ्रहीन नीलाम्बर,
उन्मन उन्मन सबका मन,
शीतल निर्झर, कोकिल का स्वर,
ऋतु वसन्त का अनमोल रतन।
(रचना तिथिः रविवार 15-02-1981)
निर्मल नभ, मन्द पवन,
पुष्प-गन्ध की व्यापकता,
खग-कलरव, उन्मन भव,
मत्त मदन की मादकता।
अलि गण गुंजन, मुकुलित चुम्बन,
अमराई में मंजरि जाल,
रक्तिम टेसू, अग्नि अन्देशू,
विरह वह्नि की भीषण ज्वाल।
सरसों का पीताम्बर,
अभ्रहीन नीलाम्बर,
उन्मन उन्मन सबका मन,
शीतल निर्झर, कोकिल का स्वर,
ऋतु वसन्त का अनमोल रतन।
(रचना तिथिः रविवार 15-02-1981)
7 comments:
सुंदर बासंती रचना.
सरसों का फैला पीताम्बर,
है बसन्त की प्रीति अमर।
अलि गण गुंजन, मुकुलित चुम्बन,
अमराई में मंजरि जाल,
रक्तिम टेसू, अग्नि अन्देशू,
विरह वह्नि की भीषण ज्वाल।
बहुत सुन्दर , मैं पुराने लोगो की कला का इसलिए आदर करता हूँ कि वो कहाँ कहाँ से इतने सटीक शब्द ढूढ़ते थे हम तो आज कही शब्द की सही स्पेलिंग नहीं सूझ रही हो तो झट से गूगल सर्च पर चले जाते है यह देखने को कि जो शब्द हमने लिखा उसकी स्पेल्लिंग सही है या नहीं !
वैसे क्या आपने भी कभी कोशिश की कविता रचने की ? इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि अक्सर देखने में आता है कि किसी न किसी में पारिवारिक गुण आ ही जाते है !
सुंदर बासंती रंगो से रंगी सुंदर रचना, धन्यवाद
सुंदर रचना.
मन प्रफुल्लित हो गया..
सुंदर शाब्दिक अलंकरण लिए वासंतिक रचना......
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