Tuesday, March 22, 2011

भक्तिरस के दोहे

लंका में गरजे रावना, अवधपुरी भगवान।
सात समुंदर बीच में, गरज रहे हनुमान॥

लंका में शंका भयो, राम टिकोना दीन।
खबरदार रे रावना, हनुमत बीड़ा लीन॥

राम नाम अइसन हवै, जस कदली के रंग।
धोये से वो ना धुलै, जाय जीव के संग॥

राम कटारी कृष्ण बाण, गुर गोविंद तलवार
ये तीनों हिरदय बसे, कबहुँ ना होवे हार

चंदा तजे ना चांदनी, सूरज तजे ना धाम।
बादल तजे ना श्यामता, भक्त तजे ना राम॥

योगी में शंकर बड़े और भोगी में भगवान।
दानी में हरिश्चंद्र बड़े, बलि में बड़े हनुमान॥

मोर मुकुट कटि काछनी, पीताम्बर उरमाल।
वो मानिक मो मन बसो, सदा बिहारी लाल॥

राधे जू के बदन में, बसत चालीसा चोर।
दस हंसा दस हंसिनी, दस चातक दस मोर॥

वृंदावन के वृक्ष को, मर्म ना जाने कोय।
डाल पात फल फूल में, श्री राधे राधे होय॥

राधे जी के बदन में, बेंदी अति छवि देत।
मानो फूलि केतकी, भंवर वासना लेत॥

आवो प्यारे मोहना, पलक चाप धरि लेहु।
मैं ना देखू किसी और को, तोहि ना देखन देहु॥

राधे प्यारी लाडिली, मेरी ओर तू देख।
मैं तोहि राखूँ नैन में, जिमि काजल की रेख॥

भजन करो भोजन करो, गावो ताल तरंग।
ये मन मेरो लागे रहे, पारवती शिव संग॥

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर भक्ति दोहे।

Rahul Singh said...

कहां से निकल आए ये मोती.

राज भाटिय़ा said...

सभी दोहे बहुत सुंदर जी, धन्यवाद

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

लाजवाब दोहे।

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्‍याख्‍या।