(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)
जय अम्बे मैया,
जय दुर्गे मैया,
जय काली,
जय खप्पर वाली।
वरदान यही दे दो माता,
शक्ति-भक्ति से भर जावें;
जीवन में कुछ कर पावें,
तुझको ही शीश झुकावें।
तू ही नाव खेवइया,
जै अम्बे मैया।
सिंह वाहिनी माता,
दुष्ट संहारिणि माता;
जो तेरे गुण गाता,
पल में भव तर जाता।
तू ही लाज रखैया,
जय अम्बे मैया।
महिषासुर मर्दिनि,
सुख-सम्पति वर्द्धिनि;
जगदम्बा तू न्यारी,
तेरी महिमा भारी।
तू ही कष्ट हरैया,
जय अम्बे मैया।
(रचना तिथिः रविवार 12-10-1980)
जय अम्बे मैया,
जय दुर्गे मैया,
जय काली,
जय खप्पर वाली।
वरदान यही दे दो माता,
शक्ति-भक्ति से भर जावें;
जीवन में कुछ कर पावें,
तुझको ही शीश झुकावें।
तू ही नाव खेवइया,
जै अम्बे मैया।
सिंह वाहिनी माता,
दुष्ट संहारिणि माता;
जो तेरे गुण गाता,
पल में भव तर जाता।
तू ही लाज रखैया,
जय अम्बे मैया।
महिषासुर मर्दिनि,
सुख-सम्पति वर्द्धिनि;
जगदम्बा तू न्यारी,
तेरी महिमा भारी।
तू ही कष्ट हरैया,
जय अम्बे मैया।
(रचना तिथिः रविवार 12-10-1980)
4 comments:
जय जय अम्बे मैया।
समयानुकूल रचना...
बढि़या रचना.
सिद्धहस्त विभूतियों की रचनाएँ जीवन में आत्मसात करने के लिए होती हैं.बाबूजी की रचनाओं को आपके ब्लॉग में पढ़ कर आनंद-विभोर हो जाता हूँ.आप बधाई के पात्र हैं.
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