Thursday, April 7, 2011

शाकुन्त लावण्य

स्वच्छ नीले आकाश में उड़ती हुई चिड़ियाएँ हर किसी के मन को मोह लेती हैं। शाम के समय उद्यानों में पक्षियों का कलरव में शोर का अंश होते हुए भी एक अलग प्रकार की मधुरता होती है। रंग-बिरंगी चिड़ियाओं का अपना अलग ही मनमोहक सौन्दर्य होता है। पक्षियों के इस लावण्य को ही "शाकुन्त लावण्य" कहा जाता है। आजकर हिन्दी में चिड़िया के पर्याय में प्रायः पक्षी शब्द का प्रयोग होता है, खग शब्द का भी प्रयोग कर लिया जाता है किन्तु पक्षी के लिए हिन्दी में और भी बहुत से पर्यायवाची शब्द हैं, जो हैं - विहंग, विहग, विहंगम्, शकुन, शकुन्ति, शकुनि, शाकुन्त, द्विज, अण्डज आदि।

मेनका जब विश्वामित्र से उत्पन्न अपनी कन्या को वन में एक वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गई थी तो शाकुन्तों (पक्षियों) ने ही उसकी रक्षा की थी। कण्व ऋषि उस कन्या को अपने आश्रम में उठा ले आए थे और चूँकि शाकुन्तों (पक्षियों) ने ही उसकी रक्षा की थी, उसका नाम शकुन्तला रख दिया था। उसी शकुन्तला ने राजा दुष्यन्त से गन्धर्व विवाह किया था तथा उनके पुत्र भरत के महाप्रतापी होने के कारण ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ।

उपरोक्त पर्यायों में एक पर्याय द्विज भी है। इस पोस्ट में यह उल्लेख करना कि द्विज शब्द 'द्वि' और 'ज' से बना है, अनुचित नहीं होगा। "द्वि" का अर्थ होता है 'दो' और "ज" (जायते) का अर्थ होता है 'जन्म होना' या 'जन्म लेना' अर्थात् जिसका दो बार जन्म हो उसे द्विज कहते हैं। द्विज शब्द का प्रयोग पक्षी के अलावा ब्राह्मण तथा दाँत  के लिये भी होता है क्योंकि पक्षी एक बार अंडे के रूप में जन्म लेता है और दूसरी बार पक्षी के रूप में, इसी प्रकार ब्राह्मण एक बार माता के गर्भ से शिशु के रूप में जन्म लेता है और दूसरी बार उपनयन संस्कार होने पर ब्राह्मण के रूप में और दूध के दाँत एक बार उगकर बाद में गिर जाते हैं तथा बाद में पुनः नए दाँत उगते हैं।

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

द्विज शब्द का महत्व है।

Rahul Singh said...

कहा गया है- ''जन्मना जायते क्षुद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते।''

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कालिदास का लिखा हुआ अभिज्ञान शाकुन्तलम याद आ गया .. आपके लेख के शीर्षक को पढ़कर..