Saturday, April 16, 2011

पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है

"नमस्कार लिख्खाड़ानन्द जी!"

"नमस्काऽऽर! आइये आइये टिप्पण्यानन्द जी!"

"सुनाइये क्या चल रहा है?"

"चलना क्या है? अभी अभी एक पोस्ट लिखकर डाला है अपने ब्लॉग में और अब हम अन्य मित्रों के पोस्टों को देख रहे हैं।"

"अच्छा यह बताइये लिख्खाड़ानन्द जी, आप इतने सारे पोस्ट लिख कैसे लेते हैं? भइ हम तो बड़ी मुश्किल से सिर्फ टिप्पणी ही लिख पाते हैं, कई बार तो कुछ सूझता ही नहीं तो सिर्फ nice , बहुत अच्छा, सुन्दर, बढ़िया लिखा है जैसा ही कुछ भी लिख देते हैं। पोस्ट लिखना तो सूझ ही नहीं पाता हमें।"

"अरे टिप्पण्यानन्द जी! पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है।"

"कैसे?"

"बताता हूँ पर पहले आप यह बताइये कि दया करना पुण्य और क्रोध करना पाप होता है कि नहीं?"

"जी हाँ, ऐसा ही है, बिल्कुल सही कह रहे हैं आप!"

"अब मान लीजिये कि आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में देखते हैं कि एक आदमी किसी मासूम बच्चे को पीट रहा है और बहुत से लोग चुपचाप देख रहे हैं। आपके पूछने पर लोग बताते हैं कि बच्चे को मारने वाला वह आदमी बच्चे से भीख मँगवाता है। आज बच्चे ने भीख में कुछ भी नहीँ लाया इसीलिये वह बच्चे को मार रहा है। ऐसे में आप क्या करेंगे? आप तो हट्टे-कट्टे आदमी हैं, क्या आप उस आदमी को छोड़ देंगे?"

"अजी, मैं तो फाड्डालूँगा स्साले को। मार मार कर कचूमर निकाल दूँगा। इतना मारूँगा स्साले को कि फिर कभी बच्चे को पीटना ही भूल जायेगा।"

"क्यों मारेंगे उसे आप? क्योंकि उस मासूम बच्चे पर दया आई आपको इसीलिये ना?"

"जी हाँ!"

"तो बच्चे पर दया करके आपने पुण्य किया कि नहीं?"

"बिल्कुल किया जी!"

"अच्छा अब बताइये उस आदमी को मारने के लिये क्रोध भी किया था ना आपने? बिना क्रोध किये तो किसी को मारा नहीं जा सकता!"

"हाँ जी, बहुत गुस्सा आया मुझे।"

"तो क्रोध करके आपने पाप किया कि नहीं?"

"अजी आप फँसाने वाली बात कर रहे हैं।"

"आप तो बस इतना बताइये कि क्रोध करके आपने पाप किया कि नहीं?"

"हाँ जी किया?"

"तो मुझे बताइये कि वास्तव में आपने क्या किया? दया किया कि क्रोध? पुण्य किया कि पाप?"

"अब मैं क्या बताऊँ जी! मेरा तो दिमाग ही घूम गया।"

"देखिये टिप्पण्यानन्द जी! वास्तव में आपने बच्चे पर दया किया किन्तु सिर्फ दया करके आप उस बच्चे को बचा नहीं सकते थे। उसे बचाने के लिये आपको बच्चे को उस दुष्ट आदमी से छुटकारा नहीं दिला सकते थे, बच्चे को उस जालिम से बचाने के लिये उसको मारना भी जरूरी था जो कि बिना क्रोध किये हो ही नहीं सकता। है कि नहीं?"

"जी, बिल्कुल!"

"तो इसका मतलब यह हुआ कि दया करने के लिये क्रोध का सहारा लेना जरूरी है। पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है। पाप और पुण्य का एक दूसरे के बिना काम ही नहीं चल सकता। याने कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।"

"आप की बात सुनने के बाद मुझे भी ऐसा ही लगने लगा है कि पाप और पुण्य एक दूसरे के पूरक हैं।"

"अब हम दोनों के बीच अभी जो बातें हुई हैं उसी को यदि मैं 'पुण्य करने के लिये पाप भी करना पड़ता है' शीर्षक देकर अपने ब्लोग में डाल दूँ तो बन गई ना एक पोस्ट?"

"बिल्कुल बन गई जी!"

"तो जब मैं कहता हूँ कि 'पोस्ट लिखना कौन सा कठिन काम है, कोई भी लिख सकता है' तो क्या गलत कहता हूँ?"

"बिल्कुल सही कहते हैं जी आप!"

"चाय पियेंगे आप? मँगवाऊँ?"

"नहीं लिख्खाड़ानन्द जी, फिर कभी पी लूँगा, आज जरा जल्दी में हूँ। चलता हूँ, नमस्कार!"

"नमस्कार!"

11 comments:

Sawai Singh Rajpurohit said...

वाह बहुत सुन्दर

Sawai Singh Rajpurohit said...

"सुगना फाऊंडेशन जोधपुर" "हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम" "ब्लॉग की ख़बरें" और"आज का आगरा" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को " "भगवान महावीर जयन्ति"" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

सवाई सिंह राजपुरोहित

Rahul Singh said...

वाह, क्‍या पोस्‍ट बनी है.

Udan Tashtari said...

चाय पियेंगे आप? मँगवाऊँ?

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह वाह।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

nice , बहुत अच्छा, सुन्दर, बढ़िया लिखा है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

कहां पड़े हो महाराज, आपको तो बिलासपुर के नये न्याय-मंदिर मे होना चाहिए था।

Unknown said...

waah !

राज भाटिय़ा said...

Nice,बहुत सुंदर, चंगी जी, वल्ले वल्ले जी, घणो सुधरो

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह पोस्ट तो बन गयी ...बढ़िया विश्लेषण पाप और पुण्य का .

Rajput said...

बिलकूल सही कहा आपने लिख्खाड़ानन्द जी
बढ़िया लिखा है