जिस प्रकार से टीवी चैनल्स वाले सीरियल्स बनाते समय इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं कि उनके दर्शक क्या देखना चाहते हैं, उसी प्रकार से एक ब्लोगर को भी इस बात का ध्यान रखना, कि उसके पाठक क्या पढ़ना चाहते हैं, निहायत ही जरूरी है। वास्तव में आपकी लिखी सामग्री (content) ही पाठकों को खींच कर आपके ब्लॉग में लाती है। अंग्रेजी में तो कहा जाता हैः
'Content is king.'
अर्थात्, यदि हिन्दी में कहें तो, "सामग्री ही साम्राज्ञी है।"
किन्तु हममें से अधिकांश हिन्दी ब्लोगर वह लिखते हैं जो उन्हें पसंद है, किन्तु यह जरूरी नहीं है कि एक व्यक्ति की पसंद सभी लोगों को भी पसंद आए। कई बार तो हम यह सोच कर भी लिख देते हैं कि कुछ न कुछ तो लिखना है। अब आप ही बताइए कि इस प्रकार के उद्देश्यहीन लेखन को क्या पाठक पसंद कर सकता है? फिर ऐसे लेखन का क्या फायदा जिसे कि कोई पढ़े ही नहीं। यह तो वही बात हुई कि जंगल में मोर नाचा किसी ना देखा।
तो आइए जानने की कोशिश करें कि पाठक क्या चाहता है?
वास्तव में पाठक सन्तुष्टि चाहता है। वह चाहता है कि उसे घिसी पिटी चीज पढ़ने को न मिले। उसने जो कुछ भी पढ़ा है उससे उसे कुछ नई जानकारी मिली है, उसके ज्ञान में कुछ वृद्धि हुई है। यदि पाठक ऐसे लेख को पढ़ता है जिसे पढ़कर उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता तो उसे क्षोभ होता है और जिस ब्लॉग में उसे ऐसी सामग्री पढ़ने को मिली है उस ब्लॉग से वह कन्नी काट लेता है। इसके विपरीत यदि उसे किसी ब्लॉग की सामग्री को पढ़कर कुछ नयापन मिले, उसे सन्तुष्टि हो तो वह उस ब्लॉग का चाहने वाला बन जाता है। याद रखिए कि पाठक को उसके पसंद की सामग्री मिलेगी तो वह उसे अवश्य ही पढ़ेगा।
एक बात यह भी है कि पाठक हमेशा नई-नई जानकारी चाहता है और ऐसे में एक बहुत बड़ा प्रश्न उठता है कि आखिर रोज रोज आखिर नई जानकारी लायें कहाँ से?
यह यक्षप्रश्न है कि आखिर रोज हम अपनी सामग्री में कहाँ से नयापन लायें? सच्चाई भी यही है कि हम हमेशा नई जानकारी नहीं प्राप्त कर सकते। पर हाँ किसी पुरानी जानकारी को ऐसी शैली में प्रस्तुत कर सकते हैं कि उसमें नयापन झलकने लगे। प्रायः सभी सफल लेखक यही करते हैं और इस प्रकार के प्रस्तुतीकरण को पाठक भी पसंद करते हैं।
कभी कभी ऐसा भी हो जाता है कि हम पाठकों को ऐसी सामग्री देना चाहते हैं जिनके विषय में हम जानते हैं कि यह उनके लिये हितकारी है किन्तु उनकी रुचि के अनुरूप नहीं है। ऐसी स्थिति में आप अपने लेख को इस चतुराई से (tactfully) लिखें कि पाठक को वह सुरुचिपूर्ण लगे। मतलब यह कि कड़वी दवा के ऊपर शक्कर की परत।
किन्तु इस बात का भी विशेष ध्यान रखना है अच्छी बातों की अपेक्षा बुरी बातें लोगों को अधिक आकर्षित करती हैं और इसी कारण से अश्लीलता और फूहड़ता अधिकांश पाठकों को आसानी के साथ आकर्षित कर लेती हैं। लोगों की इसी मनोवृति का फायदा उठाते हुए आज के अधिकांश टीवी चैनल्स अपने दर्शकों को, "जोई रोगी भावै सोई बैद बतावै" के तर्ज पर, धड़ल्ले के साथ अश्लीलता और फूहड़ता परस रहे हैं। उन्हें इस बात से कुछ भी सरोकार नहीं है कि ऐसा करने से समाज और देश का कितना अहित हो रहा है, उन्हें तो सिर्फ अपने टीआरपी बढ़ा कर अधिक से अधिक विज्ञापन बटोरने का ही ध्यान रहता है। पर हमें ऐसा कतइ नहीं करना है। हमें तो ऐसे पोस्ट लिखना है जो लोगों में जागरूकता पैदा करे और समाज तथा देश का हित करे।
8 comments:
मेरे दिल में आज क्या है, तू कहे तो मैं बता दूं..
क्या खयाल है.. जनाब...
अवधिया जी, टीवी चैनल या अन्य लेखक अपने पाठकों को ध्यान में रखते हुए ही रचना करते हैं लेकिन ब्लागिंग में मुसीबत यह है कि यहाँ सभी ब्लागर है, पाठक जैसे जनसामान्य पाठक नहीं। इसलिए लोग इस सोच को ध्यान में नहीं रख पाते हैं।
बहुत सही लिखा है आपने|
दो और महत्वपूर्ण अंग हैं, शीर्षक तथा लेबल|
हम तो आप ही की तरह अपनी पसंद का लिखते हैं, जो पढ़कर टिप्पणी देते हैं वे प्रमाणित करते हैं कि वह लोगों को भी पसंद है. हम इस खुशफहमी में भी रहते हैं, कि हमारे ब्लॉग के उपयुक्त लाखों पाठक हैं, जिन्हें इसकी खबर नहीं है या वे नेट सुविधाविहीन हैं.
अपन तो जानते हैं कि पाठक क्या चाहते हैं। और वही मैं लिखता हूं।
पाठक क्या चाहता है...
विविधता, किस्सागोई, नई जानकारी, हास्य समेत रंगकर्म के सभी नौ रस...
जय हिंद...
Padhana likhana seekho a blogging karne walo...............
jai baba banaras......
जो पढ़ना अच्छा लगे, वही लिखा जाये।
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