Thursday, May 5, 2011

अच्छा बनना चाहते हो तो पहले विशिष्ट बनो

अंग्रेजी की एक लोकोक्ति हैः

You don't have to be different to be good. You have to be good to be different.

अर्थात् "अच्छा" बनने के लिए "विशिष्ट" बनना आवश्यक नहीं है बल्कि "विशिष्ट" बनने के लिए "अच्छा" बनना आवश्यक है।

राम के लिए शबरी "विशिष्ट" थी क्योंकि वह "अच्छी" थी, इसीलिए तो राम ने शबरी के द्वारा दिए गए कंद-मूल-फल को प्रेमपूर्वक खाया और उनकी प्रशंसा भी की -

कंद मूल फल सरस अति दिए राम कहुँ आनि।
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि॥
तुलसीदास

कृष्ण के लिए सुदामा "विशिष्ट" थे क्योंकि वे "अच्छे" थे, तभी तो सुदामा की दीन दशा देखकर कृष्ण की आँखें अश्रुपूरित हो गईं -

देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैंनन के जल सौं पग धोये॥
नरोत्तमदास

किन्तु मैं भी कैसा मूर्ख हूँ जो यह नहीं समझता कि ये सब अतीत की बाते हैं। आज के युग में इन बातों का कुछ भी महत्व नहीं है, ये सब बकवास हैं। हो सकता है कि अतीत काल में "अच्छा" व्यक्ति को "विशिष्ट" समझ लिया जाता हो किन्तु वर्तमान समय में तो "विशिष्ट" होने के लिए "अच्छा" होना कतई जरूरी नहीं है बल्कि "अच्छा" बनने के लिए पहले "विशिष्ट" बनाना आवश्यक है। "अच्छे" लोगों का सारा देश आदर करता है; मोहनदास करमचंद गांधी ने अहिंसा के बल पर देश को स्वतन्त्र दिला दी थी इसलिए वे "विशिष्ट" थे और चूँकि वे "विशिष्ट" थे इसलिए "अच्छे" भी थे इसीलिए तो सारा देश उन्हें "बापू" और "महात्मा गांधी" कहकर उनका सम्मान करता है। सुभाष चन्द्र बोस ने क्रान्ति के बल पर देश को स्वतन्त्र करना चाहा इसलिए वे "विशिष्ट" नहीं बन पाए और इसी कारण से वे केवल बंगाल तक ही सिमट कर रह गए, सारे देश में उन्हें गांधी जैसा सम्मान नहीं मिल सका। यह बात अलग है कि अंग्रेजों ने अहिंसक आन्दलनों के कारण नहीं बल्कि अपनी विवशता के कारण भारत को छोड़ा, तभी तो 1947 में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री लॉर्ड एटली ने हाऊस ऑफ कामन्स में कहा था "हमने भारत को इसलिए छोड़ा क्योंकि हम भारत में ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे थे"। अब ज्वालामुखी के मुहाने को अहिंसा तो खोल नहीं सकती, हाँ क्रान्ति में अवश्य ही उसे खोलने की ताकत है। खैर हमें क्या? यदि लोग कहते हैं कि देश में स्वतन्त्रता अहिंसा से आई तो हम मान लेते हैं कि ऐसा ही हुआ होगा। भावनाओं में बह कर मैं शायद विषय से भटक रहा हूँ। तो मैं कह रहा था कि आज के जमाने में "विशिष्ट" व्यक्ति ही "अच्छा" व्यक्ति होता है। राहुल गांधी नेहरू वंश के कुलदीपक हैं इसलिए "विशिष्ट" हैं और "विशिष्ट" हैं तो "अच्छे" भी हैं। ओसामा भी विशिष्ट व्यक्ति हैं, तभी तो दिग्विजयसिंह उन्हें "ओसामा जी" कह कर सम्मानित करना चाहते हैं। बाबा रामदेव को शायद पता नहीं है कि विदेशी बैंकों में जमा देश के काले धन को वापस लाने के लिए लम्बे अरसे से प्रयास करने से वे "विशिष्ट" नहीं बन जाएँगे, उन्हें पता होना चाहिए कि "विशिष्ट" बनने के लिए गांधीवादी तरीका अपनाना पड़ता है, अब देखिए ना "अन्ना" जी ने गांधीवादी तरीका अपनाया तो कितने कम समय में "विशिष्ट" बन गए!

आज प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि लोग उसे विशिष्ट मानें और साथ ही अच्छा भी मानें। हम ब्लोगर भी इसके अपवाद नहीं हैं इसीलिए तो अपने पोस्टों पर टिप्पणियों की भरमार चाहते हैं, हिन्दी ब्लोग्स की विशेषता अधिक संख्या में उसके पाठकों की संख्या नहीं वरन अधिक से अधिक टिप्पणियाँ पाना है। यदि हमारे ब्लोग्स में सौ के स्थान पर हजार, लाख या करोड़ पाठक क्यों न आ जाएँ, हम विशिष्ट नहीं बन सकते, विशिष्ट तो हम तभी बन सकेंगे जब हमें अधिक से अधिक संख्या में टिप्पणियाँ मिलेंगी। और यह कहने की तो आवश्यकता ही नहीं होनी कि "विशिष्ट" व्यक्ति अपने आप ही "अच्छा" बन जाता है।

इसलिए यदि अच्छा बनना चाहते हो तो पहले विशिष्ट बनो!

कहा भी गया है -

घटं भिन्द्यात् पटं छिन्द्यात् कुर्याद्रासभरोहण।
येन केन प्रकारेण प्रसिद्धः पुरुषो भवेत्॥

घड़े तोड़कर, कपड़े फाड़कर या गधे पर सवार होकर, चाहे जो भी करना पड़े, येन-केन-प्रकारेण प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहिए याने कि विशिष्ट बनाना चाहिए।

9 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दिल को छूने वाला लेख...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

शिरीमान जी... :) श्रीलाल शुक्ला जी की पुस्तक वाला लिंक नहीं खुल रहा है... :( कृपया दूसरा लिंक देने की कृपा करें..

Unknown said...

@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen

ब्रोकन लिंक के लिए मुझे अफसोस है। कृपया आप अपना ईमेल पता मुझे gkawadhiya@gmail.com पते पर भेज दीजिए, मैं श्रीलाल शुक्ल जी की "राग दरबारी" ई पुस्तक आपको मेल कर दूँगा।

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ा ही सटीक आलेख।

संजय @ मो सम कौन... said...

घटं....भवेत वाले श्लोक से सिद्ध होता है कि हमारे पूर्वजों को ब्लॉगिंग की अच्छी जानकारी थी:)

Patali-The-Village said...

बड़ा ही सटीक आलेख। धन्यवाद|

संगीता पुरी said...

बिल्‍कुल सटीक बातें कही हैं !!

Unknown said...

waah......man trupt ho gaya

aanand a gaya aapko padh kar

राज भाटिय़ा said...

सहमत हे जी, इस सुंदर विचार से