हुस्न और इश्क में संसार का शाश्वत सत्य है। ये दोनों अर्थात् हुस्न और इश्क एक दूसरे के बिना अधूरे हैं फिर भी इन दोनों में कभी टकराव होता है, कभी अनबन होती है, कभी चुहलबाजी होती है और अन्ततः दोनों सदा के लिए एक दूसरे के होकर रह जाते हैं।
हुस्न और इश्क के अहं के टकराव को बहुत ही सुन्दर और सटीक लफ्ज़ दिए हैं महान शायर मज़रूह सुल्तानपुरी ने!
(हुस्न)
ज़ुल्फ की छाँव में चेहरे का उजाला लेकर
तेरी वीरान-सी रातों को सजाया हमने
(इश्क)
मेरी रातों में जलाये तेरे जल्वों ने चराग
तेरी रातों के लिए दिल को जलाया हमने
ये तेरे गर्म से लब, ये तेरे जलते रुख़सार
देख हमको के बनाया है इन्हें दिल का क़रार
कैसे अंगारों को सीने से लगाया हमने
तेरी रातों के लिए दिल को जलाया हमने
(हुस्न)
हम ने हर दिल को सिखाया है धड़कने का चलन
देके उल्फत की तड़प, देके मोहब्बत की जलन
तुझसे दीवाने को इन्सान बनाया हमने
तेरी वीरान-सी रातों को सजाया हमने
(इश्क)
सीख ले रस्म-ए-वफ़ा हुस्न भी दीवानों से
दास्तां अपनी भरी है इन्हीं अफ़सानों से
रख दिया सर को जहाँ फिर न उठाया हमने
तेरी रातों के लिए दिल को जलाया हमने
और मज़रूह साहब के इन शानदार लफ्ज़ों को मधुर धुन में ढाल कर अमर कर दिया प्रसिद्ध संगीतकार ओ.पी. नैयर जी ने!
फिल्म फिर वही दिल लाया हूँ के इस गाने को यदि आप डाउनलोड करना चाहें तो लिंक है
ज़ुल्फ की छाँव में…..
2 comments:
अहा।
अवधिया जी,
बहुत दिनों के बाद इस खूबसूरत नगमे को सुनने का सौभाग्य मिला है.आपकी प्रस्तुति ने इसे और भी खूबसूरत बना दिया है.गीत में ओ.पी.नैय्यर साहब का अलग ही अंदाज है.रफ़ी साहब का "दिल" को गाने का अंदाज ,ओ.पी.नैय्यर की धुनों में आशा भोंसले जी का अंदाज सब कुछ जरा हट कर है.आपको धन्यवाद.भविष्य में भी ऐसे ही भूले बिसरे नगमों की उम्मीद रहेगी.
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