Monday, August 8, 2011

मेरी पसंद के कुछ दोहे

रहिमन चुप व्है बैठिये, देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

रहिमन निज मन की ब्यथा, मन ही राखो गोय।
सुन इठलइहैं लोग सब, बाँट न लइहैं कोय॥

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहाँ करै तलवारि॥

.निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुहाय॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोय॥

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरहुं को शीतल करै, आपहु शीतल होय॥

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब्ब॥

छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कहि रहीम हरि का गयो, जो भृगु मारेव लात॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै, तो दुख काहे होय॥

एकहि साधै सब सधै, सब साधै सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय॥

बड़े काम ओछे करे, तौ न बड़ाई होय।
ज्यों­ रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहै ना कोय।

रहिमन वे नर मर गये, जिन कछु मांगन जाहि।
उन ते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसति नाहि॥

खीरा सिर ते काटिये, मलिये लोन लगाय।
रहिमन कड़ुये मुखन को, चहियत यही सजाय॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित-अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

मन मोती और दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फटे ते फिर ना मिले, कोटिन करो उपाय॥

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
पारब्रम्ह को पाइये, मन ही की परतीत॥

खैर खून खाँसी खुसी बैर प्रीत मदपान।
रहिमन दाबे ना दबे जानत सकल जहान॥

आवत ही हरसे नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहाँ ना जाइए कंचन बरसे मेह॥

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

संग्रह कर ली, आभार।

ASHOK BAJAJ said...

खैर खून खाँसी खुसी बैर प्रीत मदपान।
रहिमन दाबे ना दबे जानत सकल जहान॥

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत दिनों बाद स्कूल की यादें ताजा हो गयीं..

Rahul Singh said...

एकदम चुनिंदा.