कम से कम भारत में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिनसे चावल या उससे बने खाद्य सामग्री का प्रयोग न किया हो। चावल जहाँ बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश आदि अनेक राज्यों का प्रमुख भोजन है वहीं पंजाब, हरयाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों, जहाँ का प्रमुख भोजन गेहूँ है, में भी चावल के बिना भोजन को अपूर्ण ही माना जाता है। यद्यपि आज बंगाल और बिहार राज्य भी चावल उगाने लगे हैं किन्तु कुछ दशक पूर्व तक इन दोनों राज्यों में छत्तीसगढ़ के द्वारा ही चावल की आपूर्ति हुआ करती थी क्योंकि छत्तीसगढ़ का मुख्य फसल चावल है और इसीलिए उसे "धान का कटोरा" के नाम से भी जाना जाता है। बहरहाल, चावल किसी राज्य का मुख्य भोजन हो या न हो, थोड़ी मात्रा में चावल खाना सभी राज्यों में पसन्द किया जाता है। यही कारण है कि समस्त भारत में चावल से बने खाद्य पदार्थ जैसे कि सादा राइस, मसाला राइस, राइस पुलाव, राइस बिरयानी इत्यादि आसानी के साथ उपलब्ध हो जाते हैं।
भारत में अत्यन्त प्राचीनकाल से ही चावल को महत्व दिया जाता रहा है। 'धान्य' के रूप में इसे साक्षात् लक्ष्मी ही कहा गया है। चावल के बगैर कोई भी पूजा सम्पन्न नहीं होती। दही और चावल का टीका लगाया जाता है। सुदामा ने कृष्ण को तंदुल अर्थात चावल ही भेंट किए थे। चावल को संस्कृत में 'अक्षत' के नाम से जाना जाता है।
एशिया के अनेकों देश ऐसे हैं जहाँ पर लोग औसतन दिन में दो से तीन बार तक चावल खाते हैं। म्यांमार में हर व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 195 किलो चावल खाता है जबकि कम्बोडिया और लाओस में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 160 किलो चावल खाता है। एशिया की अपेक्षा अमेरिका और यूरोप के लोग चावल कम खाते हैं, अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 7 किलो और यूरोप में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष औसतन 3 किलो चावल खाता है।
मानव ने सबसे पहले चावल की ही खेती की थी। हड़प्पा सभ्यता में, जो कि आज से लगभग पाँच हजार साल पुरानी है, चावल की खेती के प्रमाण मिले हैं।
किसी भी देश में उगने वाले चावल के अधिकतर भाग का उपभोग उसी देश में हो जाया करता है। यही कारण है कि विश्व के देशों में उगाए जाने वाले चावल का मात्र पाँच प्रतिशत ही निर्यात होता है। चावल का निर्यात करने में पहला नंबर है थाईलैंड का जो लगभग पचास लाख टन चावल का निर्यात करता है, दूसरे और तीसरे नंबर के चावल निर्यातक हैं अमेरिका और वियतनाम जहाँ से क्रमशः तीस लाख टन और बीस लाख टन चावल निर्यात होते हैं।
कहा जाता है कि संसार भर में धान की 1,40,000 से भी अधिक किस्में उगाई जाती हैं किन्तु शोधकर्ताओं के लिए बनाए गए अन्तर्राष्ट्रीय जीन बैंके में धान की लगभग 90000 किस्में ही जमा की जा सकी हैं। भारत में चावल की कुछ लोकप्रिय किस्में हैं - बासमती, गोविंद भोग, तुलसी भोग, तुलसी अमृत, बादशाह भोग, विष्णु भोग, जवाफूल, एच.एम.टी. इत्यादि।
धान की खेती करना अत्यन्त श्रमसाध्य कार्य है। पारम्परिक तरीके से धान बोने हेतु एक एकड़ खेत को तैयार करने के लिए किसान को कीचड़ से सनी मिट्टी पर हल तथा बैलों के साथ लगभग बत्तीस कि.मी. चलना पड़ता है। धान के पौधे रोपने के लिए कमर से नीचे झुक कर एक-एक पौधे को जमीन में लगानी होती है जो कि एक कमर तोड़ देने वाला कार्य है। धान के फसल के लिए पानी की बहुत अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि धान की खेती पानी से लबालब भरे खेत में ही की जाती है।
धान का प्रत्येक हिस्सा उपयोगी होता है। धान की फसल काट लेने के बाद बचा हुआ पैरा मवेशियों को खिलाने के काम में आता है। धान के पैरे से रस्सी भी बनाई जाती है। धान के भूसे को उपलों के साथ मिला कर ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। धान से लाई और चिवड़ा बनाया जाता है। चावल को सड़ा कर शराब तथा बियर बनाई जाती है। चावल के दानों को रंग कर रंगोली बनाई जाती है। चावल की पालिश के समय निकले छिलकों से तेल निकाला जाता है जिसे खाद्य तेल के रूप में तथा साबुन, सौन्दर्य सामग्री इत्यादि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
1 comment:
उपयोगी धान पर उपयोगी पोस्ट।
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