Friday, December 23, 2011

शीत की सांझ

(स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित कविता)

हल्की सिहरन धुंधली आभा,
सांझ शीत की आती है;
शिशुओं की नींद उनींदी-सी,
अंधियारी छा जाती है।

सूनी-सूनी सड़कें-गलियाँ,
सन्नाटा-सा छा जाता;
सिसकारी में डूबा जनपद,
तन्द्रा में द्रुत अलसाता।

सीस झुका तरुओं में पल्लव,
विहगों को सहलाते हैं;
पंख फुलाये कलरव भूले,
पंछी मन बहलाते हैं।

पश्चिम में रवि की लाली को,
निगल कालिमा खाती है;
शीतलता की ठंडी आहें,
निशि की सिसकी लाती है।

चौपालों में गाँव ठिठुरते,
कहीं अंगीठी जल जाती;
घेर घेर कर लोग तापते,
उष्ण शान्ति तन में आती।

उधर नगर में उष्ण वसन से
लिपट नागरिक फिरते हैं;
ऊनी मफलर स्वेटर में,
शिशिर सांझ पल कटते हैं।

4 comments:

Rahul Singh said...

''शिशुओं की नींद उनींदी-सी, अंधियारी छा जाती है।'' नाजुक अभिव्‍यक्ति.

प्रवीण पाण्डेय said...

इस ठंड में गर्माहट देती पंक्तियाँ।

सूर्यकान्त गुप्ता said...

sheet ritu ka sateek varnan...jay johar!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत सुन्दर कविता...