Saturday, December 20, 2014
पत्नी स्तुति - हे सुमुखि! हे मृदुभाषिणी! हे देवि! हे भार्या!
(विवाहोपरान्त पहले साल तक)
हे आर्यावर्त की आधुनिक आर्या!
हे सुमुखि! हे मृदुभाषिणी!
हे देवि! हे भार्या!
पाणिग्रहण करके तुमने मुझपर
किया बड़ा उपकार है,
तुझे देख हर सपना मेरा
हो जाता साकार है।
हे मृगनयनी, हे पिकबयनी
पाकर तेरा प्रणय दान
हर निशा बनी है पूर्णचन्द्र
सँवर उठे मेरे दिनमान।
हर्षित हृदय होकर जब तू
आती मेरे पास है
यह अकिंचन प्राणी तेरा
बन जाता फिर दास है।
(विवाहोपरान्त पहले साल के बाद)
हे आर्यावर्त की आधुनिक आर्या!
हे विकराले! हे कटुभाषिणी!
हे देवि! हे भार्या!
पाणिग्रहण किया था तुझसे
सोच के कि तू कितनी सुन्दर है,
पता नहीं था
मेरी बीबी मेरी खातिर
"साँप के मुँह में छुछूंदर है"
निगल नहीं पाता हूँ तुझको
और उगलना मुश्किल है
समझा था जिसको कोमलहृदया
अब जाना वो संगदिल है
खब्त-खोपड़ी-खाविन्द हूँ तेरा
जीवन भर तुझको झेला हूँ
"पत्नी को परमेश्वर मानो"
जैसी दीक्षा देने वाले गुरु का
सही अर्थ में चेला हूँ
बैरी है तू मेरे ब्लोगिंग की
क्यूँ करती मेरे पोस्ट-लेखन पर आघात है?
मेरे ब्लोगिंग-बगिया के लता-पुष्प पर
करती क्यों तुषारापात है?
हे विकराले! हे कटुभाषिणी!
हे देवि! हे भार्या!
बस एक पोस्ट लिखने दे मुझको
और प्रकाशित करने दे
खाली-खाली हृदय को मेरे
उल्लास-उमंग से भरने दे
तेरे इस उपकार के बदले
मैं तेरा गुण गाउँगा
स्तुति करूँगा मैं तेरी
और तेरे चरणों में
नतमस्तक हो जाउँगा।
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