'धान के देश में' मेरे पूज्य पिता स्व. श्री हरिप्रसाद अवधिया रचित छत्तीसगढ़ के जन-जीवन का प्रथम आंचलिक उपन्यास है। इस उपन्यास की भूमिका छत्तीसगढ़ के सुविख्यात साहित्यकार डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने लिखी थी।
जब तक पिताजी जीवित रहे, अपनी रचनाओं को अत्यंत सहेज कर रखते रहे किन्तु उनके स्वर्गवास के पश्चात् उन रचनाओं का ध्यान किसी ने नहीं रखा और दुर्भाग्यवश उनकी समस्त प्रकाशित रचनायें तथा पांडुलिपियाँ नष्ट हो गईं। नौकरी में बाहर होने का बहाना बनाकर मैं स्वयं को आरोप से नहीं बचाना चाहता, मैं स्वयं अनुभव करता हूँ कि उनकी रचनाओं के नष्ट होने में मेरे अनुजों के साथ ही साथ मेरा भी उनके बराबर ही दोष है। अस्तु, अत्यधिक तलाश करने पर जो भी उनकी कुछ रचनायें मुझे मिल पाई हैं उन्हें इस चिट्ठे में पोस्ट करने का मेरा विचार है।
सर्वप्रथम मैं यहाँ श्री हरिप्रसाद अवधिया जी का संक्षिप्त परिचय दूँगा। उसके बाद डॉ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी लिखित 'धान के देश में' की भूमिका को आप लोगों के समक्ष रखूँगा। फिर बारी बारी से उनकी छोटी रचनायें (खण्डकाव्य, कहानियाँ) को प्रकाशित करूँगा। और अंत में उनके उपन्यास 'धान के देश में' को धारावाहिक रूप से पोस्ट करूँगा।
तो प्रस्तुत है श्री हरिप्रसाद अवधिया जी का संक्षिप्त परिचय
श्री हरिप्रसाद अवधिया जी का जन्म 17/11/1918 को हुआ था। सत्रह वर्ष की अवस्था से ही वे कहानियाँ लिखने लग गये थे। उनकी 'नौ पैसे' शीर्षक कहानी पहली रचना है जो कि इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली 'नई कहानियाँ' नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद से वे लगातार लिखते रहे। उनकी रचनायें 'सरस्वती', 'माधुरी', 'विशाल भारत' 'नव-भारत' और 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' में प्रकाशित हुईं। सन् 1948 में उन्होंने हिन्दी में एम.ए. किया और साहित्य के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी अवतीर्ण हुये।
1/04/1998 को वे हम सब को छोड़ कर स्वर्गवासी हो गये।
1 comment:
ishwar unki aatma ko shanti de. AAMIN
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