Wednesday, September 2, 2009

हिन्दी ब्लोगिंग को अस्वच्छ करने आ गया "स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़"

आम तौर पर मैं फालतू बहस का मुद्दा बन जाने वाला पोस्ट लिखने से बचने की कोशिश करता हूँ पर पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ हिन्दी ब्लोगिंग को अस्वच्छ करने के लिए एक ब्लोग "स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़" अवतरित हो गया है जिसमें संदेश तो अस्वच्छ होते हैं और आवाज इस्लाम की।

इस ब्लोग के मालिक मियाँ सलीम के पास सिर्फ दो ही काम रह गए हैं पहला इस्लाम को येन-केन-प्रकारेण दूसरे लोगों पर थोपना और दूसरा ऊल-जलूल लेख लिख कर और टिप्पणियाँ कर के लोगों को भड़काना। ये बात अलग है कि ये खुद ही नहीं जानते कि क्या लिख रहे हैं, अपनी ही बात को खुद काटते हैं। इनके एक लेख का शीर्षक है "मांसाहार क्यूँ जायज़ है? Non-veg is allowed, even in hindu dharma?" तो दूसरे लेख का शीर्षक है "मांसाहार जायज़ नहीं है, यह एक राक्षशी कृत्य है. Non-veg is not-permitted, its an evil task" है। (दोनों शीर्षक कॉपी पेस्ट किए गये हैं अतः हिज्जों की गलती को अनदेखा करें)। अब भला इन शीर्षकों से क्या समझा जाए? यही तो समझा जायेगा कि लिखने वाला बावला है।

ये कहते हैं कि ये इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं। तो करो ना प्रचार, किसने मना किया है? पर इस्लाम को जबरन दूसरों पर थोपने की कोशिश तो मत करो। हम मानते हैं कि सभी धर्म मानव जाति के कल्याण के लिए हैं, किसी धर्म का किसी धर्म से किसी प्रकार का झगड़ा नहीं है। तो तुम अपने धर्म के हिसाब से चलो और हमें अपने धर्म के अनुसार चलने दो।

छत्तीसगढ़ी में एक कहावत है "रद्दा में हागै अउ आँखी गुरेड़ै" अर्थात् रास्ते में हग रहा है और मना करने वाले को आँखें दिखाता है। यह छत्तीसगढ़ी कहावत मियाँ सलीम पर सौ फी सदी लागू होता है। ऊल-जलूल लेख लिखने और टिप्पणियाँ करने याने कि रास्ते में हगने का इन्होंने ठेका लिया हुआ है। कहीं पर भी हिन्दू शब्द, हिन्दू देवी देवताओं के नाम आदि दिख भर जाए कि ये वहाँ पहुँच जायेंगे और टिपियाना शुरू कर देंगे। ऐसे किसी भी पोस्ट में टिप्पणी के रूप में अपनी टांग अड़ाना ये अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। समझाने से समझते तो हैं नहीं और बेशर्म ये इतने हैं कि इन्हें किसी भी प्रकार की बात नहीं लगती।

ये स्वयं को इस्लाम और कुरआन के विशेषज्ञ तो बताते ही हैं, साथ ही साथ खुद को वेद-पुराण आदि के भी प्रकाण्ड पण्डित भी दर्शाते हैं। इनकी निगाहों में हम हिन्दू इतने मूर्ख हैं कि हमने अपने ही धर्मग्रंथ पढ़े ही नही हैं और ये इतने ज्ञानी हैं कि अपने धर्मग्रंथ के साथ ही हमारे धर्मग्रंथों को भी पढ़ते रहते हैं। ये हमें हमारे ही धर्मग्रंथ सिखाना-पढ़ाना चाहते हैं। अवतार शब्द का अर्थ तो ये जानते नहीं और हमें हमारे ही अवतारों के बारे में बताते हैं। ये समझते हैं कि अवतार सिर्फ ईश्वर का होता है। इन्हें नहीं पता कि अवतार मनुष्य का भी होता है, अवतार मनोविकारों का भी होता है। गोस्वामी तुलसीदास आदिकवि वाल्मीकि के अवतार थे और ये स्वयं "नफरत" के अवतार हैं। वेद और पुराण के उन उद्धरणों को इन्होंने रट लिया जो कि इन्हें इस्लाम विचारधारा से मेल खाते हुए से लगते हैं।

इन्हें यह नहीं पता है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति अनेक प्रकार के विचारधाराओं का मेल है। इसमें जहाँ एकेश्वरवाद है वहीं बहुईश्वरवाद भी है। जहाँ निर्गुण ब्रह्म है वहीं सगुण ब्रह्म भी है। जहाँ ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करने वाले आध्यात्मिक ऋषिगण हैं वहीं चार्वाक जैसा ईश्वररीय सत्ता को अस्वीकार करने वाला भौतिकवादी ऋषि भी है। और इन्हें यह भी नहीं मालूम कि हम हिन्दू जितना सम्मान आध्यामिक ऋषि को देते हैं, भौतिवादी ऋषि के लिए भी हमारे हृदय में उतना ही आदर है।

कुछ और जानें या न जानें पर हमारे धर्मग्रंथों से अपने मतलब की बातें खोज लेना अच्छी प्रकार से जानते हैं। हमारे धर्मग्रंथों से एकेश्वरवाद, निर्गुण ब्रह्म जैसी विचारधाराओं, जो कि इस्लाम विचारधारा से मिलते हैं, को ढूँढ निकालते हैं और उन्हीं अपने मतलब की बातों के सहारे हमें ज्ञान देने का प्रयास करते हैं। ये यह भी दर्शाते हैं कि इन्हें हमारे धर्म की हमसे अधिक चिंता है, किस फिल्म में हमारे धर्म से सम्बन्धित बातों को गलत रूप फिल्माया गया था। कहने का तात्पर्य है कि ये बुड्ढे को मूतना सिखाना चाहते हैं।

इन्हें अच्छी तरह से पता है कि कोई इनकी बात को नहीं मानने वाला है इसलिए जनाब कैरानवी को अपनी हाँ में हाँ मिलाने के लिए सहायक बना रक्खा है।

हम जानते हैं कि गंदगी में यदि पत्थर फेकेंगे तो गंदगी के छींटे हमें ही लगेंगे पर हमें गंदा करने के लिए गंदगी बन जाने में भी इन्हें किसी प्रकार का परहेज नहीं है। ये ऐसी गंदगी हैं जो चाहते हैं कि हम उन पर पत्थर फेंकें, ये हमें जानबूझ पत्थर फेंकने के लिए उकसाते हैं।

ज्ञानी यदि ज्ञानी से मिले तो काम की बातें होती हैं और मूर्ख मूर्ख से मिलता है तो जूतमपैजार होती है इसीलिए कहा गया हैः

ज्ञानी से ज्ञानी मिले, हो गई अच्छी बात।
मूरख से मूरख मिले, हो गई दो दो लात॥

पर यदि ज्ञानी मूरख से मिलता है तो मूरख खुद को उससे बड़ा ज्ञानी सिद्ध करने की ही कोशिश करता है क्योंकि अगर सिद्ध न भी हो पाए तो उसका क्या बिगड़ना है? है तो वह आखिर मूरख ही।

मैं अपने सभी ब्लोगर बन्धुओं से आग्रह करता हूँ कि इस गंदगी में पत्थर फेंक कर खुद को गंदा न करें। न तो इनके ब्लोग पर जाकर टिप्पणी ही करें और न ही अन्य ब्लोग में इनके द्वारा की गई टिप्पणी का जवाब देने में अपना वक्त बरबाद करें। इनका ध्येय ही है कि हम इनसे उलझते रहें, तो इन्हें इनके ध्येय में सफल न होने दें। इनका सोशल बायकाट करें।

और मैं जानता हूँ कि मियाँ सलीम को ज्योहीं पता चलेगा कि उनके लिए एक नया आफत का परकाला अवतरित हो गया है त्योंही मेरे इस ब्लोग में अवश्य आयेंगे ऊल-जलूल टिप्पणी करने के लिए और या अपने पहले या फिर बाद में कैरानवी मियाँ को भी भेजेंगे। तो उनसे भी गुजारिश है कि अल्लाह ने जरा भी अक्ल दिया है तो आपसी नेकनीयती को खतम करने जैसा नापाक काम छोड़ कर कुछ इन्सानियत का भला करने वाला शबाब का काम करो। हजरत! तालीमयाफ्ता हो तो इतना तो समझते हो कि प्यार से प्यार बढ़ता है और नफरत से नफरत। तो प्यार और भाईचारा को बढ़ाओ ना, नफरत क्यों फैलाते हो? तुम्हारे ही ब्लोग में आकर एक नेकबख्त शख्स ने तुम्हें यह लिंक दिया था, पता नहीं तुम उस लिंक में गए कि नहीं, यदि नहीं गए हो तो अब जाकर देखो कैसे होते हैं अच्छे विचार! हिन्दी में ब्लोगिंग कर रहे हो तो कुछ अपना भला करो, कुछ जग का भला करो, कुछ हिन्दी का भला करो, हिन्दी ब्लोगिंग को अस्वच्छ तो मत करो।

27 comments:

Unknown said...

अवधिया जी… मैं, अनुनाद सिंह तथा अन्य कई लोग इनके ब्लाग पर जा-जाकर तमाम तर्क दे-देकर आ चुके हैं, लेकिन इनकी रट एक ही बात की होती है। ये किसी राजनैतिक-सामाजिक विषय पर लिखें तो पता भी चले कि ये कैसे लेखक हैं, लेकिन ले-देकर बस इस्लाम और अवतार, बस इसी पर टिके रहते हैं। किसी की बात इनकी समझ में नहीं आती…। मोहल्ला से भी इन्हें बाहर किया जा चुका है और पिछले 2-3 महीने से मोहल्ला पर नोटिस टांगकर इनकी सरेआम छीछालेदार की जा रही है, पता नहीं कैसा स्वच्छ सन्देश है यह? कल खामखा अनिल पुसदकर जी से उलझ लिये, एक-एक करके हिन्दी ब्लॉग जगत में सभी इनसे परेशान होने और चिढ़ने लगे हैं, पता नहीं यह लोगों को जोड़ना चाहते हैं या रिश्ते तोड़ना चाहते हैं…। मुझे तो यह साहब हिन्दूवादी ब्लागर घोषित कर चुके हैं, जबकि मैंने तो कभी भी नहीं कहा कि गीता पढ़ो, या कृष्ण अन्तिम अवतार हैं। अब आपने इनके ब्लॉग का सोशल बायकॉट करने की गुज़ारिश की है, आप वरिष्ठ हैं, जब आप जैसा व्यक्ति इस प्रकार का कदम उठाने की सिफ़ारिश कर सकता है तब सोचिये की दूसरों का क्या हाल होता होगा। एक काशिफ़ आरिफ़ भी है जो कम से कम कभीकभार Sensible बात करता है… बाकी सब तो…

पंकज बेंगाणी said...

ईश्वर भला करे! :)

Dr. Manoj Jha said...

100% आपके बातों से सहमत हू मैं अस्वछन्द से पुछना चाहता हू इस्लाम आज तक इस सभ्य समाज को दिया क्या है। कृप्या इसके बारें में भी लेख लिखों तभी तुम्हारें कुपमंडुकता का पता चलेगा। वैसे अस्वछन्द के बारें में कहना हि क्या है आज ब्लागरों के दुनिया में सबसे ज्यादा मजाक के पात्र बनने बाला है ब्लागर है। सभी इसके उपर हँसतें हैं ये अपने आपको बुद्दीमान समझता है (कुयें के मेठक कि तरह)

वैसे अस्वछन्द का बुराई नही करना चाहिये कोई तो भाड़ होना चाहिये हमारे मनोरंजन के लिये।

हा हा हा हा हा हा

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

"एकम् ब्रह्म..द्वितीय नास्ते.. नेह-नये नास्ते..नास्ते किंचनं" बस ले देकर एक इस उक्ति का रट्टा लगा रखा है!!!!

Mithilesh dubey said...

सहमत हूँ मै आपके बात से, मैने इसको कहा भी था कि कम से कम हिन्दुस्तान का नाम तो मत खराब करो अपने ब्लोग नाम बदल कर इस्लाम प्रचारक कर लो .........

अनुनाद सिंह said...

मैं तो यह समझता हूँ कि अब ऊंट पहाड़ के नीचे आया है । उसको भी अब बातें धीरे-धीरे समझ आने लगी हैं कि तर्क करने के लिये आक।दे भी चाहिये और विधी भी आनी चाहिये।

मैने उससे बहुत छोटे-छोटे प्रश्न किये पर किसी का उत्तर नहीं दे पाया। कई जगह तो अपने ही फन्दे में फंस जाता है। खैर अब इतनी खिंचाई हो गयी है कि इनकी उचकन काफी कम हो गयी है। लोगबाग 'मिला-मिला' के दे रहे हैं।

खैर , 'धरहुँ धीर' ; लाइन पर आ जायेंगे।

निशाचर said...

अवधिया जी, आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं............यह इलेक्ट्रोनिक मीडिया की तरह TRP के भूखे मूर्ख जीव हैं जिन्हें तर्क, अक्ल और समझदारी से कोई लेना- देना नहीं है, इसीलिए मैंने तो इसके ब्लॉग पर जाना ही छोड़ दिया है. अन्य मित्रों से भी अनुरोध है कि बेवजह तरजीह देकर इसे सर पे ना चढाएं तो यह स्वयं ही सुधर जायेगा....

Gyan Dutt Pandey said...

सात टिप्पणियां आ गयीं और बुद्धिमान लोग आये नहीं? रोजे में व्यस्त होंगे।

Gyan Darpan said...

ऐसे घटिया लोगो के ब्लॉग का सामूहिक बहिस्कार ही सबसे अच्छा रास्ता है | जब तक हम उसके उल जुलूल लेखो पर प्रतिक्रिया करते रहेंगे वह हमें भड़काता रहेगा और उसका ब्लॉग ट्रेफिक बढ़ता रहेगा | आगे से उस ब्लॉग पर जाना बंद |

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
haal-ahwaal said...

aap sabhi se puri tarah sahmat.
ye mlechchh aadmi koyee dharm ka prachar nahi kar raha. godhra aur jihad aur hindu dharm me buraiya nikalkar kya prachar kar raha hai ye, sab samajhte hain.
ye kewal apne prachar karna chahta hai. chahe jaise.
do din pehle maine isse likha ki tumhe pure desh me bann kar dena chahiye, to aise baukhla gaya k poochho mat.laga aay-baay-saay bakne. isne na to aaj tak mere sawalo ka jawab diya hai aur na hi kisi aur samajhdar aadmi ka.
lekin aapke lekh aur uss par aaye comments ne sabit kar diya hai ki iski pol ab puri tarah khul gayee hai.

Unknown said...

मेरे हिसाब से इसके सभी सवालों का उत्तर इसी के हथियार से हम लोगों को देना होगा. इसका बॉयकाट करना हम लोगों की बुजदिली होगी. अगर यह वेदों में से श्लोक निकाल कर यह सिद्ध कर रहा है कि अगर यह सिद्ध करता है कि मांसाहार ठीक है तो हमें भी इसकी किताब से इसे यह बताना होगा कि मांसाहार अनार्यों का कर्म है. अगर यह कहता है कि स्त्री एक ज्यादा शादी नहीं कर सकती है तो हम सबको भी यह मिलकर इसे यह बताना होगा कि स्त्री भी कई विवाह कर सकती है. अगर यह वेदों में से श्लोक निकाल कर यह सिद्ध कर रहा है कि ईश्वर एक है तो हमें भी वेदों में से ही निकाल कर यह बताना होगा कि ईश्वर एक नहीं है.

हमें इसके तर्कों का जवाब तर्कों से ही देना होगा. और अगर हम ऐसा नहीं कर पा रहें है और पीछे हट रहें है तो यह हमारी बुजदिली होगी. केवल उसे इसी प्रकार से निरुत्तर कर हम उस स्वच्छ को अस्वच्छ सिद्ध कर पाएंगे.

jitendra said...

sahi likha aapane.

fursat ke samay me ke timepass bhi to hona cahahiye.

bhagwan (Allah !) usko sadbuddhi de iske leye sab mil kar prathana kare.

sahi kaha na

Kirtish Bhatt said...

100% sahmat.

निशाचर said...

राजेश जी, तर्क की बात उससे करें जिसे जिसमें तर्कपूर्ण बुद्धि हो. यह तो बस अपनी ही अलापता रहता है. जहाँ फँस जाता है तो कुरान और वेदों की दुहाई देने लगता है या फिर " मीडिया की क्रिअशन है" जैसे जुमले उछलता है. ऐसे आदमी से बात, तर्क-वितर्क करके कोई फ़ायदा नहीं.......केवल समय की बर्बादी है.

राज भाटिय़ा said...

अवधिया जी मै भी कई बार गया इन के ब्लांग पर, उसे पढा फ़िर गुस्से मै टिपण्णी भी देनी चाही... लेकिन फ़िर किसी बुहुर्ग की नसीयहत याद आ गई की अगर सामने वाला नंगा हो तो तुम मत वेसे बनो, अगर यह सज्जन मुझे सिर्फ़ "मुसलमान" का अर्थ ही बता दे तो इन्हे मान जाऊ, लेकिन इन्हे इतनी अकल हो तो ना, ओर जो अपने मुंह मिया मिठू बने उसे कया कहते है
आप ने इस लेख मै मेरे ही नही, हम सब के दिल की बात लिख दी.मै अनुनाद जी, सुरेश जी. ज्ञानदत्त जी ओर अन्य सभी साथियो की बहुत इज्जत करता हुं, ओर जब यह सज्जन इन के कहने से नही समझे तो हम जेसो के कहने से क्या समझेगे
आप का बहुत बहुत धन्यवाद

श्यामल सुमन said...

अस्वच्छता फैलाने की छूट किसी को नहीं मिलनी चाहिए।

विवेक रस्तोगी said...

हमने तो इन महाशय के ब्लॉग पर जाना ही छोड़ दिया है और अगर गलती से चले भी गये तो डाईरेक्ट रेड क्रास अरे वही राईट साईड में सबसे ऊपर कोने वाला दबा देते हैं। या फ़िर उसके लिये शार्टकट की Alt+F4 या Ctrl+F4 है।

वीनस केसरी said...

ब्लॉग बहिस्कार, ब्लॉग बहिस्कार, ब्लॉग बहिस्कार

venus kesari

Anil Pusadkar said...

सहमत हूं आपसे।अगर हम शांतिप्रिय छत्तीसगढिये इससे नाराज़ हो गये हैं तो बाकी लोग पता नही…………………………॥

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

अवधिया जी आपका पे पोस्ट बहुत जरुरी था | आपने तो ऐसा पटक कर स्वच्छाता (वास्तविक रूप से अस्वच्छता) वालों को मारा है की २-४ दिन तक पानी भी नहीं पी सकेगा |

आपने जो लिखा है उससे १००% सहमत हूँ | मैंने भी कई बार जाकर उनके ब्लॉग पे टिपण्णी दी, सरल शब्दों मैं समझाने की कोशिश की, पर फल वही ढाक के तीन पात | ३-४ सरल प्रश्न पूछा तो चुप्पी मार गए | वो कहते हैं भगवान् एक है ... सही... मैं अल्लाह .... बोलता हूँ सलीम मियां आप भी एक बार ही सही जय श्री राम बोल दो ... ये लिखने पे वो ऐसे भागते हैं क्या बताऊँ !!!

@राजेश जी आपका कहना सही है, पर वेदों या अन्य ग्रंथों से श्लोक निकाल कर उसी को समझाया जा सकता है जो सुने | जिसने (सलीम मियां और उमर ) को कैसे समझायेंगे ? वो तो अपनी कानों मैं मस्जिद का दो लौदिस्पिकर लगा कर चौबिसों घंटे अपना कान बेहरा लिए हुए है | आँख और दिमाग पर हरी वाली अंधी पट्टी पहले ही लगा रखी है |
आप देखिये कितने लोगों ने क्या क्या जतन नहीं किये !!! उनकी कुतर्कों पर सकडों तर्क दिए पर भैंस के आगे बिन बजाये भैंस रहे पगुराय |

@निशाचर जी मैं आपसे सहमत हूँ | बहुत कोशिश की ... अब उनकी साईट पे जाकर कोई tippani नहीं करूँगा | जवाब तो एक-दो देना है लेकिन अपने ब्लॉग पे दूंगा |

चलिए अवधिया जी के साथ ही हम सब हिंदी ब्लॉगर उनका boycott करते है |

डा० अमर कुमार said...


उनके ब्लाग का लिंक तो दे देते, अवधिया जी ।
जरा मैं भी एक बार शास्त्रार्थ कर आता ।
भला बताइये आपकी एक छोटी त्रुटि से मेरा यह जन्म अकारथ जा रहा है,
कौन जानता है, अगला जन्म हो या न हो ?

richa said...

कहा अटक गये जनाब इनसे तो खुद खुदा पनाह मांग रहा है . सारे जहा से अच्छा आतंकवाद / इस्लाम हमारा गाने के लिये काशिफ़ आरिफ़ उमर और पता नही कौन कौन पधार लिये है मानसिक कीचड से लतपथ . ये इतने बडे आलिम फ़ाजिल है तो अलबेदार के सवालो के जवाब दे ना जाकर कौन रोकता है पर इन्हे सुअर की तरह अपनी थूथन से गंदगी फ़ैलाने मे ही मजा जो आता है

richa said...

अलबेदार यानी http://albedar.blogspot.com

Pramendra Pratap Singh said...

mujhe lag erahahai ki aap vyarth me chinta kar rahe hi, yadi gandgi se bhhedchhad na kare to vah aapne aap hi khatm ho jayegi.

Neelima said...

उसको लिखने दो ! आप अपना काम करो ! सिम्पल!

Saleem Khan said...

मैं समझता था कि तुम सब लोग मेरा सामना करोगे... लेकिन अफ़सोस तुम सबमें इतनी नफरत भरी है कि कुछ भी कहना बेमानी है...

हालाँकि सामना या मुकाबले से तात्पर्य है कि अगर आप असहमत हो तो उसका विरोध आप असहमत होकर कर सकते हो.... यह कहना कि बॉयकाट करो... यह वर्तमान समाज के खिलाफ़ बात है, यह तो उस काल की बात है जब सतीप्रथा थी...

अवधिया जी को अगर लगता है कि मेरे लेख से वे असहमत हैं तो ठीक है कोई बात नहीं....

और एक बात जिसे आप चैलेन्ज कह सकते हैं, मेरा एक भी लेख ऐसा नहीं है जिसमें ग़लत बात लिखी हो, एक भी अगर है तो उसे बताओ.... बस यूँ कहना कि ये अस्वच्छता फैला रहा है ग़लत बात है जनाब....

दूसरी बात आपने मेरे दो लेख का ज़िक्र किया (ये बात अलग है कि ये खुद ही नहीं जानते कि क्या लिख रहे हैं, अपनी ही बात को खुद काटते हैं। इनके एक लेख का शीर्षक है "मांसाहार क्यूँ जायज़ है? Non-veg is allowed, even in hindu dharma?" तो दूसरे लेख का शीर्षक है "मांसाहार जायज़ नहीं है, यह एक राक्षशी कृत्य है. Non-veg is not-permitted, its an evil task" है।)

जनाब यही तो बीमारी है आप सब में आप पढ़ते नहीं है... मैंने पहला लेख लिखा है कि मांसाहार क्यूँ जायज़ है? OK और दूसरा लेख लिखा उन सवालों में से एक सवाल के जवाब में जिसमें किसी ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि मांसाहार राक्षसी क्त्रिय है और मैंने उसे शीर्षक बना दिया... अन्दर जब आप पढेंगे तो आपको उसका जवाब भी मिल जायेगा...

कल भी अनिल बाबू ने मेरी बातों का ग़लत अर्थ निकाला...

मैं फिर कहता हूँ कि सनातन और इस्लाम धर्म की मूल शिक्षाएं एक ही हैं और और उनमें से एक है ईश्वर का एक होना...

अरे भाई जब ब्रह्म सूत्र ही यही है कि

एकम् ब्रह्म द्वित्यो नास्ति. नेह्न्ये नास्ति, नास्ति किंचन. (भगवान् एक ही दूसरा नहीं है. नहीं है,, नहीं है, ज़रा भी नहीं है.)

ख़ैर, ईश्वर आप सबको सद्बुद्धि दे और सत्यमार्ग (वेदों के मार्ग) पर चलने की तौफीक अता करे...

इसी उम्मीद के साथ कि एक ना एक दिन आप सबको मेरी बात ज़रूर समझ आएगी, कहीं ऐसा न हो देर हो जाये.

वन्दे-ईश्वरम