आप सभी ने देखा होगा कि ब्लॉगवाणी में दिखने वाले सभी लेख के आगे एक बटन होता है जिसमें "पसंद" लिखा होता है और एक संख्या दिखती रहती है। यह बहुत ही काम का बटन है क्योंकि किसी भी लेख के आगे के बटन को क्लिक करके आप दर्शा सकते हैं कि वह लेख आपको पसंद आया है। ज्योंही आप बटन पर क्लिक करते हैं, बटन में दिखाई देने वाली संख्या एक अंक से बढ़ जाती है। इस बटन की सहायता से आप न केवल अपनी पसंद दर्शाते हैं बल्कि उस लेख के लेखक को प्रोत्साहन भी देते हैं। भला ऐसा कौन लेखक होगा जो कि अपने लेख को अधिक से अधिक लोगों के द्वारा पसंद किए जाते देख कर खुश न होगा? उस लेखक को न केवल खुशी मिलती है बल्कि और भी अच्छे लेख लिखने की प्रेरणा भी मिलती है।
यह पसंद बटन एक और भी महत्वपूर्ण कार्य करता है वह है अधिक पसंद किए जाने वाले लेखों को ब्लॉगवाणी के दाँईं ओर के हाशिये में बने "आज अधिक पसंद प्राप्त" कॉलम में ले जाने का और वहाँ पर उसे पसंद की संख्या के अनुसार क्रम देने का। याने कि अधिकतम पसंद किए गए लेख को सबसे ऊपर और कम पसंद किए गए लेखों को क्रमवार उसके नीचे लाने का। जाहिर है कि जिस लेख को बहुत से लोगों ने पसंद किया हो उसे आप भी पढ़ना चाहेंगे। हो सकता है कि वह लेख ब्लॉगवाणी के पहले पेज से निकलकर दूसरे, तीसरे और भी आगे के पेज में पहुँच गया हो पर उसे पढ़ने के लिए आपको ब्लॉगवाणी के पेजेस को खंगालना नहीं पड़ता क्योंकि "आज अधिक पसंद प्राप्त" में ही उस लेख को क्लिक करने से वह लेख आपके समक्ष होता है। मैं तो ब्लॉगवाणी खोलते ही सबसे पहले "आज अधिक पसंद प्राप्त" को ही देखता हूँ और बहुत से लेखों को पढ़ जाता हूँ। मेरे जैसे ही और भी बहुत से लोग होंगे। खैर, मैं आपको यही बताना चाहता हूँ कि यह ब्लॉवाणी पसंद बटन बड़े काम की चीज है। मेरा तो विश्वास है कि भविष्य में यह हिन्दी के लेखों की लोकप्रियता का एक मानदंड बन जाएगा!
यह बटन ब्लॉगवाणी सॉफ्टवेयर का एक हिस्सा है और स्वतः ही (ऑटोमेटेड) कार्य करता है। तो इसी बटन की निष्पक्षता पर सन्देह उठने के कारण ही सारा बवाल मचा।
प्रसन्नता की बात यह है कि बवाल अब शान्त हो चुका है। ब्लॉगवाणी बन्द हुई और पुनः शुरू हो गई। हम कामना करें कि भविष्य में इस प्रकार का कोई बवाल फिर कभी न उठ पाए।
बहुत से लोग लेखों को पसंद तो करते हैं किन्तु इस बटन का प्रयोग नहीं करते। यदि आप किसी लेख को पसन्द करते हैं तो उसके लेखक को प्रोत्साहित करना भी आपका नैतिक कर्तव्य होता है। इसलिए मेरा आप सभी से अनुरोध है कि आप बटन का बेझिझक प्रयोग करें और अपने प्रिय लेखकों को प्रोत्साहित करें।
अन्त में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि ब्लॉवाणी टीम ने अपने ब्लॉग में बताया है कि निकट भविष्य में ही वे हमें एक नई ब्लॉवाणी देने जा रहे जिसमें और भी बहुत सी सुविधाएँ उपलब्ध होंगी और हिन्दी के पाठको की संख्या बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जायेगा।
17 comments:
आपके पास कोई नहीं आया, सब साथ छोड गये, लेकिन कैरानवी दोस्ती हो कि दुश्मपनी आखिर तक निभाता है, सोचा बंद कुंडी खटखटा दूं देख लूं, सांकल लगी है कि नहीं, अच्छी पोस्ट लेकिन तब जब कैरानवी इस खेल को समझ चुका था, चटका तो चटखारे की चीज है,
काम की चीज को बवाल की चीज बना दी.... खामी हर किसी में है, हर कहीं है. सम्भव हो तो सुधार भी हो सकता है, मगर आरोप लगाना अजीब था. खैर अब तो मामला खत्म हो गया. वैसे भी यह पहली घटना भी नहीं थी. तकनीकी ज्ञान की कमी भी एक कारण है.
अरे इसी काम की चीज ने तो सरा खेल बिगाड दिया, हमे देखो हम ने इसे लगाया ही नही, बस मन मोजी है जी, अब ब्लांग बाणी को सख्त होना चाहिये, अब्धिया जी दोस्त लोग आराम से आते है.
धन्यवाद
समें तो नये पोस्ट का अपडेट मिलता रहे, बस.
ब्लॉगवाणी की वापसी अति सुखद है.
मैथिलीजी और सिरिलजी का हार्दिक आभार.
पसंद बटन हमेशा बवाल रहेगा
एग्रीगेटर की निष्पक्षता पर सवाल रहेगा
इस में ऐसा क्या है?
जो ब्लागवाणी को ब्लाग जगत छोड़ना कबूल
मगर इसे छोड़ना नहीं कबूल।
आदरणीय द्विवेदी जी,
विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ पसंद बटन न तो बवाल था, है और न ही कभी रहेगा। आखिर डिग भी तो कमोबेश वैसा ही बटन है किन्तु उस पर कभी कोई बवाल नहीं उठा। हो सकता है कुछ तकनीकी खामियाँ रह गई हों जिन्हें कि, जैसा कि मेरा विश्वास है, दूर कर लिया जायेगा। बवाल तो हमारी स्वार्थ की मानसिकता के कारण उठती है।
संजय जी से सहमत हूँ ...अभी भी तकनीकी ज्ञान की बहुत सी कमिया लोगो में है ..पर इससे एक बात साबित होती है हिंदी ब्लोगिंग अभी भी छुं छान के खेल में अटकी है
असली दिक्कत उन्हें है जिन्हें पसन्द से कोई खास लगाव है…
============
वैसे समझदार लोग सबसे पहले आये आपके इधर, अच्छा हुआ आपने सांकल लगा रखी है… कचरा फ़ेंकने वाले का क्या भरोसा… :)
सुरेश जी,
ये हमारे सांकल का ही प्रभाव है कि हमारे ब्लॉग में बिना लिंक वाली टिप्पणियाँ आती हैं। भाई लोगों को पता है कि यहाँ लिंक वाली टिप्पणियों की दाल नहीं गलने वाली। हम तो बिना लिंक वाली टिप्पणियों को भी धता बता देते हैं पर कभी कभी इनके फड़फड़ाने पर तरस आ जाता है।
Aadarniya ......... awadhiya ji............ aapne achchi jaankari di.......
main to pareshan hua tha....... blogvani band hone se........ par ab sukoon hain......
saadar
mahfooz..
अब तो सुना है पसन्द के साथ नापसन्द का भी बटन लगने वाला है । वैसे इस चर्चा से यह तो हुआ कि बहुत से लोग इस तकनीक का उपयोग नही जानते थे सो जान गये हैं । आगे जो हो सो हो ।
अवधिया जी, सनातन धर्म की यही तो दरियादिली है कि वो तो पशु-पक्षियों तक पर दया की बात करता है..फिर यहाँ तो एक हाड-माँस के इन्सान की बात हो रही है:))
अवधिया जी ब्लोग्वानी पसंद वाकई काम की चीज है |
ब्लोग्वानी फिर से चालु तो हो गई है पर अब कहते हैं कई बदलाव की बात कर रहे हैं | लेकिन बदलाव पे कई शंका है http://raksingh.blogspot.com/2009/09/blog-post_29.html जिसपे चर्चा होनी ही चाहिए |
और एक बात कहना भूल गया ... आपके सांकल का ही प्रभाव जबरदस्त है ....
mai to blaagvaanee sirf post update ke liye use karata hu .
इस प्रकार के बवाल अति महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा बनाए जाते हैं। मेरी पसन्द पर तो स्वयं भी चटका लगा देतें हैं तो संख्या बदल जाती है। इन सबसे क्या आपके विचार मूल्यवान बन जाते हैं। ब्लाग पर ऐसे कितने ही चिठठे हैं जिनमें बहुमूल्य सामग्री है लेकिन उन्हें कोई नहीं पढता। कारण भी सीधा-सादा सा है कि यदि मैं किसी के ब्लाग पर टिप्पणी नहीं करती तो दूसरा भी मेरे ब्लाग पर टिप्पणी क्यों करे? हम लेखकों में यह मानसिकता ही है कि हम किसी न किसी बात पर विवाद खडा ही कर लेते हैं और सामने वाला भी अपना संतुलन खो देता है। खैर अब विवाद खत्म हुआ, सब कुछ सरलता से चले इसका ही प्रयास रहना चाहिए। हमें तो इस गणित का कोई ज्ञान भी नहीं था, और न ही अब है।
Aapki baaton se poori tarah sahmat.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Post a Comment