Monday, September 28, 2009

वाह रे ब्लॉगवाणी पसंद ... तूने ही कर दिया ब्लॉगवाणी बंद

ऐसा लगता है कि शायद ब्लॉगवाणी टीम को दिनभर किसी के ब्लोग की पसंद की संख्या बढ़ाने और किसी के ब्लोग की पसंद की संख्या बढ़ने से रोकने के सिवाय और कुछ काम ही नहीं रहता था। ब्लॉगवाणी शायद ऑटोमेटेड सॉफ्टवेयर न होकर मेनुअल वर्क रहा होगा कि जिसे चाहे आगे बढ़ाना है बढ़ा लें और जिसे चाहे पीछे धकेलना है धकेल दें। या फिर यदि ब्लॉगवाणी शायद ऑटोमेटेड सॉफ्टवेयर रहा होगा तो हन्ड्रेड परसेंट परफैक्ट रहा होगा जिससे कि कभी किसी प्रकार की गलती होती ही नहीं रही होगी।

मैं प्रोग्रामर तो नहीं हूँ पर इतना अवश्य जानता हूँ कि किसी भी सॉफ्टवेयर में कभी भी खामी आ सकती है। कोडिंग में जरा सी त्रुटि हुई कि गड़बड़ी शुरू। कोडिंग की त्रुटि कई बार अपने आप भी आ जाती है, कोई जानबूझ कर गलती नहीं करता। यह मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ क्योंकि मैंने भी कुछ स्क्रिप्ट्स का प्रयोग किया है और कॉन्फिगरेशन्स सही करने तथा गलतियाँ रोकने में मुझे दाँतों पसीना आ चुका है।

जब ब्लॉगवाणी किसी के ब्लॉग को दिखाने के लिए कोई शुल्क भी नहीं लेता था तो क्या अधिकार था किसी को उसकी आलोचना करने की? यदि ब्लॉगवाणी में इतनी ही खामियाँ नजर आती थीं तो हटा लेते वहाँ से अपने ब्लॉग को और कभी भी मत खोलते ब्लॉगवाणी को अपने कम्प्यूटर में।

किसी के ब्लॉग की पसंद की संख्या बढ़ने से रुक जाए तो ब्लॉवाणी क्यों जवाबदेह हो? और यदि जवाब न मिले तो ब्लॉगवाणी को जनतांत्रिक तरीके से काम करने के विरुद्ध समझा जाना कहाँ तक उचित है? एक अच्छे कार्य में गलतियों पर गलतियाँ निकाल कर उन्हें इस प्रकार से बताना कि अच्छे काम को करने वाले के मर्म को ही छेदने लगे कहाँ तक जायज है?

ब्लॉगवाणी टीम की सबसे बड़ी गलती यही थी कि वे एक अच्छा कार्य कर रहे थे। और बन्धुओं, अच्छा कार्य करने में नेकनामी नहीं हमेशा बदनामी ही मिला करती है।

10 comments:

Unknown said...

पूरी तरह सहमत, यह उन लोगों का काम है जो खुद कभी कोई "पॉजिटिव" काम नहीं कर पाये। अपनी बड़ी लकीर खींचने की बजाय दूसरे की लकीर मिटाने वाले विघ्नसंतोषी हैं कुछ लोग…

सागर नाहर said...

इतनी अक्ल होती लोगों में तो रोना ही किस बात का था।

पता नहीं सिरिलजी और मैथिलीजी कैसे समय निकाल लेते थे दस हजार ब्लॉग्स में से किसी चुनिंदा ब्लॉग की पसंद को दिखाने या ना दिखाने के लिये!!
बढ़िया है खुश होना चाहिये उन लोगों को वे अपने षड़्यंत्र में कामयाब जो रहे।

sandeep sharma said...

ब्लोग्वानी के बारे में दो-एक पोस्ट्स कल-परसों में पढ़ी थी...
अच्छे से अच्छे काम करने वाले को आलोचक क्या नहीं मिलते हैं? तो किन्ही एक-आध की आलोचना पर ब्लोग्वानी टीम को धर्य रखना चाहिए था... यह साईट बंद होने से दुःख होना लाज़मी है...
ब्लोग्वानी के संपादकों को अब भी समझदारी से काम लेकर उसे शुरू करना चाहिए.

एक बात सत्य है, विकल्प हर वस्तु का होता है... ये नहीं तो कोई और सही...
ब्लोग्वानी के बंद हो जाने से एक बार अवश्य परेशानी होगी, लेकिन विकल्प जीवित हैं... हमें ब्लोग्वानी की आदत थी, अब दुसरे की आदत डालनी होगी....

Girish Kumar Billore said...

यह सभ्य-संस्कृति की कोई सही मिसाल नहीं है "कोई" भी किसी के अवदान का इतना अपमान करने का अधिकारी नहीं हो सकता जिनने ऐसा किया है कि ब्लागवाणी-टीम हताश हुई दु:खद

दर्पण साह said...

aapki baat se porntya sehmat....
..vijyadashmi ki shubhkaamnaayein

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अवधिया जी, जो भी हुआ बहुत गलत हुआ.....
अब क्या किया जाए? जब गलती की है तो फिर उसका फल भगतना तो पडेगा ही......खैर जैसी प्रभु की इच्छा!!!!
बस एक उम्मीद की किरण मन में अवश्य है कि शायद ब्लागवाणी अपने इस निर्णय पर एक बार पुनर्विचार करेगा....

राज भाटिय़ा said...

आप ने बिलकुल सही कहा,लेकिन अब उन्हे केसे मनाये??
आप को ओर आप के परिवार को विजयदशमी की शुभकामनाएँ!

Arvind Mishra said...

यह जिन खल जनों का भी कृत्य है की ब्लागवाणी जैसा लोकप्रिय चिट्ठा संकलक बंद हुआ -भर्त्सना योग्य है !

Khushdeep Sehgal said...

जो हो रहा है, वो हमारे बस का नहीं है...जो हमारे बस का ही नहीं तो उस पर मलाल कैसा...कहते हैं हर मुश्किल घड़ी में कोई न कोई अच्छाई छिपी होती है...शायद ये सब वैसे ही सफाई के लिए हो रहा हो, जैसे दीवाली से पहले हम अपने घरों की सफाई करते हैं...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

नेकनामी या बदनामी छोड़ो, अब तो वाणी ही बंद पड़ी है॥